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राजा मोरध्वज की परीक्षा

एक बार अर्जुन को अपने त्याग और दान की भावना पर घमंड हो गया। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि इस दुनिया में तुमसे बड़े भी त्यागी है। तुम केवल अकेले नहीं हो। तब अर्जुन ने घमंड वश कहा कि आप मुझे मेरे से बड़ा त्यागी दिखाएं ।

तब श्री कृष्ण ने खुद एक ब्राह्मण का भेष बना लिया और अर्जुन को एक शेर बना दिया। फिर दोनों रतनपुर गाव (छत्तीसगड़) में राजा मोरध्वज के पास पहुंचे। 

दोनों धर्मात्मा राजा मोरध्वज के पास पहुंचे। श्री कृष्ण ने राजा मोरध्वज को कहा कि मेरा यह शेर केवल इंसानों के बच्चों का भोजन करता है। मेरा शेर पिछले कई दिनों से भूखा है अगर इसको आज खाना नहीं मिला तो यह मर जाएग। तब राजा मोरध्वज ने अपनी पत्नी रानी पिंगला की सलाह मानकर अपने पुत्र की बलि चढ़ाने का प्रस्ताव रखा। मोरध्वज का पुत्र राजा से भी महान धर्मात्मा था। मोरध्वज के पुत्र ने तत्क्षण कहा-"यह मेरे लिए सौभाग्य होगा अगर मैं किसी शेर की भूख मिटाने मैं सहायक होता हूं।"

इस पर श्री कृष्ण ने कहा यह शेर आपके पुत्र की बलि को केवल तभी स्वीकार करेगा अगर आप अपने पुत्र के मरने पर एक भी आंसू नहीं बहाएंगे सारी शर्तों को मानकर राजा मोरध्वज ने अपने पुत्र की बलि दे दी। 

पुत्र की मृत्यु पर राजा- रानी जोर जोर से रोने लगी। इस पर कृष्ण ने कहा- आप अपने पुत्र की मृत्यु पर दुखी हैं इसलिए यह बली अब शेर स्वीकार नहीं करेगा।

इस पर राजा - रानी बोल हम अपने पुत्र के मरने पर नहीं रो रहें हैं बल्कि इसलिए दुखी हैं कि परमात्मा ने हमें केवल एक ही पुत्र क्यों दिया - काश हमें परमात्मा ने हज़ारों पुत्र दिए होते तो आपके शेर को भोजन के लिए कहीं और भटकना नहीं पड़ता। रोज़ हम अपने पुत्र की बली देकर आपके शेर की भूख को शांत कर पाते।

इतना सुनते ही अर्जुन के होश उड़ गए कि कोई संसार में इतना बड़ा भी दानी भी हो सकता है। तब श्री कृष्ण और अर्जुन अपने असली रूप में आए। श्री कृष्ण ने मोरध्वज के पुत्र को वापस जीवित किया और कहा है - राजन यह केवल परीक्षा थी। आप जैसा धर्मात्मा इस धरती पर शायद ही कभी जन्म लेगा। तब श्री कृष्ण ने मोरध्वज को वरदान मांगने को कहा मोरध्वज श्री कृष्ण के चरणों से लिपट-लिपट कर रोने लगा और कहा- हे प्रभु मुझसे वादा करो कि आप ऐसी कठोर परीक्षा कलयुग में कभी नहीं लोगे। कलयुग का व्यक्ति इतनी कठोर तपस्या कभी नहीं दे पाएगा।