जब साधना शुरू होती है तो हम गुरु का सहारा लेते है। किसी गुरु के सानिध्य में जाते है। जब साधना का प्रारंभ होता है तब हम शुद्र श्रेणी के साधक माने जाते है जो कि सबसे निचली श्रेणी होती है। उस समय हम घण्टो ध्यान में बैठेंगे तो भी ध्यान नही लगेगा। 10 घण्टे ध्यान में बैठे और 2 मिनट ध्यान लगे तो फिर क्या फायदा। इसलिए गुरु के सानिध्य में जाते है। गुरु की टूटी फूटी सेवा भी कर दे तो हमारे अंदर दैवीय गुण प्रकट होते है। यह शीघ्र ही प्रकट होते है और फिर आपके ध्यान करने का समय एकाएक ही बढ़ जाता है। पहले आप दो मिनट भी नही लगा पा रहे थे अब 10 घण्टे में से आधा घण्टे लगा रहे हो। यानी कि साधना में उन्नति हो गयी।
साधना में उनत्ति होते ही साधक शुद्र से वैश्य श्रेणी में प्रवेश करता है। यहाँ अब उसमे भगवान को जानने और पाने की इच्छा होती है। थोड़ा बहूत ध्यान भी कर लेता है। लेकिन मन मे अभी भी संसार का मोह रहता है। इसलिए वह पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित नही होता। अभी तक वह स्वयं में बल देखता है।
अब जब गुरु की सेवा से उसमे दैवीय गुण और बढ़ जाते है तो वह अब क्षत्रिय श्रेणी में आ जाता है। इस श्रेणी में साधक को महाभारत का युद्ध लड़ना पड़ता है। अर्जुन भी क्षत्रिय था। उसे भी यह युद्ध लड़ना पड़ा। अब हमें भी यह युद्ध लड़ना पड़ता है। इस युद्ध मे भ्रम, मोह, द्वेत, कृपा, आसक्ति से भयंकर युद्ध लड़ना पड़ता है। लेकिन जब क्षत्रिय श्रेणी में साधक का प्रवेश होता है तो अब गुरु का साथ नही रहता। अब गुरु की आवश्यकता नही रहती। अब गुरु से कोई सम्बन्ध नही। क्योंकि इस श्रेणी अब स्वयं श्री कृष्ण आपके अंतर्मन से आपको निर्देश देंगे। सब कुछ बताएंगे। अब श्री कृष्ण अंतर्मन में आ चुके तो बाहर के गुरु की कोई आवश्यकता नही। बल्कि अब वो बाहर वाला गुरु भी आपके विरुद्ध है। क्योंकि आपका कुछ तो मोह उसमे भी हो गया। जैसे अर्जुन ने विद्या द्रोणाचार्य से प्राप्त की तो अर्जुन को भी अपने गुरु से मोह था। वही द्रोणाचार्य अब अर्जुन के विरुद्ध युद्ध मे खड़ा था। वैसे अब तुम्हारा तुम्हारे गुरु में यदि मोह रह गया तो फिर गुरू भी दुश्मन बन गया। साधना में मोह बड़ा बाधक है। इसलिए अब उस गुरु का साथ छूट जाता है। अब स्वयं श्री कृष्ण आपके सारथी बनकर आपको अंतर्मन से सब बताते है। वे कहते है कि एक बार इस युद्ध मे कोई प्रवेश कर गया तो प्रकति में कोई शक्ति नही की उसका कल्याण होने से रोक सके। इसलिए जैसे ही आप क्षत्रिय श्रेणी के साधक बनोगे तो श्री कृष्ण स्वयं आ जाएंगे अंतर्मन में। अब युद्ध शुरू होगा। कहा शुरू होगा? - "इदम् शरीरं"
यानी कि इसी शरीर मे वह युद्ध होगा। जब युद्ध मे तुम जीत जाओगे और मोह, आसक्ति, इच्छाएं सब नष्ट हो जाएगी तो तुम ब्राह्मण श्रेणी में प्रवेश करोगे। यह सबसे उच्च श्रेणी है। यहाँ साधक सभी शक्तियों से संपन्न तथा ईश्वर के नजदीक रहता है। याद रहे, वह नजदीक है। अभी मिला नही है।
अब ब्राह्मण श्रेणी में साधना जैसे ही पूर्ण होगी तो श्री कृष्ण अंतर्मन से प्रकट हो जाएंगे और आपको वह विकराल रूप का दर्शन देंगे। यह दर्शन आपको आपके अंतर्मन में ही होगा। जैसे ही यह दर्शन होगा तो फिर आप का समावेश उसी में हो जाएगा और आपकी वाणी और बुद्धि से स्वयं श्री कृष्ण कार्य करेंगे। अब आप पूर्ण है। अब पूर्ण है। पूर्ण है।
आपके प्रश्न का उत्तर यही है कि गुरु की तस्वीर वैश्य श्रेणी के साधक लगा सकते है। क्योंकि क्षत्रिय श्रेणी में प्रवेश करने पर गुरु का भी साथ छोड़ना पड़ता है। क्योंकि आगे के गुरु स्वयं श्री कृष्ण ही है। उस समय आपको तस्वीर की आवश्यकता नही है। क्योंकि ज्ञान हो जावेगा।
गुरु एक बस की तरह है जो आपको आपके गन्तव्य तक ले जाता है। जब गन्तव्य तक चले जाये तो बस को तो छोड़ना ही है। यदि बस से लगाव हो गया या उसे ही पकड़ लिया तो गन्तव्य तक जा नही सकोगे।