इस संसार में ध्यान से बढ़कर कोई चमत्कार नहीं है, लेकिन ध्यान की क्रिया सही होनी चाहिये। ध्यान की पूर्णता होने पर आत्म ग्यान होता है, परमात्मा की अनुभूति होती है और मोक्ष या मुक्ति की अवस्था प्राप्त होती है।
सामवेद के ध्यानबिन्दूपनिषद् में उल्लेख है :
यदि शैलसमं पापं विस्तीर्ण बहुयोजनम्।
भिद्यते ध्यानयोगेन नान्यो भेदः कदाचन ॥
अर्थात
यदि पर्वत की तरह (अनेक जन्मों के सञ्चित) अनेक योजन व्यापकत्व लिए पाप समूह हों, तो भी ध्यान योग साधना द्वारा उनको नष्ट किया जाना सम्भव है, अन्य किसी साधन से उनका नाश सम्भव नहीं ॥ ध्यान से पूर्व के सारे कर्मफल या पाप क्षय हो जाते हैं
योगशिखोपनिषद में उल्लेख है :
नादे मनोलयं ब्रह्मन् दूरश्रवणकारणम् ।
बिन्दौ मनोलयं कृत्वा दूरदर्शनमाप्नुयात् ॥
अर्थात
ध्यान के क्रम में यदि परम विन्दु में मन लय हो जाय तो सुदूर का दृश्य देख सकते हैं और यदि नाद ( शब्द) में मन लय हो जाय तो सुदूर की बात सुन सकते हैं।
योगतत्वोपनिषद में उल्लेख है :
सगुणं ध्यानमेततत्स्यादणिमादिगुणप्रदम ।
निर्गुणध्यानयुक्तस्य समाधिश्च ततो भवेत् ॥
अर्थात
सगुण ध्यान से अणिमा, लघिमा, महिमा आदि सिद्धयाँ मिलती हैं और निर्गुण ध्यान से समाधि होती है।
ग्यानसंकलिनी तंत्र में उल्लेख है :
न ध्यानं दयानमित्याहुर्धयानं शून्यगतं मनः ।
तस्य ध्यानप्रसादेन सौख्यं मोक्षं न संशय ॥
नारदपुराण में आया है-
ध्यानात् पापानि नश्यन्ति ध्यानात् मोक्षं च विन्दति।
ध्यानात् प्रसिदति हरिः धयानात सर्वार्थ साधनम्।।
अर्थात
ध्यान से परमात्मा प्रसन्न हो जाते हैं और सारे शुभ मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।