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Bhishma Panchak

महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा मे शरशैया पर लेटे हुए थे। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पाँचो पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये।

इस अवसर को श्रेष्ठ मानकर युधिष्ठर ने पितामह भीष्म से उपदेश देने की विनती की। जिसे स्वीकार करते हुए भीष्म ने पाँच दिनो तक राज धर्म, वर्णधर्म, तथा मोक्षधर्म आदि पर उनको ज्ञान उपदेश दिया। पितामह का उपदेश सुनकर श्री कृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बडी प्रसन्नता हुई है। मैं इस दिव्य ज्ञान स्मृति में इन पांच दिनों को आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत के रूप में स्थापित करता हूँ। तभी से कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तिथि तक के ये पांच दिन भीष्म पंचक के नाम से जाने जाते है। जो लोग इन दिनों में व्रत उपवास का अनुकरण करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त होंगे।