राजा हरिश्चंद्र का पूरा नाम सत्यवादी हरिश्चंद्र वे रघुकुल से श्री राम के वंसज थे वे है वे हमेशा सत्य बोलते थे एक बार
उनके सत्य की परीक्षा लेने को स्वप्न मे ऋषि विश्वामित्र को देवताओं ने भेजा तो उनहुने स्वप्न
मे अपना राज पाठ दान मे दे दिया जब आँख खुलने पर ऋषि आए उन्हने राजा हरिश्चंद्र से का राजन तुमने कल रात सब कुछ मुझे दान कर दिया अब तुम राज्य मेरे हवाले करो
राजा ने एक बार भी इनकार नहीं कीया संकल्प लेते हुए सब ऋषि को देकर जाने लगे तब ऋषि बोले राजन दान के बाद दक्षिणा भी दी जाति है तब राजज बोले की उनहुने सब कुछ दान दे दिया अब दक्षिण केसे दें तब ऋषि बोले अभी आपका पुत्र रोहित और आपकी रानी और आप सवय भी है तब राजा ने अपना और अपनी रानी, अथवा बेटे का दाम लगाया उन दोनों को बेचकर खुद को भी बेच दिया उनकी रानी को भी पुत्र सहित खरीद लिया जिसने राजा को खरीदा वह समसान मे मुरदों को जलाता था उसने राजा को अपना दास बनाकर समसान मे लगा दिया अभी तो राजा की और परीक्षा होनी थी तब एक दिने उनका पुत्र खेल राहा था उसको सांप ने काट लिया उसकी मौत हो गई रानी विलाप करती हुई उसका दाह संस्कार करने को समसान गई परंतु उसके पास धन नहीं था उसने परंतु राजा हरिश्चंद्र अपनी पत्नी को देख कर पुत्र की मौत से दुखी हुए फिर कहने लगे में मेरे स्वामी का अद्देश
है धन लिए बिना राजकुमार का अंतिम संस्कार नहीं होगा रानी रोई परंतु राजा बोले
" चंद्र टरे सूरज टरे, टरे जगत व्यवहार।
पै दृन्हवृत हरिश्चंद्र को, टरे न सत्य विचार।।
उसी समय आकाश से पुष्प वर्षा हुई और देवता बोले राजन सच मे आप महान सत्यवादी हो हम आपकी परीक्षा ले रहे थे आप सफल हुए यह कहते हुए उनका राज पाठ लौटा दिया