वैदिक शास्त्रों में, देवी सरस्वती विद्या, ज्ञान, संगीत, कला और कौशल की देवी हैं। संस्कृत में, सरस्वती का अर्थ है "स्वयं का सार" होता है। देवी सरस्वती भगवान ब्रह्मा की संज्ञा हैं, और इसलिए, स्वयंमेव सभी ज्ञान का स्रोत हैं। चूँकि सृष्टि सञ्चालन के लिए ज्ञान आवश्यक है, इसलिए माँ सरस्वती, ब्रह्मा जी की रचनात्मक शक्ति का प्रतीक है। वह एक सुंदर देवी हैं, जो स्वर और ज्ञान के तेज से प्रकाशित हो रही हैं। सरस्वती को 'सुरस - वती' भी कहा जाता है। जिसका मतलब है, वह जो बहुत सारे शुद्ध ज्ञान का प्रवाह। जिस प्रकार किसी नदी में गंदगी पानी के तेज बहाव के साथ बह जाती है, ठीक वैसे ही मन में अज्ञानता देवी माँ सरस्वती द्वारा दिए गए ज्ञान के साथ बह जाती है।
भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का निर्माण करने के पश्चात, उन्होंने महसूस किया कि इसमें रूपों, अवधारणाओं और संवेदना का अभाव है। उनको ब्रह्मांड को व्यवस्थित करने के लिए किसी और अन्य शक्ति की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने इस अत्यंत कठिन कार्य में सहायता करने के लिए ज्ञान की दिव्य शक्ति के निर्माण का निर्णय लिया, और उनके मुंह से देवी सरस्वती का उदय हुआ। माँ सरस्वती ने उनको ब्रह्मांड में व्यवस्था बनाने में सहायता प्रदान की। जिनकी सहायता से सूर्य, चंद्रमा और सितारों का जन्म हुआ, समुद्रों का उदय हुआ और ऋतुएँ बदली गईं। ब्रह्माण्ड में इस प्राण शक्ति के संचरण से हर्षित ब्रह्मा जी ने तब माँ सरस्वती को - वाग्देवी, वाणी और ध्वनि की देवी जैसे नाम दिए। इस प्रकार ब्रह्मा जी ने, ज्ञान के स्रोत रूप में माँ सरस्वती को साथ लेकर सृष्टि का निर्माण किया। ब्रह्मा जी वेदों के ज्ञाता है जो कि ज्ञानी और जिज्ञासुों के द्वारा पूजित है। माँ सरस्वती चेतना की नदी है जो सृष्टि में संवेदना का निर्माण करती है, भोर होने की तरह देवी की दिव्य ज्ञान रुपी किरणें अज्ञानता के अंधकार को दूर कर देती हैं।
देवी माँ सरस्वती को गायत्री के नाम से भी जाना जाता है, जो कि गायत्री मंत्र का प्राण है। इसका नाम शिथिल रूप से बहने वाली के रूप में भी अनुवादित है, यही कारण है कि सरस्वती नदी को भी इनका नाम दिया गया। वह ऋग्वेद में नदियों की देवी हैं। उनके बौद्धिक विचारों और शब्दों पर भी यही अर्थ लागू होता है। वह ज्ञान और चेतना के मुक्त प्रवाह का प्रतिनिधित्व भी करती है और वेदों की जननी मानी जाती है। ज्ञान, संगीत, कला, और प्रकृति की देवी माँ सरस्वती ज्ञान और चेतना के मुक्त प्रवाह का प्रतिनिधित्व करती हैं। वें वेदों की जननी हैं, और उनकी आरधना के लिए प्रयोग किये जाने वाले मन्त्रों को 'सरस्वती वंदना' कहा जाता है। वैदिक पाठ को शुरू और पूर्ण करने के लिए इनका प्रयोग किया जाता हैं।
ऐसा माना जाता है कि माँ सरस्वती मनुष्य को वाणी, बुद्धि और विद्या की शक्तियाँ प्रदान करती हैं। उनकी चार भुजाएं मन, बुद्धि, चेतना और अहंकार पर विजय का प्रतीक है। माँ सरस्वती के प्रतीकात्मक स्वरुप में, उनके एक हाथ में पवित्र ग्रंथ और दूसरे हाथ में कमल, सच्चे ज्ञान को प्रदर्शित करते है।
अपने अन्य दोनो हाथों से, माँ सरस्वती वीणा नामक एक वाद्य यंत्र को धारण करके प्रेम और जीवन चेतना का संगीत बजाती है। उन्होंने सफेद वस्त्र धारण किये हुए हैं जो कि पवित्रता का प्रतीक है और सफेद हंस पर सवार है, जो सत्त्वगुण (पवित्रता और सदभाव) का प्रतीक है। माँ सरस्वती को बौद्ध मूर्तिलेखों में भी एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में मंजुश्री की पत्नी कहा गया है।
विद्वान् और प्रबुद्ध व्यक्ति ज्ञान की देवी के रूप में माँ सरस्वती की पूजा को बहुत महत्व देते हैं। उनका मानना है कि माँ सरस्वती ही उनको मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान प्रदान कर सकती हैं जिससे उनकी आत्मा की मुक्ति संभव हो पाएगी।
माँ सरस्वती का जन्म दिन, यानि वसंत पंचमी, एक पवित्र हिंदू धार्मिक पर्व है जो प्रत्येक वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हिंदू इस त्योहार के दिन मंदिरों, घरों और शैक्षणिक संस्थानों में सुन्दर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं। बच्चों को इस दिन से पढ़ने और लिखने का पहला पाठ दिया जाता है। सभी हिंदू शिक्षण संस्थानो में इस दिन माँ सरस्वती की पूजा के लिए विशेष प्रार्थना का आयोजन किया जाता हैं।