मार्कण्डेय ऋषि ने मार्कण्डेय पुराण की रचना की जिसमे उन्होंने इसके प्रसंग क्रौष्ठि को सुनाये थे। इस पुराण में देवी कात्यायनी की विस्तार से महिमा बताई गयी है। इनके पिता मृकंड थे और ये स्वयं देवादिव महादेव के परम भक्त थे।
शिव कृपा से इनका जन्म हुआ और इनकी आयु सिर्फ 16 साल की थी। मृत्यु के बाद फिर से भगवान शिव ने इन्हे यमराज से लाकर जीवन दान दिया।
इनके पिता के ये बुद्धिजीवी पुत्र थे जिन्हें पिता ने शिव भक्ति का मार्ग बताया।
इस पुत्र को पता चल गया था की वो सिर्फ 16 साल ही जी पायेगा। मृत्यु के अंतिम दिनों में यह शिवलिंग से लिपटकर ‘महामृत्युजंय’ मंत्र का जप करने लग गया। शिव ने प्रसन्न होकर इन्हे मृत्यु पाश से मुक्त करवाया। मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” जो मृत्युंजय पंचांग में प्रसिद्ध है और यह मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है।
इस स्तोत्र द्वारा प्रार्थना करते हुए भक्त के मन में भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास बन जाता है कि उसने भगवान “रुद्र” का आश्रय ले लिया है और यमराज भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा। यह स्तोत्र 16 पद्यों में वर्णित है और अंतिम 8 पद्यों के अंतिम चरणों में “किं नो मृत्यु: करिष्यति” अर्थात मृत्यु मेरा क्या करेगी, यह अभय वाक्य जुड़ा हुआ है।