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शंख की महत्ता और श्री कृष्ण के दिव्य पाञ्चजन्य शंख का रहस्य

शंख भारतीय पौराणिक सभ्यता में बहुत महत्व् बताया गया है। शंख को विजय, समृद्धि, सुख, शांति, यश, कीर्ति और सम्पन्नता का भी प्रतीक माना जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शंख नाद का प्रतीक है। शंख की ध्वनि बहुत ही अधिक शुभ मानी जाती है। हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं। इनके 3 प्रमुख प्रकार हैं- दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। इन शंखों के कई उप प्रकार भी होते हैं।

 

महाभारत के समय में भगवान् श्री कृष्ण जी के पास में पाञ्चजन्य, अर्जुन के पास देवदत्त, युधिष्ठिर के पास अनंतविजय, भीष्म के पास पोंड्रिक, नकुल के पास सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक नामक शंख थे। इन सभी शंखों महत्ता, विशेषता और शक्ति भिन्न भिन्न थी। शंखों की शक्ति और चमत्कारों की व्याख्या के उदाहरण महाभारत और पुराणों में खूब देखने को मिलती है। 

 

श्री कृष्ण जी के पाञ्चजन्य शंख का रहस्य : पाञ्चजन्य एक बहुत ही अधिक दुर्लभ शंख है। बताया जाता है कि इस पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 अद्भुत रत्नों में से छठा रत्न पाञ्चजन्य शंख था। 

 

एक कथा के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण जी के गुरु के पुत्र पुनरदत्त को एक बार एक दैत्य उठाकर ले गया। उसी गुरु पुत्र को वापस लाने के लिए कृष्ण जी दैत्य नगरी गए। जहाँ उन्होंने उस दैत्य को एक शंख में सोते हुए पाया। उस दुष्ट दैत्य का वध करके श्री कृष्ण जी ने उस शंख को अपने पास में रखा और फिर जब कृष्ण जी को ज्ञात हुआ कि उनका गुरु पुत्र तो यमपुरी पहुँच गया है तो श्री कृष्ण उसको लेने यमपुरी ही चले गए। वहां पर चौकीदारी कर रहे यमदूतों ने उनको जब अंदर नहीं जाने दिया तो भगवान् श्री कृष्ण जी ने शंख का नाद किया जिसकी वजह से यमलोक भी हिलने लगा।

 

फिर यमराज ने स्वयं आकर प्रभु श्री कृष्ण जी को उनके गुरु के बेटे की आत्मा को वापस दिया। जिसके बाद प्रभु श्री कृष्ण, बलराम और अपने गुरु पुत्र के साथ वापस पृथ्वी लोक पर आए और उन्होंने अपने गुरु पुत्र के साथ ही वह पाञ्चजन्य शंख को भी गुरु जी को सौंप दिए। तब उनके गुरु जी ने पाञ्चजन्य शंख को वापस प्रभु श्री कृष्ण जी को सौंपते हुए कहा कि यह तो तुम्हारे लिए ही है। जिसके बाद अपने गुरु जी की आज्ञा से ही उन्होंने इस शंख का नाद कर पुराने युग की समाप्ति करके नव युग की स्थापना की। 

 

मान्यता है कि प्रभु श्री कृष्ण जी के पास में जो पाञ्चजन्य शंख था उसकी आवाज कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी। कहा जाता हैं कि महाभारत के युद्ध में भगवान् श्री कृष्ण जी के इस दिव्य शंख की ध्वनि से जहां एक ओर पांडवों की सेना में उत्साह का संचार होता था तो वहीँ दूसरी ओर इस शंख की ध्वनि से युद्ध भूमि में उपस्थित शत्रु सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी दिव्य ध्वनि सिंह की गर्जना से भी बहुत अधिक भयंकर थी। इस दिव्य शंख को विजय यश का प्रतीक स्वरुप माना जाता है। इस शंख में 5 अंगुलियों की आकृति होती है, वैसे तो पाञ्चजन्य शंख अभी भी मिल जाते हैं किन्तु वे सभी उतने चमत्कारिक और प्रभावशाली नहीं हैं। आजकल घरों में इनकी स्थापना वास्तुदोषों का निवारण करने के लिए की जाती है। यह पाञ्चजन्य शंख राहु और केतु ग्रहो के दुष्प्रभावों को भी कम करने में भी लाभकारी माना जाता है।

 

मान्यता है कि भगवान् श्री कृष्ण जी का वो दिव्य शंख आज भी उपस्थित है। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण जी ने महाभारत युद्ध के बाद में अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था। इस शंख के हरियाणा के करनाल में होने की कई बातें कही जाती रही है। माना जाता है कि करनाल से लगभग 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में काछवा बहलोलपुर गांव के सामने स्थित ऋषि पराशर के आश्रम में इसको रखा गया था, जहां से यह चोरी हो गया। यहां हिन्दू धर्म से जुड़ीं कई बेशकीमती वस्तुएं थीं। 20 अप्रैल 2013 को इस दिव्य शंख के इस मंदिर से चोरी होने की बातें कही जाती है।

 

एक अन्य मान्यता के अनुसार कुछ अन्य लोगों का मानना है कि भगवान् श्री कृष्ण जी का यह शंख आदि बद्री में आज भी पूरी तरह से सुरक्षित रखा हुआ है।

कुछ वर्षों पूर्व मंदिर के एक कक्ष से एक अलमारी मिली थी जिसमें अनेक बेशकीमती वस्तुएं रखी गयी थीं। उन्ही दिव्य वस्तुओं में भगवान् श्री कृष्ण जी का पाञ्चजन्य शंख भी मिला था। इसकी बनावट बिलकुल अलग और विशेष प्रकार की थी। साथ ही इसमें फूंक एक ही ओर से मारी जाती थी किन्तु आवाज 5 जगहों से निकलती थी। इस शंख को ग्रामीणों ने बजाने के बहुत प्रयास किये किन्तु किसी को भी ऐसा करने में सफलता नहीं मिली।

 

हिंदू धर्म में शंख को घर में रखना बहुत ही शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इससे सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। घर में रखे शंख के विषय में ये 8 बातें ध्यान रखने पर उससे प्राप्त होने वाली शुभता में बढ़ोतरी होती है। 

 

1- शंख को जल में नहीं रखना चाहिए।

2- शंख को भूमि पर भी नहीं रखना चाहिए। हमेशा शंख को एक साफ कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए।

3- शंख में पानी भर करके नहीं रखना चाहिए। केवल पूजन के समय शंख में पानी भरकर रखा जा सकता है। पूजा पूर्ण होने पर इस पानी का छिड़काव करने से शारीरिक मानसिक विकार समाप्त हो जाते है। साथ ही, जीवन में सौभाग्य का भी उदय होने लगता है।

4- शंख को पूजा के स्थान पर रखते समय खुला हुआ भाग ऊपर की ओर रखना चाहिए।

5- शंख को भगवान् विष्णु, माँ लक्ष्मी या बाल गोपाल की प्रतिमा के दाहिनी ओर रखा जाना चाहिए।

6- शंख को माँ लक्ष्मी जी का रूप माना गया है। इसलिए शंख को पूूजन स्थान में उसी आदर सम्मान के साथ में पूजा जाना चाहिए। जिस श्रद्धा के साथ में ईश्वर की आराधना की जाती है।

7- धन की प्राप्ति के लिए शंख को 108 चावल के दानों के साथ लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में स्थापित किया जाता है।

8- घर में शंख ध्वनि का गुंजन सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने वाला माना गया है। रोजाना घर में पूजन के समय शंख बजाना चाहिए।