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Maa Durga

माँ दुर्गा हिंदू सभ्यता में सबसे अधिक सम्मानित देवी हैं। माँ दुर्गा का वाहन बाघ (शेर) हैं, उनकी पूजा दुनिया भर के सभी हिंदुओं द्वारा की जाती है। माँ दुर्गा स्त्रैण ऊर्जा या 'शक्ति' का प्रतीक है। देवी दुर्गा को प्रतीक स्वरुप में शेर या बाघ की सवारी करते हुए दिखाया जाता है। माँ दुर्गा शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है और अपनी 10 भुजाओं में विभिन्न अस्त्र, शस्त्र, कमल पुष्प धारण किये हुए है। माँ दुर्गा के कई रूप हैं और उनके प्रत्येक रूप का एक विशेष महत्व है। देवी माँ दुर्गा त्रिदेव यानि भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा का मूल स्त्रोत मानी गयी है। माँ दुर्गा एक स्वयमेव शक्ति और सर्व शक्तिमान मानी गयी है।

हिंदू पौराणिक कथाओं में माँ दुर्गा को एक सर्व शक्तिशाली देव स्वरुप 'शक्ति' कहा गया हैं, जो मानव कल्याण और परोपकार के लिए विभिन्न रूपों में पूजी जाती हैं। वह
उमा है - "चमकदार"
गौरी है - "सफेद या श्वेत"
पार्वती है - "पर्वतारोही"
जगदम्बा है - अपने दूधिया आँचल में "माँ-की-दुनिया"
दुर्गा है - "दुर्गम एक भयानक रूप"
काली है - "कालिका"
चंडी है - "उग्र"
भैरवी है - "भयानक"

दुर्गा, यानि कि शेर पर सवार एक भव्य योद्धा। दिव्य स्वरुप में एक शेर के साथ देवी माँ दुर्गा "अभय मुद्रा" से जानी जाती हैं, जो भय से मुक्ति प्रदान करती है। सार्वभौमिक माँ अपने सभी श्रद्धालु भक्तों से कह रही है "अपने सभी कार्यों और कर्तव्यों को मुझे  समर्पण कर दो और मैं तुम्हें सभी परेशानियों से मुक्त कर दूंगी"। माँ दुर्गा को आठ या दस भुजाओ वाली कहा जाता है जो कि  हिंदू सभ्यता का आठ चतुर्थांश या दस दिशाओं का प्रतीक स्वरुप माना जाता हैं। जो बताता है कि माँ सभी दिशाओं से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।

माँ दुर्गा के हाथ में शंख 'प्रणव' या दिव्य शब्द `ओम` का प्रतीक है, जो उसे ध्वनि के रूप में भगवान को धारण करने का संकेत देता है।
धनुष और बाण ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं। धनुष और बाण दोनों को एक हाथ में पकड़कर "माँ दुर्गा" ऊर्जा के दोनों रूपों - क्षमता और गति पर नियंत्रण को परिभाषित कर रही है। वज्र दृढ़ता को दर्शाता है। माँ दुर्गा के भक्तों को आकाशीय बिजली की गड़गड़ाहट की तरह दृढ़ होना चाहिए। जिस प्रकार एक वज्र अपने सामने आने वाली किसी भी वस्तु को तोड़ सकता है वो भी स्वयं बिना प्रभावित हुए। इसी प्रकार माँ दुर्गा के भक्त को भी बिना अपना आत्मविश्वास खोये हर एक चुनौती का डटकर सामना करना चाहिए।

माँ दुर्गा के हाथ में जो कमल दिखाया गया है वह पूर्ण रूप से खिला नहीं है, जो कि सफलता की निश्चितता का प्रतीक है लेकिन अंतिमता का नहीं। संस्कृत भाषा में कमल को "पंकजा" कहा जाता है जिसका अर्थ होता है कीचड़ से पैदा होने वाला। इस प्रकार, वासना और लालच के सांसारिक कीचड़ के बीच भक्तों की आध्यात्मिक गुणवत्ता के निरंतर विकास को दर्शाने के लिए माँ दुर्गा के हाथो में कमल खड़ा है।
माँ दुर्गा का प्रतीक "सुदर्शन-चक्र" है एक सुंदर चक्र, जो देवी माँ की तर्जनी ऊँगली के चारों ओर घूमता है, बिना ऊँगली को छुए। जो प्रदर्शित करता है कि ये पूरी दुनिया माँ दुर्गा की इच्छा के अधीनस्थ है और उनकी आज्ञा से चलती है। वह बुराई को नष्ट करने और धार्मिकता के विकास के लिए अनुकूल माहौल उत्पन्न करने के लिए इस अमोघ अस्त्र का उपयोग करती है।

तलवार जिसको माँ दुर्गा अपने हाथों में धारण करती है वह ज्ञान का प्रतीक है, जिसमें तलवार जैसी तीव्र धार है। ज्ञान जो कि भक्तो को सभी संदेहों से मुक्त कर देता है, तलवार की चमक का प्रदर्शित करता है। माँ दुर्गा का "त्रिशूल" तीन गुणों का प्रतीक है - सतव (सही गतिविधि), रजस (गतिविधि) और तमस (गैर-गतिविधि) - जो कि सभी तीन प्रकार के दुखों (शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक) का निवारण करता है।

देवी माँ दुर्गा ने महिषासुर दैत्य से युद्ध करने के लिए ब्रह्मा (निर्माता), विष्णु (पालक) और शिव (संहारक) की ऊर्जा का संग्रहण किया। महिषासुर दैत्य को मिले वरदान से वह भगवान के किसी अवतार द्वारा नहीं मारा जा सकता था। जब त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उसे रोकने में असफल हो गए तो इस दानव का संहार करने के लिए एक स्त्री शक्ति की आवश्यकता थी, क्योंकि यह तीनों लोकों में बहुत विनाश विनाश कर चुका था। तब देवी माँ दुर्गा का निर्माण शक्ति रूप में किया गया जिनको सभी देवताओं द्वारा अलग-अलग शस्त्रों से अलंकृत किया गया। जिनमें से त्रिशूल को माँ की प्रतिमाओं में मुख्य रूप से चित्रित किया गया हैं साथ ही सुदर्शन चक्र, तलवार, धनुष, तीर और अन्य दिव्य शस्त्र भी माँ ने धारण किये हुए है।


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