गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।
ब्रह्मपुराण के अनुसार जो व्यक्ति शाक के द्वारा भी श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुखी नहीं होता।
देवस्मृति के अनुसार श्राद्ध की इच्छा करने वाला प्राणी निरोगी, स्वस्थ, दीर्घायु, योग्य संतति वाला, धनी तथा धनोपार्जक होता है। श्राद्ध करने वाला मनुष्य विविध शुभ लोकों और पूर्ण लक्ष्मी की प्राप्ति करता है।
श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों को जल चढ़ाने के साथ एक-एक देववृक्ष रोपें। इससे एक ओर अपने पितरों के शुभाशीष मिलेंगे, तो दूसरी ओर प्रकृति का भी कल्याण होगा।
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का काफी महत्व होता है। माना जाता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है। श्राद्ध के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है श्राद्ध से पितरों को शांति मिलती हैं। वे प्रसन्न रहते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार को प्राप्त होता है।
यह वह समय होता है जब हम पित्तरों का तर्पण और उनका श्राद्ध करते हैं. ऐसे में आज हम आपको कुछ जरूरी बातों के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं पितृ पक्ष में क्या करें और क्या नहीं।
पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए।
पितृ पक्ष में गाय, कुत्ते और कौए को भोजन अवश्य कराना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से पित्तरों को हमारे द्वारा दिया गया भोजन प्राप्त होता है।
- पितृ पक्ष में जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसका मनपसंद खाना जरूर बना।
- पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराना चाहिए और उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।
- पितृ पक्ष में पित्तरों के श्राद्ध के बाद भांजे को भोजन अवश्य कराएं और उससे दक्षिणा देकर आशीर्वाद अवश्य लें।
पितृ पक्ष में पित्तरों का श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं करते तो आपको पित्तरों का श्राप लगता है।
- इस दिन घर में लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए। इससे पितर नाराज हो जाते हैं।
- इस समय में अपने घर पर मांस और मदिरा का सेवन भी बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
- पितृ पक्ष में आपको किसी भी पशु या पश्री को न तो मारना चाहिए और न हीं सताना चाहिए।
- इस समय में किसी भी ब्राह्मण या बुजुर्ग का अपमान तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
श्राद्ध कर्म की विधि एवं मंत्र :
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष प्रारम्भ हो जाता है, इस दिन अगस्त्य मुनि का तर्पण करने का भी शास्त्रीय विधान है। पितृपक्ष एक महत्वपूर्ण पक्ष है। भारतीय धर्मशास्त्र एवं कर्मकाण्ड के अनुसार पितर देव स्वरूप होते हैं। इस पक्ष में पितरों के निमित्त दान, तर्पण आदि श्राद्ध के रूप में श्रद्धापूर्वक अवश्य करना चाहिए।
पितृपक्ष में किया गया श्राद्ध-कर्म सांसारिक जीवन को सुखमय बनाते हुए वंश की वृद्धि भी करता है। इतना ही नहीं, श्राद्धकर्म-प्रकाश में कहा गया है कि पितृपक्ष में किया गया श्राद्ध कर्म गया-श्राद्ध के फल को प्रदान करता हैं- “पितृपक्षे पितर श्राद्धम कृतम येन स गया श्राद्धकृत भवेत।”
पितृदोष :
श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है। श्राद्धकर्म-शास्त्र में उल्लिखित है-
“श्राद्धम न कुरूते मोहात तस्य रक्तम पिबन्ति ते।”
अर्थात् मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बंधियों का रक्त-पान करते हैं।
उपनिषद में भी श्राद्धकर्म के महत्व पर प्रमाण मिलता है-
“देवपितृकार्याभ्याम न प्रमदितव्यम ...।”
अर्थात् देवता एवं पितरों के कार्यों में प्रमाद (आलस्य) मनुष्य को कदापि नहीं करना चाहिए।
पितृपक्ष में तर्पण एवं श्राद्ध विधि :
पितृपक्ष में पितृतर्पण एवं श्राद्ध आदि करने का विधान यह है कि सर्वप्रथम हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् एवं जल लेकर संकल्प करें-
“ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।”
इसके बाद पितरों का आवाहन इस मन्त्र से करना चाहिए।
ब्रह्मादय:सुरा:सर्वे ऋषय:सनकादय:। आगच्छ्न्तु महाभाग ब्रह्मांड उदर वर्तिन:।।”
तत्पश्चात् इस मन्त्र से पितरों को तीन अंजलि जल अवश्य दे-
“ॐआगच्छ्न्तु मे पितर इमम गृहणम जलांजलिम।।”
अथवा
“मम (अमुक) गोत्र अस्मत पिता-उनका नाम- वसुस्वरूप तृप्यताम इदम तिलोदकम तस्मै स्वधा नम:।।”
पितर प्रार्थना मंत्र
पितर तर्पण के बाद गाय और बैल को हरा साग खिलाना चाहिए। तत्पश्चात पितरों की इस मन्त्र से प्रार्थना करनी चाहिए-
“ॐ नमो व:पितरो रसाय नमो व:पितर: शोषाय नमो
व:पितरो जीवाय नमो व:पितर:स्वधायै नमो
व:पितरो घोराय नमो व:पितरो मन्यवे नमो
व:पितर:पितरो नमो वो गृहाण मम पूजा पितरो दत्त सतो व:सर्व पितरो नमो नम:।”
श्राद्ध कर्म मंत्र
पितृ तर्पण के बाद सूर्यदेव को साष्टांग प्रणाम करके उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। तत्पश्चात् भगवान वासुदेव स्वरूप पितरों को स्वयं के द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म इस मन्त्र से अर्पित करें-
“अनेन यथाशक्ति कृतेन देवऋषिमनुष्यपितृतरपण आख्य कर्म भगवान पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेव प्रियताम नमम।
ॐ ततसद ब्रह्मा सह सर्व पितृदेव इदम श्राद्धकर्म अर्पणमस्तु।।”
ॐ विष्णवे नम:,
ॐ विष्णवे नम:,
ॐ विष्णवे नम:।।
इसे तीन बार कहकर तर्पण कर्म की पूर्ति करना चाहिए