भगवान आदि शंकराचार्य भिक्षाटन करते हुए एक घर में पहुचे, वह घर एक विधवा और गरीब महिला का था. द्वार पर खड़े युवा सन्यासी को देखकर वह महिला घर के अंदर घुस गई, सनातन परम्परा है, कि द्वार पर सन्यासी खड़ा हो तो गृहस्थ का यह कर्तव्य होता है की वह उसे दान करे । इसी विचार से उसने पूरा घर ढूंढ़ लिया, मगर एक आंवले के सिवा कुछ भी उस घर में नही था. संकोच के साथ उस आंवले को भिक्षापात्र में डालकर उसने हाथ जोड़ लिए.
उसकी विवशता और गरीबी देखकर शंकराचार्य की आँखे भर आयी. उसी महिला के आँगन में बैठकर उन्होंने एक लक्ष्मी स्तोत्र की रचना कर डाली. भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा रचित इस कनकधारा स्तोत्र की समाप्ति होते होते, उस आँगन में आकाश से स्वर्ण के आंवले की वर्षा होने लग गयी, और उस महिला के पास इतना धन हो गया की वह और उसकी कई पीढियो वर्षो तक लंगरो का आयोजन कर गरीबो को भोजन कराती रही । तब से आज तक यह स्तोत्र लक्ष्मी की प्रसन्नता प्राप्ति के सर्वश्रेष्ठ साधन के रूप में एकमत से स्वीकार किया जाता है.
गृहस्थ व्यक्ति के लिए सर्वाधिक आवश्यकता जिसकी होती है वह है धन. उसका हर काम चाहे वह परिवार से सम्बन्धित हो या फिर व्यवसाय से, उसमे धन की ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है. लक्ष्मी को धन की अधिष्टात्री देवी माना गया है. अत: इस दिव्य स्तोत्र के नित्य पाठ से धनागम के नवीन मार्गो की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है, तथा साथ ही अपव्यय में भी कमी होती है ।
जो भी सच्चे मन और श्रद्धा से साथ नियमित तौर पर विशेषकर शुक्रवार के दिन कनकधारा स्तोत्र का जाप करता है, माता लक्ष्मी उसके जीवन से धन संबंधी परेशानियों को हर लेती हैं।
कनकधारा स्तोत्र पाठ के नियम
1. कनकधारा स्तोत्र का नित्य कम से कम एक पाठ किया जाना चाहिए । यह पाठ लक्ष्मी के चित्र, श्री यन्त्र या पारद लक्ष्मी के सामने स्नानादि कर्मो से निवृत्त होकर करना चाहिए ।
2. पाठ से पहले अपने गुरु का पूजन अनिवार्य रुप से करे तथा एक माला गुरु मंत्र की अवश्य जपे ।
3. दीपावली पर इसका पाठ विशेष लाभदायक माना गया है. यदि दीपावली को संभव न हो सके, तो पूर्णिमा, बुधवार, या शुक्रवार को इसे प्रारम्भ कर सकते है ।
4. संभव हो तो सामने घी का दीपक जलाना चाहिए. साथ ही पूजन स्थल को अगरबत्ती आदि से सुगन्धित करना चाहिए ।
5.अनुष्ठान के रूप में करना हो, तो संकल्प लेकर 108 या 1008 पाठ करे. प्रतिदिन निश्चित समय पर निश्चित संख्या में ही पाठ करे. पाठ करने का श्रेष्ठ समय रात्रि है. गुरु पुष्य नक्षत्र योग भी लक्ष्मी साधनाओ के लिए अत्यधिक लाभदायक माना गया है ।
6. साधना काल में सात्विक आचार विचार तथा भोजन ग्रहण करे.
7. सुंदर वस्त्रो को धारण कर तथा स्त्रियों को पूर्ण श्रृंगार करके इत्र आदि लगाकर सस्वर पाठ करना चाहिए ।