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श्रीनाथजी के भवन में घुसा लुटेरा औरंगजेब अंधा हो गया था

मुगल काल का सबसे आतताई राजा औरंगजेब को माना जाता है।अकबर के समय में जो हिन्दू सुरक्षित थे वे औरंगजेब के शासन में उसके अत्याचारों के शिकार हो रहे थे।उसकी सेना ने चारों ओर लूट खसोट मचाई हुई थी। मंदिर तोड़े जा रहे थे हिंदुओं की भावनाओं को कुचला जा रहा था। ऐसे में गिरीराज जी की सेवा करने वाले श्री वल्लभ गोस्वामीजी की अगुवाई में यह सलाह की गई कि अब श्री गिरिराज जी को यहां से सुरक्षित स्थान पर ले जाना होगा।

रात के समय चोरी छिपे यह यात्रा शुरू हुई और आगरा, ग्वालियर से कोटा होते हुए दो साल में मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के राज्य पहुंची। जिन्होंने श्री जी की सुरक्षा का आश्वासन दिया।राजमाता की प्रेरणा से उदयपुर के महाराणा राजसिंह ने एक लाख सैनिक श्रीनाथजी की सेवा मैं सुरक्षा के लिए तैनात कर दिये। महाराणा का आश्रय पाकर नाथ नगरी भी बस गई इसी से इसका नाम नाथद्वारा पड़ गया।

नाथद्वारा शब्द दो शब्दों को मिलाकर बनता है नाथ+द्वार, जिसमे नाथ का अर्थ भगवान से है। और द्वार का अर्थ चौखट या आम भाषा मे कहा जाए तो गेट से है। तो इस प्रकार नाथद्वारा का अर्थ “भगवान का द्वार हुआ।


बादशाह की सवारी

नाथद्वारा में हर साल धुलंडी पर एक सवारी निकलती है, नाम बहुत दिलचस्प है ‘बादशाह की सवारी’। यह सवारी नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले के बादशाह गली से निकलती है। यह एक प्राचीन परंपरा है जिसमें एक व्यक्ति को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुग़ल पोशाक और आँखों में काजल डालकर दोनों हाथो में श्रीनाथ जी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है। इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है।यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाज़ार से आगे निकलती है तब बृजवासी सवारी पर बैठे बादशाह को गलियां देते है। सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथ जी के मंदिर पंहुचती है, जहां वह बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की सीढियाँ साफ़ करता है जो कि लम्बे समय से चली आ रही एक प्रथा है।


ब्रज जैसी होली नाथद्वारा में

क्यों चली आ रही है ऐसी परंपरा इसके पीछे भी एक कहानी है।जब औरंगजेब को नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी की मूर्ति के विषय में ज्ञात हुआ तो वह खुद उसे तोड़ने और लूट खसोट करने चला आया। जैसे ही वह श्रीनाथजी के भवन में घुसा वह अंधा हो गया।क्रोध में छटपटाता वह वहां से चला गया।बाद में उसकी माता ने प्रभु से बिनती की तथा उन्हें बहुमूल्य हीरा भेंट किया ।जो श्रीनाथजी की दाढ़ी में लगाया गया। इसके बाद औरंगजेब ने अपनी दाढ़ी से मंदिर प्रांगण को साफ किया और श्रीनाथजी से क्षमा याचना की।