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Raja Parikshit

महाभारत के अनुसार राजा परीक्षित अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे। अश्वत्थामा ने कौरव पांडव युद्ध के समय ब्रम्हशिर अस्त्र से उत्तरा के गर्भ को गिराने का प्रयास किया पर श्री कृष्ण ने इस प्रयास को विफल कर दिया । श्री कृष्ण ने इस नंदनीय पाप के लिए अश्वत्थामा को जीवन भर सड़ते रहने का श्राप दिया था। कृष्ण ने अपने योग बल से उत्तरा के उस पुत्र को बचाया था जो बाद में परीक्षित नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 
क्यों रखा गया इनका नाम परीक्षित
 
महाभारत के अनुसार कुरुवंश के परिक्षीण होने के बाद  जन्म होने से वे ‘परीक्षित’ कहलाए थे ।
 
युधिष्ठिर और पांडवो ने इसी पौत्र को हस्तिनापुर के सिंहासन का भार देकर धार्मिक तीर्थ स्थलों में निकल गये थे। ये बहुत ही धार्मिक और अच्छे शासक थे। इन्होने अपने जीवन में तीन अश्वमेध यज्ञ और कई धर्मनिष्ठ कार्य करवाए।
 
राजा परीक्षित के समय कलियुग का प्रवेश
 
शास्त्र अनुसार राजा परीक्षित के समय ही जब श्री कृष्ण भगवान अपने वैकुण्ठ लोक चले गये थे , तब कलियुग ने प्रवेश कर लिया था। राजा परीक्षित पहले तो कलियुग को मारना चाहते थे पर , कलियुग के जीवन दान की भीख मांगने पर उसे जीवन दान दे दिया।