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भगवान् शिव से जुड़े कुछ अद्भुत रोचक तथ्य

भगवान् शिव से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य निम्नलिखित है जिन्हे जानकार शिवभक्त 

1. आदिनाथ शिव : - धरती पर सबसे पहले भगवान शिव ने ही जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ होता है प्रारंभ। आदिनाथ के साथ ही शिव का एक नाम 'आदिश' भी है।
  
2. भगवान् शिव के प्रमुख नाम : -  शिव जी के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां उनके कुछ प्रचलित नाम दिए गए है जोकि निम्नलिखित है - महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
 
3. भगवान शिव की अर्द्धांगिनी : - शिव जी की पहली पत्नी माता सती ने ही अपने अगले जन्म में पार्वती का रूप धारण किया और वही उमा, उर्मि, काली कहलायी।
 
4. शिव जी के पुत्र : - भगवान शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। शिव के इन सभी पुत्रों के जन्म की कथाएं बड़ी रोचक है।
 
5. शिव का परिवार में सामंजस्य : - भगवान् शिव के परिवार में विरोधाभास है किन्तु शिव इसके बावजूद भी सभी को सामंजस्य बनाकर रखते है। शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग रहते है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणेश जी का वाहन चूहा है, जबकि सांप एक मूषकभक्षी जीव है। माँ पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद शिव परिवार में एकता और सामंजस्य है।
 
6. शिव के शिष्य : - शिव जी के प्रमुख 7 शिष्य हैं इन्ही को प्रारंभिक सप्तऋषि भी माना गया है। इन्ही सप्त ऋषियों ने भगवान शिव के ज्ञान का सारी धरती पर प्रचार - प्रसार किया, जिसके कारण भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने ही इन ऋषियों को ज्ञान देकर गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के ये शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी भगवान शिव के ही शिष्य थे।
 
7. शिव भक्त : - ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान श्री राम और श्री कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर श्री कृष्ण ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
 
8. शिव जी के प्रचारक : - भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का काफी प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय जी का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुख शिव प्रचारकों में गिना जाता है।
 
9. भगवान् शिव के गण : - भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय का नाम शिव के प्रमुख गणों में आता हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का ही गण माना जाता है। 
 
10. शिव पंचायत : - भगवान सूर्यदेव, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
 
11. शिव जी के द्वारपाल : - शिव के द्वारपाल नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल कहलाते है।
 
12. शिव पार्षद : - जिस प्रकार से जय और विजय भगवान् श्री हरि विष्णु जी के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि भी शिव जी के पार्षद हैं।
 
13. शिव के अस्त्र-शस्त्र : - भगवान शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। इन सभी का निर्माण उन्होंने स्वयं ही  किया था।
 
14. शिव के गले का नाग : - शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। विष्णु भगवान क्षीर सागर में जिस शेषनाग पर रहते है वो वासुकि के बड़े भाई है।
 
15. सभी धर्मों का केंद्र है शिव : - भगवान शिव की वेशभूषा ऐसी है कि सभी धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक देख सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। भगवान् शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई थी, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।
 
16. देव - असुर दोनों के प्रिय शिव : - भगवान शिव को देवताओं के साथ ही दैत्य, असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी लोग पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान दे देते हैं और श्री राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य जैसे कई असुरों को भी वरदान दे दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
 
17. शिव चिह्न : - वनवासीयों से लेकर सभी साधारण व्‍यक्तियों तक जिस चिह्न की पूजा की जा सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी भगवान् शिव के प्रतीक चिह्न के रूप में देखते है, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का ही पूजन करते हैं।
 
18. भगवान् शिव की गुफा : - भगवान शिव ने जहां पर पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था, वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है। दूसरी ओर शिव जी ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों में स्थित है। 
 
19. शिव के पैरों के निशान : - भगवान शिव के पैरों के निशान विभिन्न स्थानों पर स्थापित है जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है।  
 
श्रीपद - श्रीलंका में रतन द्वीप नामक पहाड़ की चोटी पर स्थित एक मंदिर है जिसमें भगवान् शिव के पैरों के निशान मौजूद हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इसी स्थान को सिवानोलीपदम नाम से भी जाना जाता हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक भी कहते हैं।
 
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर मंदिर में भी शिव के पदचिह्न हैं जिनको 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं। 
 
तेजपुर- असम के तेजपुर में भी ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में भगवान् शिव के दाएं पैर का निशान मौजूद है।
 
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर तथा प्रसिद्ध जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के निकट  भी शिव जी के पदचिह्न हैं। कहा जाता है कि पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां पर और दूसरा कैलाश में रखा था।
 
रांची- 'रांची हिल' जो कि झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, पर भी भगवान् शिवजी के पैरों के निशान देखने को मिलते है। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' के नाम से जाना जाता है।
 
20. भगवान् शिव के अवतार : - वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि भगवान् शिव के ही अवतार माने जाते हैं। वेदों में रुद्रों के विषय में भी बताया गया है। रुद्रों की संख्या 11 बतायी जाती हैं जो निम्नलिखित है - कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
 
21. कैलाश पर्वत जो कि ति‍ब्बत में स्थित है उनका निवास स्थान है। भगवान् शिव वहीं पर विराजमान रहते हैं उसी पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक भी है जो भगवान विष्णु का निवास स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
 
22. शिव ध्यान : - भगवान् शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करके शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष के मार्ग पर साधक प्रगति करता है।
 
23. भगवान् शिव का मंत्र : - शिव जी के दो प्रमुख मंत्र माने जाते हैं पहला है - ॐ नम: शिवाय। तथा दूसरा है महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ 
 
24. शिव व्रत और त्योहार : - सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
 
25. शिव ग्रंथ : - वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में भगवान् शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाहित की गयी है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी दिव्य शिक्षा का विस्तार किया गया है।
 
26. शिवलिंग : - वायु पुराण के अनुसार जिसमें प्रलयकाल के समय समस्त सृष्टि लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो तत्व संपूर्ण ब्रह्मांड का मूलभूत आधार है। इसीलिए प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना की जाती है।
 
27. बारह ज्योतिर्लिंग : -  भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर आते है। ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के संबंध में भी अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण में ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड बताया गया है।
 
एक अन्य मान्यता के अनुसार शिव पुराण में प्राचीनकाल में आकाश से कुछ ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और कुछ देर के लिए उनमें से निकला प्रकाश चारो ओर  फैल गया। ऐसे अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। अनेकों पिंडों में से भारत में गिरे प्रमुख बारह पिंडों को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
 
28. शैव परम्परा : - दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी भगवान् शिव की ही परंपरा से माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव भगवान् शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
  
29. शिव जी की महिमा : - भगवान् शिव ने कालकूट नामक भयंकर विष पिया था जो समुद्र मंथन के समय अमृत के साथ निकला था। शिव जी ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिये जिनका फिर उनको संहार भी करना पड़ा। शिव जी ने कामदेव को भी भस्म कर दिया था। शिव जी ने गणेश जी और राजा दक्ष के कटे हुए सिर को भी जोड़ दिया था।
 
30. अमरनाथ के अमृत वचन : - शिव जी ने अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती को मोक्ष प्रदान करने हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। एक ही ऐसा ग्रंथ 'विज्ञान भैरव तंत्र' है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
 
31. शिव का दर्शन : - शिव जी के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को जानने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि भगवान् शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से कभी भी लड़ो मत, उनसे अजनबी बनकर देखो और कल्पना शक्ति का भी यथार्थ के लिए ही उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव जी ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
 
32. देवों के देव महादेव : देवताओं का दैत्यों से सदा विवाद चलता रहता था। ऐसी परिस्थिति में जब भी कभी देवताओं पर कोई संकट आता था, तो सभी देवता सहायता मांगने के लिए देवाधिदेव महादेव के पास में जाते थे। हालाँकि दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव जी को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष नतमस्तक हो गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। शिव जी दैत्यों, दानवों और भूतों के भी आराध्य देव हैं। वे श्री राम को भी वरदान देते हैं और राक्षस राज रावण को भी।