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ब्रह्मा जी के मन्दिरों का निर्माण क्यों नहीं किया जाता

ब्रह्मा हिंदू मान्यता में वो देवता हैं जिनके चार हाथ हैं। इन चारों हाथों में आपको चार किताब देखने को मिलेंगी। ये चारों किताब चार वेद हैं। वेद का मतलब ज्ञान होता है। पुष्कर के इस ब्रह्म मंदिर का पद्म पुराण में जिक्र है। इस पुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा इस जगह पर दस हजार सालों तक रहे थे। इन सालों में उन्होंने पूरी सृष्टि की रचना की। जब पूरी रचना हो गई तो सृष्टि के विकास के लिए उन्होंने पांच दिनों तक यज्ञ किया था। और उसी यज्ञ के दौरान सावित्री पहुंच गई थीं जिनके शाप के बाद आज भी उस तालाब की तो पूजा होती है लेकिन ब्रह्मा की पूजा नहीं होती। बस श्रद्धालु दूर से ही उनकी प्रार्थना कर लेते हैं।

और तो और यहां के पुरोहित और पंडित तक अपने घरों में ब्रह्मा जी की तस्वीर नहीं रखते। कहते हैं कि जिन पांच दिनों में ब्रह्मा जी ने यहां यज्ञ किया था वो कार्तिक महीने की एकादशी से पूर्णिमा तक का वक्त था। और इसीलिए हर साल इसी महीने में यहां इस मेले का आयोजन होता है। ये है तो एक आध्यात्मिक मेला लेकिन वक्त के हिसाब से इसका स्वरूप भी बदला है। कहा ये भी जाता है कि इस मेले का जब पूरी तरह आध्यात्मिक स्वरूप बदल जाएगा तो पुष्कर का नक्शा इस धरती से मिट जाएगा। वो घड़ी होगी सृष्टि के विनाश की।

हर साल एक विशेष गूंज कार्तिक के इन दिनों में यहां सरोवर के आसपास सुनाई पड़ती है जिसकी पहचान कुछ आध्यात्मिक गुरुओं को है। मान्यता ये भी है कि इन पांच दिनों में जगत की 33 करोड़ शक्तियां यहां मौजूद रहती हैं। ये शक्तियां उस ब्रह्म की उपासना के लिए आती हैं जिनकी वजह से इस दुनिया का वजूद है। इस दौरान सरोवर के पानी में एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति का जिक्र है जिससे सारे रोग दूर हो जाते हैं।

आजतक किसी को पता नहीं कि इस मंदिर का निर्माण कैसे हुआ। बेशक आज से तकरीबन एक हजार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक शासक को एक स्वप्न आया था कि इस जगह पर एक मंदिर है जिसके सही रख रखाव की जरूरत है। तब राजा ने इस मंदिर के पुराने ढांचे को दोबारा जीवित किया। लेकिन उसके बाद जिसने भी किसी और जगह ऐसे मंदिर के निर्माण की कोशिश की वो या तो पागल हो गया या फिर उसकी मौत हो गई। भगवान ब्रह्मा के इस शहर में आकर लोगों को एक अलग आध्यात्मिक अहसास होता है। कई सैलानी तो ऐसे भी हैं जो यहां आते हैं तो यहीं के होकर रह जाना चाहते हैं

क्या कारण है कि हर कोई ब्रह्मा जी के मन्दिरों का निर्माण नहीं करवाता है?

पहला कारण
बार ब्रह्माजी के मन में धरती की भलाई के लिए यज्ञ करने का ख्याल आया। यज्ञ के लिए जगह की तलाश करनी थी।तत्पश्चात स्थान का चुनाव करने के लिए उन्होंने अपनी बांह से निकले हुए एक कमल को धरती लोक की ओर भेज दिया। कहते हैं जिस स्थान पर वह कमल गिरा वहां ही ब्रह्माजी का एक मंदिर बनाया गया है। यह स्थान है राजस्थान का पुष्कर शहर, जहां उस पुष्प का एक अंश गिरने से तालाब का निर्माण भी हुआ था।आज के युग में इस मंदिर को ‘जगत पिता ब्रह्मा’ मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। लेकिन फिर भी कोई ब्रह्माजी की पूजा नहीं करता। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर इस मंदिर के आसपास बड़े स्तर पर मेला लगता है।

कथा के आगे के चरण में ऐसा कहा गया है कि ब्रह्माजी द्वारा तीन बूंदें धरती लोक पर फेंकी गई थी जिसमें से एक पुष्कर स्थान पर गिरी। अब स्थान का चुनाव करने के बाद ब्रह्माजी यज्ञ के लिए ठीक उसी स्थान पहुंचे जहां पुष्प गिरा था। लेकिन उनकी पत्नी सावित्री वक्त पर नहीं पहुंच पाईं।ब्रह्माजी ने ध्यान दिया कि यज्ञ का समय तो निकल रहा है, यदि सही समय पर आरंभ नहीं किया तो इसका असर अच्छा कैसे होगा। परन्तु उन्हें यज्ञ के लिए एक स्त्री की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने एक स्थानीय ग्वाल बाला से शादी कर ली और यज्ञ में बैठ गए।

अब यज्ञ आरंभ हो चुका था, किन्तु थोड़ी ही देर बाद सावित्री वहां पहुंचीं और यज्ञ में अपनी जगह पर किसी और औरत को देखकर वे क्रोधित हो गईं। गुस्से में उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दिया और कहा कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी। यहां का जन-जीवन तुम्हें कभी याद नहीं करेगा।

दूसरा कारण
प्रमुख देवता होने पर भी इनकी पूजा बहुत कम होती है। दूसरा कारण यह की ब्रह्मांड की थाह लेने के लिए जब भगवान शिव ने विष्णु और ब्रह्मा को भेजा तो ब्रह्मा ने वापस लौटकर शिव से असत्य वचन कहा था।

तीसरा कारण
जगत पिता ब्रह्माजी की काया कांतिमय और मनमोहक थी। उनके मनमोहक रूप को देखकर स्वर्ग अप्सरा मोहिनी नाम कामासक्त हो गई और वह समाधि में लीन ब्रह्माजी के समीप ही आसन लगाकर बैठ गई। जब ब्रह्माजी की तांद्रा टूटी तो उन्होंने मोहिनी से पूछा, देवी! आप स्वर्ग का त्याग कर मेरे समीप क्यों बैठी हैं?

मोहिनी ने कहा, 'हे ब्रह्मदेव! मेरा तन और मन आपके प्रति प्रेममत्त हो रहा है। कृपया आप मेरा प्रेम स्वीकार करें।'ब्रह्मजी मोहिनी के कामभाव को दूर करने के लिए उसे नीतिपूर्ण ज्ञान देने लगे लेकिन मोहिनी ब्रह्माजी को अपनी ओर असक्त करने के लिए कामुक अदाओं से रिझाने लगी। ब्रह्माजी उसके मोहपाश से बचने के लिए अपने इष्ट श्रीहरि को याद करने लगे। उसी समय सप्तऋषियों का ब्रह्मलोक में आगमन हुआ। सप्तऋषियों ने ब्रह्माजी के समीप मोहिनी को देखकर उन से पूछा, यह रूपवति अप्सरा आप के साथ क्यों बैठी है? ब्रह्मा जी बोले, 'यह अप्सरा नृत्य करते-करते थक गई थी विश्राम करने के लिए पुत्री भाव से मेरे समीप बैठी है।'

सप्तऋषियों ने अपने योग बल से ब्रह्माजी की मिथ्या भाषा को जान लिया और मुस्कुरा कर वहां से प्रस्थान कर गए। ब्रह्माजी के अपने प्रति ऐसे वचन सुनकर मोहिनी को बहुत गुस्सा आया। मोहिनी बोली, मैं आपसे अपनी काम इच्छाओं की पूर्ति चाहती थी और आपने मुझे पुत्री का दर्जा दिया। अपने मन पर संयम होने का बड़ा घमंड है आपको तभी आपने मेरे प्रेम को ठुकराया। यदि मैं सच्चे हृदय से आपसे प्रेम करती हूं तो जगत में आपको पूजा नहीं जाएगा।

चोथा कारण
भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है। हर वेद और पुराण में भगवान शिव को महाकाल और सृष्टि के निर्माता के रुप में देखा गया है लेकिन कहीं भी उनके जन्म से जुड़ी कोई बात नहीं कही गई है। भगवान शिव को निरंकार माना जाता है। निरंकार उसे कहा जाता है जिसका कोई रुप नहीं होता है। माना जाता है कि भगवान शिव ने ही सृष्टि के निर्माण के बारे में सोचा था। इसके बाद उन्होनें भगवान विष्णु को जन्म दिया। भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए। वह दोनों इतने शक्तिशाली थे कि दोनों के बीच में कई बार इस बात को लेकर युद्ध हो जाता था कि कौन सबसे ज्यादा शक्तिशाली है। एक बार ये युद्ध इतना बढ़ गया कि करीब 10 हजार सालों तक चला।भगवान शिव इस युद्ध को रोकने के लिए इन दोनों के बीच में एक पत्थर के रुप में आ गए। माना जाता है कि इस पत्थर में से बहुत शक्तिशाली ज्वाला निकल रही थी। माना जाता है कि उस समय आकाशवाणी हुई और उसमें कहा गया कि जो इस शिवलिंग का आरंभ या अंत पा लेगा वो ही सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा। भगवान विष्णु ने नीचे का हिस्सा चुना और ब्रह्मा जी ने लिंग का ऊपरी हिस्से को चुना। कई वर्षों तक भगवान विष्णु को कोई उपाय नहीं मिला तो वो भगवान शिव के पास गए और उनसे कहा कि मुझे माफ कर दीजिए इसका कोई अंत नहीं है। ये मेरी अज्ञानता थी कि मैं अपने आपको सबसे शक्तिशाली मानता था।

ब्रह्मा जी ने लिंग का आरंभ चुना था, उन्हें आरंभ तो नहीं मिला लेकिन उन्होनें सोचा कि मैं झूठ बोल दूंगा कि मुझे आरंभ मिल गया है और फिर सबसे शक्तिशाली घोषित कर दिया जाएगा। ब्रह्मा जी ने इसी तरह से जाकर कहा लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि ये शिवलिंग है और मेरा कोई आकार नहीं है, मैं निरंकार हूं। भगवान शिव सच्चाई जानते थे और उन्होनें भगवान विष्णु को आशीर्वाद दिया और ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया। भगवान शिव ने कहा कि ब्रह्मा जी की कभी पूजा नहीं की जाएगी, ब्रह्म जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होनें माफी मांगी। इसके बाद से भगवान शिव को शिवलिंग के रुप में पूजा जाने लगा।

पांचवा कारण
सृष्टि के रचियता के रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को पूजा जाता है ये तीनों देवता संपूर्ण सृष्टि को बनाने, पालने और इसके विनाश के लिए उत्तरदायी माने जाते हैं। भगवान विष्णु मानवजाति के पालनहार के रूप में, ब्रह्मा सृष्टि की रचना के रूप में और महेश पाप बढ़ जाने पर सृष्टि के विनाश के लिए जाने जाते है। लेकिन क्या आप जानते हैं सृष्टि की रचना के दौरान भगवान ब्रह्मा को शिव ने श्राप दिया था। उनके द्वारा किए गए एक कृत्य को भगवान शिव सहन नहीं कर सके थे।

शिवमहापुराण में वर्णित कहानी के अनुसार जब सृष्टि की रचना करने का समय आया तो त्रिदेवों ने अपने कार्यो को बांट लिया। भगवान ब्रह्मा पर मानवजाति की रचना करने की जिम्मेदारी आ पड़ी। इतनी बड़ी सृष्टि के निर्माण के लिए किसी की सहायता की जरूरत थी। इसलिए ब्रह्मा ने सत्यरूपा नाम की एक सुन्दर कन्या की उत्पत्ति की, वो कन्या इतनी सुन्दर थी कि कोई भी उसे देखकर मोहित हो जाता। उसके चेहरे पर इतना तेज था कि बड़े से बड़ा सन्यासी भी उसकी और आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता था। उसके रूप को देखकर ब्रह्मा भी उस पर मोहित हो गए। कुछ पल के लिए वो सबकुछ भूलकर सत्यरूपा को निहारते रह गए।उनकी दृष्टि को भांपते हुए भगवान शिव को देर न लगी। वे उन्हें समझाना चाहते थे। परन्तु इससे पहले ही ब्रह्मा ने सभी के सामने सत्यरूपा से विवाह करने की इच्छा जाहिर की। उनके मुख से ऐसी अनर्थपूर्ण बात सुनकर वहां उपस्थित सभी देवगण हैरान हो गए। वहीं दूसरी ओर भगवान शिव क्रोधित हो उठे। उन्होंने ब्रह्मा को समझाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन वे मानने को तैयार नहीं थे। शिव ने कहा ' हे देव इस कन्या की रचना स्वयं आपने अपने हाथों से की है, इसलिए ये कन्या आपकी पुत्री समान हुई। सत्यरूपा आपका अंश है। आपको अपनी पुत्री के लिए ऐसी अशोभनीय बात नहीं करनी चाहिए'।

ये बात सुनकर ब्रह्मा क्रोध से भर गए। उन्होंने भगवान शिव को अपशब्द कहने शुरू कर दिए। ये सुनकर शिव के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा 'आपने अपनी पुत्री के विषय में ऐसी बात कहकर पिता-पुत्री के रिश्ते का अपमान किया है। इसलिए आप पूजने के योग्य नहीं हो। आज से आपकी पूजा न के बराबर होगी। दुनियाभर में आपके भक्त नाममात्र ही रह जाएंगे’।शिव के मुख से ऐसे कटु वचन सुनकर ब्रह्मा ने शिव सहित सभी देवगणों से माफी मांगी। परंतु शिव के श्राप ने अपना प्रभाव दिखा दिया था। आपने भी ये बात जरूर गौर की होगी कि ब्रह्मा को अन्य देवताओं की तुलना में कम ही पूजा जाता है। ब्रह्मा का एक मात्र मन्दिर राजस्थान के पुष्कर में है