एक आदमी एक बूढ़े सन्त के पास गया और पूछा ध्यान क्या है उस सन्त ने कहा जागरण को ही ध्यान कहा गया है उसने कहा मुझे सीखना है सन्त ने हामी भर दी लेकिन मैं तुम्हें डंडे से मारूँगा और अगर तुम्हें पहले पता चल गया मारने से तो नहीं मारूँगा।
अगले दिन से पिटाई शुरू हो गयी वो कोई काम लगा हो और सन्त डंडा मार दे शाम तक पूरा शरीर दर्द करने लगा अब ये रोज का काम हो गया लेकिन उस व्यक्ति की सतर्कता अब बढ़ने लगी और 2 -3 महीने में वो पहले ही सन्त को रोकने लग गया अब गुरु ने परीक्षा बढ़ा दी अब रात को भी हमला करना शुरू कर दिया लेकिन जल्दी ही रात को भी वो बचना शुरू हो गया
जरा सी आहट पे सतर्क हो जाता अब परीक्षा और जटिल हो गयी अब डंडे की जगह तलवार आ गयी दिन में ओर रात में लेकिन जल्दी ही उस आदमी का जागरण बहुत सघन हो गया और वो रात को भी सोता तो उसमें भी एक जागरण होता इसे ही भगवान श्री कृष्ण ने कहा है जब दुनियां सोती है तब योगी जागता है ।
अब उस व्यक्ति के हर काम में पूरा होश होता था गुरु ने कहा इसी जागरण को ध्यान कहा गया है अब तुम जा सकते हो उसने विदा ली और आश्रम से बाहर आया लेकिन बाहर आते ही उसे लगा क्यों न गुरु की परीक्षा लूं इसका कितना होश है एक डण्डा उठा कर देखूं आज ओर वापिस मुड़ा ही था कि गुरु ने कहा सावधान में बूढ़ा आदमी हुँ डंडे की चोट नहीं सह पाऊंगा
व्यक्ति ने कहा आपको कैसे पता चला अभी तो मैंने सिर्फ सोचा था गुरु जी ने कहा ये परम् जागरण की दशा है इसे तुरिया कहा जाता है यही ध्यान की सर्वोत्तम अवस्था है।
ध्यान का एकाग्रता से कोई सम्बंध नहीं है ध्यान उस अवस्था को कहते हैं जब आपके चित में कोई विचार न हो एकाग्रता में भी एक विचार तो होता है ध्यान में एक भी नहीं होता अब अगर उस बूढ़े सन्त के मन में एक भी विचार होता तो वह अपने शिष्य का विचार नहीं पकड़ सकता था विचार शून्य हुए बिना हम ना अस्तित्व के आवाज सुन सकते हैं ना दूसरों की।