रामायण में बताया गया है गुरु वशिष्ट ने अयोध्या के राजा दशरथ को पुत्र रत्न दिलवाने के लिए ऋष्यश्रृंग को ही बुलाकर पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था। यज्ञ समाप्ति के बाद इन्होने अयोध्या नरेश दशरथ को हवन कुण्ड से निकली खीर दी थी। इस खीर को दशरथ जी ने अपनी जीवन संगिनियो में बाँट दिया परिणाम स्वरुप उनके चार पुत्र हुए।
ऋषि श्रंग से जुडी जानकारी
यह सूर्य के पिता कश्यप ऋषि के पौत्र और विभण्डक ऋषि के पुत्र थे। कहते है इनके सिर पर एक सिंग था अत: इनका नाम ऋषि श्रंग पड़ा। इनका विवाह अंगदेश की राजकुमारी पुत्री शान्ता से हुआ था।
इन्द्र के कारण उर्वशी से करना पड़ा था विवाह
ब्रह्मा के पौत्र विभण्डक ने एक बार बहुत भारी तपस्या की। उनकी तपस्या के पीछे स्वर्ग को जाते देख देवताओ को भय सताने लगा। इस तपस्या को भंग करने के लिए देवताओ के राजा इंद्र ने स्वर्ग की सुंदरा उर्वशी को ऋषि विभण्डक के पास भेजा।
सुंदरा उर्वशी ने ऋषि को अपने रूप और अदाओं से मोहित कर लिया। प्रेमपाश में पड़कर महर्षि का तप खंडित हुआ और दोनों के संयोग से बालक श्रृंगी का जन्म हुआ।
अयोध्या से 37 किमी की दुरी पर आज भी इनकी और इनकी पत्नी की समाधी है।