1836 में जन्मे और 1886 में ब्रह्मलीन स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी हनुमानजी के परम भक्त थे। हालांकि उनकी प्रसिद्धि काली के भक्त के रूप में ज्यादा थी, क्योंकि वे मंदिर के पुजारी थे। कहते हैं कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने हनुमानजी की भक्ति इस चरमता के साथ की थी कि उक्त भक्ति के चलते उनकी रीढ़ में से लगभग एक पूंछ निकलने लगी थी। दरअसल, रामकृष्ण परमहंस ने धर्म के सभी मार्गों की पद्धति से भक्त करके सत्य को जानने का कार्य किया था।