ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !
हम तीन नेत्रों वाले शिव का पूजन करते है जो समस्त प्राणियों के जीवन को अपनी सुगंध से समृद्ध करते है , स्वास्थ धन सुख और आनंद की वृद्धि करते है । जिस तरह ककड़ी बेल के बंधन से बिना किसी कष्ट के मुक्त हो जाती है उसी प्रकार आप हमें मृत्यु के बंधन से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करे ।
महामृत्युंजय मंत्र सावधानी एवम् विधि
शिवालय या किसी शांत स्थान पर एकांत में शिवलिंग के समक्ष जाप करे । पद्मासन की मुद्रा में बैठ कर अज्ञा चक्र पर ध्यान केंद्रित कर मंत्र का मानसिक जप करे । प्रातः काल में जाप करना अच्छा रहेगा अन्यथा अपनी सुविधा अनुसार एक समय का चयन करे ।
रोजाना शिवलिंग पर जल अवश्य चड़ाए ।
1. महामंत्र का उच्चारण शुद्ध रखें
2. एक निश्चित संख्या में जप करें। (मूलतः 108 की संख्या )
3. मंत्र का मानसिक जाप करें।
5. रुद्राक्ष की माला पर जप करने से विशेष फलदाई रहेगा।
6. माला को गोमुखी में रखें।
7. जप काल में महामृत्युंजय यंत्र की पूजा करें। अगर उपलब्ध हो ।
8. महामृत्युंजय के जप कुशा के आसन पर बैठकर करें।
9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें।
10. महामृत्युंजय मंत्र का जाप पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
11. पूर्ण श्रद्धा होने पर ही जाप करे परीक्षण हेतु ना करे।
महामृत्युंजय मंत्र जप काल के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
क्रोध को नियंत्रित करें
प्रकृति का दमन न करें
इच्छाओं का शमन करें
जीवन को सार्थक बनाएं
अपने अंत समय को सुंदर बनाएं
देह सृजक पंच तत्वों का स्मरण अवश्य करें
सत्यवादी और कल्याणकारी बनें
इस महामंत्र 32 शब्द हैं। ॐ' लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। मुनि वशिष्ठजी ने इन 33शब्दों के 33 देवता अर्थात्शक्तियाँ परिभाषित की हैं। इस मंत्र में आठ वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य और एक वषट हैं।
महामृत्युंजय मंत्र की महिमा
ऋग्वेद का प्रसिद्ध और सिद्ध मंत्र है। यह मृत संजीवनी है। ऋषि मार्कण्डेय को इसी मंत्र ने अल्पायु से जीवन संजीवनी दी थी। यमराज भी उनके द्वार से वापस चले गए थे। इस महामंत्र के अंतिम अक्षर माsमृतात को सर्वाधिक सावधानी से पढ़ना चाहिए। जैसा अर्थ में भी स्पष्ट है यह मामृतात केवल उसी स्थिति में पढ़ा जाएगा जब मोक्ष नहीं मिल रहा हो। प्राण नहीं छूट रहे हों। आयु लगभग पूर्ण हो गई हो। मृत्यु की कामना निषेध है। जीवन की कामना करना अमृत है। लेकिन एसे भी क्षण आते हैं , जब आदमी मृत्यु शैया पर पड़ा होता है,लेकिन परमात्मा से बुलावा नहीं आता। तब यह महामंत्र 33-33 बार तीन बार पढ़ा जाता है। जीवन में अमृत प्राप्ति, कष्टों और रोगों से मुक्ति और जीवन में धन-यश-सुख-शांति के लिए इसको माsमृतात ( मा+ अमृतात) पढ़ा जाता है।