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Ganesh Ji

भगवान् श्री गणेश जी, जिन्हें गणपति भी कहा जाता है, गज (हाथी) जैसे मस्तक को धारण करने वाले गजानन प्रथम पूजनीय  हिंदू देवता है। गणेश जी देवी पार्वती और भगवान शिव के सबसे बड़े पुत्र हैं। इनकी पूजा परंपरा के अनुसार किसी भी बड़े उत्सव, समारोह अथवा धार्मिक क्रिया में सर्वप्रथम की जाती है। अपनी बुद्धि, शांति और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध गणेश जी सबसे अधिक पूजे जाने वाले हिंदू देवताओं में से एक हैं। गणेश जी बुद्धिजीवियों, कारोबारियों, शास्त्री और लेखकों के पूजनीय देव माने जाते है तथा सभी विघ्नो (बाधाओं) को दूर कर देते हैं। उनके नाम का अर्थ है "लोगो के भगवान" ( जिसमें गण का अर्थ है सामान्य लोग और ईश शब्द का अर्थ है भगवान्) है। गणेश जी को दिव्य रूप में चित्रित किया जाता है सामान्यतः  उनके हाथ में मोदक (लड्डू) दर्शाया जाता है, जिसका उनके प्रसाद रूप में भी प्रयोग किया जाता है मोदक गणेश जी को अतैव प्रिय  है। उनका वाहन मूसक (चूहा) है, जो गणेश की इच्छा को पूर्ण करने के क्षमता का प्रतीक भी माना जाता है। चूहे और हाथी की तरह, भगवान् गणेश जी समस्त बाधाओं का निवारण करने वाले माने जाते हैं। 10 दिनो तक चलने वाला पर्व गणेश चतुर्थी उनको समर्पित माना जाता है यह त्यौहार गर्मी के दिनों में (अगस्त-सितंबर माह) में आता है।

गणेश जी के जन्म के विषय में कई अलग-अलग कहानियाँ बताई जाती हैं, जिनमें से एक में माँ पार्वती अपने पुत्र का कपडे से निर्माण करती है। तथा उसमें जीवन का संचरण करने के लिए, भगवान् शिव से आग्रह करती है।

तथा दूसरी और प्रचलित कथा के अनुसार एक बार जब देवी माँ पार्वती स्नान करने के लिए गईं, तो उन्होंने हल्दी के पेस्ट से एक बाल मानव का स्वरूप बनाया। उन्होंने फिर इस बाल स्वरूप में जीवन का संचरण किया। जिसे माँ पार्वती ने अपने बेटे के रूप में स्वीकार किया और उसको मुख्य द्वार की रक्षा करने के लिए कहा। माँ पार्वती ने उसे निर्देश दिया कि जब तक वह स्नान नहीं कर लेती, तब तक किसी को भी अंदर प्रवेश न करने दें।

जब यह बालक मुख्य पर था, तब भगवान शिव हिमालय पर्वत से अपनी तपस्या करके वापस आए। बालक ने भगवान् शिव को घर में प्रवेश करने से रोक दिया। जब भगवान् शिव उससे कारण पूछा, तो उसने कहा कि उनकी माँ अंदर स्नान कर रही है और उन्होंने किसी को भी अंदर नहीं जाने देने के लिए कहा है। यह बालक भगवान् शिव और माँ पार्वती के सम्बंध से अनभिज्ञ था। साथ ही, शिव को भी इस बालक की असली  पहचान नहीं पता थी। अपने ही घर में प्रवेश से रोकने पर भगवान् शिव क्रोधित हो गए तथा अपने त्रिशूल से इस छोटे बालक का सिर काट कर  घर में प्रवेश किया।

तभी देवी पार्वती स्नान करके बहार आयी और आंखों के सामने अपने बेटे को मृत पाकर क्रोधित हो गई। फिर उन्होंने बालक की असली पहचान भगवान् शिव को बताई और उसका जीवन लौटने के लिए कहा। सारी सच्चाई जानकर भगवान् शिव भी पश्चाताप से भर गए। शिव एक सरल और साधारण देव हैं, इसलिए भक्त प्रेम से उनको भाले नाथ नाम भी देते हैं। यद्यपि वह बहुत अधिक क्रोधित भी हो जाते है, किन्तु उनको प्रसन्न करना बहुत आसान है। शिव जी स्वयं भी बालक को जीवित करने के इच्छुक थे। लेकिन यह असंभव था अतः उन्होंने माँ पार्वती से कहा कि उस बालक का सिर उसके धड़ से नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि उनके त्रिशूल का प्रभाव अपरिवर्तनीय है। इसलिए मृत शरीर के लिए एक नया सिर खोजना होगा।

शिव जान गए थे कि छोटे बालक ने अपनी माँ की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी जान गंवा दी। अपनी माँ के लिए लड़के का प्यार अद्वितीय था। उन्होंने अपने बैल नंदी को पुकारा तथा आदेश दिया कि अपनी माँ से दूर पाए जाने वाले पहले प्राणी का सिर लेकर लाए। जिसका कारण था कि जो बालक अपनी माँ से प्यार नहीं करता है वह उससे दूर हो जाएगा। नंदी को एक बाल हाथी मिला जिसका सिर वह लेकर आ गया।

भगवान् शिव ने हाथी के सिर को बालक के धड़ से जोड़कर उसमें वापस प्राणों का संचार किया। जिससे माँ पार्वती अपने बेटे को जीवित देखकर बहुत खुश हुई किन्तु उन्हें भय था कि उसकी असामान्य शारीरिक संरचना के लिए बालक का मज़ाक उड़ाया जाएगा। उन्होंने सोचा कि उनका बेटा कभी भी देवताओं में अपना सही स्थान नहीं बना पाएगा। कोई भी ऐसे देवता की पूजा नहीं करेगा जिसके पास एक मानव शरीर और एक हाथी का सिर है। माँ पार्वती की इस परेशानी को भगवान् शिव जान गए तथा उनके भय को दूर करने के लिए, शिव ने सभी देवताओं का आह्वान करके अपने पुत्र को आशीर्वाद देने के लिए कहा। देवताओं ने माँ गौरी के पुत्र को आशीर्वाद दिया और कई वरदान भी दिए। भगवान् शिव ने उन्हें अपने पुत्र के रूप में पहचान दी और उनका नाम "गणेश" या "गणपति" रखा। गणपति का अर्थ है "प्राणियों के सभी वर्गों का नेता। साथ ही किसी भी भगवान की पूजा से पहले गणेश जी का आशीर्वाद लेने और पूजन की परंपरा शिव ने स्थापित की, आज भी जिसका अनुसरण किया जाता है।  गणेश जी को सभी हिंदू संप्रदायों द्वारा पूजा जाता है।


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