एक भक्त जब भगवान शिव के दर्शन के लिए मंदिर जाता हैं तो उसका ध्यान केवल शिवलिंग पर होता है। उसके बाद में वह मंदिर की कला, शिल्प और अन्य बाकी अन्य चीजों को देखता है। शिव मंदिर की बात करें तो भगवान् नंदी को मंदिर में अधिकांशतः शिव कक्ष के बाहर देखा जाता है। शिवलिंग तक जाने के लिए पहले श्रद्धालु भगवान् नंदी के सम्मुख सिर झुकाते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं।
प्रत्येक शिव मंदिर में भगवान् शंकर के सामने ही अक्सर नंदी को बैठाया जाता है और उनका मुंह सदा शिवलिंग की ओर ही किया जाता है कई बार भक्तो को मन में शायद इसको जानने का विचार भी आता होगा। यहाँ कुछ बाते बतायी गयी है जिनसे ये स्पष्ट हो जाता है कि ऐसा क्यों किया जाता है।
भगवान् शिव जी की सवारी नंदी को माना जाता है और नंदी को पुरुषार्थ अर्थार्त परिश्रम और मेहनत का प्रतीक माना जाता है। भगवान् शिव जी की सवारी नंदी की मूर्ति को इसलिए उनके मंदिर के बहार स्थापित किया जाता हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार जिस प्रकार नंदी भगवान् शिव का वाहन है वैसे ही मनुष्य का शरीर भी आत्मा का वाहन होता है। जिस प्रकार नंदी की नजऱ प्रभु भोलेनाथ जी की ओर होती हैं वैसे ही मनुष्य की नजर भी अपनी आत्मा की ओर होनी चाहिए। अर्थात हर एक इंसान को अपनी कमियों का ध्यान रखते हुए उनको दूर करने का प्रयास करना चाहिए साथ ही अपने मन में औरों के प्रति सद्भावना, सद्विचार रखने चाहिए।
प्रभु शिव जी के वाहन नंदी की मूर्ति इस बात का संकेत भी होता है, कि मानव शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही इंसान का चरित्र, आचरण और व्यवहार पूर्णतय शुद्ध हो सकता है। अर्थात इस बात का यहीं अर्थ है कि हर व्यक्ति को अपने मानसिक, व्यावहारिक और बातचीत के गुण-दोषों की जांच सदा करते रहना चाहिए तथा अपने मन में हमेशा सर्व मंगल और कल्याण की भावना भगवान् शिव की तरह रखनी चाहिए। दूसरों के हित, परोपकार और भलाई का भाव अपने चित्त में लेकर नंदी हमेशा भगवान् शंकर की ओर मुख करके बैठते हैं।