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ब्रह्म के दो रूप होते हैं

सामवेद में आया है- "द्वै वाव ब्रह्मणो रूपे मूर्तं चामूर्तं चाथ यन्मूर्तं तदसत्यं यदमूर्तं तत्सत्यं तद्ब्रह्म....।।"

अर्थात ब्रह्म के दो रूप होते हैं, एक मूर्त्त और दूसरा अमूर्त्त। जो मूर्त्त है, वह असत्य है और जो अमूर्त्त है वह सत्य ब्रह्म है।

यहाँ मूर्त्त का अर्थ है, शरीरधारी यानि स्थूल, सगुण, साकार। अमूर्त्त का अर्थ है, अशरीरी यानि सूक्ष्म, निरगुण, निराकार। वेद का कथन है कि जो शरीरधारी ब्रह्म है, रूप -आकारवाला है, वह असत्य है यानी नहीं रहनेवाला है। किन्तु, जो बिना शरीरवाला निरगुण ब्रह्म है, वह सत्य है, सदा रहनेवाला है, अमर और अविनाशी है।

वेद में जिसे सृष्टकर्त्ता गया है उस सूक्ष्म, निरगुण, निराकार, अनंत, अजन्मा, अव्यक्त, अविनाशी, सर्वव्यापक प्रभु को ईश्वर कहते हैं। उन्हीं के सगुण साकार अवतार को भगवान कहते हैं। जैसे भगवान श्रीराम, भगवान कृष्ण, आदि। भगवान किसे कहते हैं, इसे और स्पष्ट रूप से जानिये।

विष्णु पुराण 6/74 में कहा गया है - “ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।।”

अर्थात सम्पूर्ण ऐश्वर्य , वीर्य ( जगत् को धारण करने की शक्तिविशेष ) , यश ,श्री ,समस्त ज्ञान , और परिपूर्ण वैराग्य के समुच्चय को भग कहते हैं। इस प्रकार भगवान शब्द से तात्पर्य हुआ, उक्त छह गुणवाला। दूसरे शब्दों में ये छहों गुण जिसमे नित्य रहते हैं, उन्हें भगवान कहते है।

यदि भगवान शब्द को अक्षरश: सन्धि विच्छेद करे तो: भ्+अ+ग्+अ+व्+आ+न्+अ

भ भूमि तत्व का द्योतक है और अ अग्नि तत्व का। ग गगन और व वायु तत्व का द्योतक है तथा न से नीर तत्व मानना चाहिये। ऐसे पंचभूत अर्थात पंच महा भौतिक शक्तियां ही भगवान है।