उड़िया जो कि उड़ीसा राज्य की भाषा है। महाभारत के उड़िया भाषा के संस्करण में नवगुंजर का वर्णन देखने को मिलता है। इसके अलावा अन्य किसी भी भाषा के महाभारत संस्करण में इसका कोई उल्लेख देखने को नहीं मिलता है।
यही नहीं महाभारत के युद्ध का प्रमुख क्षेत्र हस्तिनापुर है और इसके आस पास के इलाको में रहने वाले लोग भी इस जीव से पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं। महाभारत का उड़िया संस्करण सरला दास द्वारा लिखा गया है, जिसमें अर्जुन से जुडी उस घटना का वर्णन है जब निर्वासन के समय अर्जुन मणिभद्र की पहाड़ीयों में तपस्या कर रहे थे।
तप करते समय वो एक अनोखे जीव को देखकर हैरान रह जाते हैं क्योंकि उसका पूरा शरीर अलग अलग नौ पशुओं से मिलकर बना हुआ था। जिसमें कि सिर-मुर्गे का, गर्दन-मोर की, कूबड़-बैल का, कमर-शेर की, तीन पैर क्रमशः हाथी, बाघ और घोड़े के तथा चौथे के रूप में एक मानव का हाथ था। उस मानव के हाथ में उसने एक कमल का फूल पकड़ा हुआ है, इस अजीब से दिखने वाले पशु की पूंछ सांप के जैसी थी।
शुरुआत में, अर्जुन इसको देखने पर बहुत अधिक भयभीत हो गये थे और इसको मारने के लिए उन्होंने अपना धनुष भी उठा लिया था। किन्तु इस पशु के हाथ में कमल देखकर अर्जुन रुक जाते है और उनको आभास होता है कि यह और कोई नहीं है बल्कि भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ही हैं। तब भगवान श्री कृष्ण जी प्रकट होकर बताते हैं कि भगवद्गीता का ज्ञान देते समय दिखाए गए उनके विराटस्वरूप के समान ही नवगुंजर भी उन्ही का एक स्वरूप है।
उड़ीसा में पुरी के जगन्नाथ मंदिर के उत्तरी भाग में नवगुंजरा और अर्जुन के चित्र को भी उकेरा गया है। गंजिफा प्लेइंग कार्ड में भी नवगुंजर को दिखाया गया है। इसमें राजा के कार्ड में नवगुंजर का तथा उसके मंत्री के कार्ड में अर्जुन का चित्र दिखाया गया है। उड़ीसा राज्य के कुछ हिस्सों में विशेषकर पुरी जिले में गंजिफा प्लेइंग कार्ड के इस सेट को नवगुंजर के नाम से ही जाना जाता है।