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Chhath Puja

छठ पूजा एक ऐसा त्यौहार है जो प्रत्येक वर्ष लोगों द्वारा बहुत हर्ष और उल्लास के साथ में मनाया जाता है। छठ पूजा हिंदू धर्म का बहुत प्राचीन पर्व है, जो ऊर्जा के स्त्रोत्र भगवान् सूर्य देव की उपासना के लिए समर्पित है। छठ पूजा पर्व के विषय में मान्यता है कि यह सबसे पुराना त्यौहार है, जो कि शायद प्राचीन वेदों की उत्पत्ति से भी पहले से मनाया जाता है। क्योंकि ऋग्वेद में सूर्य की उपासना के भजन और इसी तरह के कुछ अनुष्ठानो का वर्णन भी देखने को मिलता हैं जैसे इस त्यौहार में होते हैं। इन अनुष्ठानों का महाभारत में भी एक जगह उल्लेख देखने को मिलता है जहां द्रौपदी को इसी तरह के अनुष्ठानों का प्रदर्शन करते हुए दिखाया गया है। 

"छठ" शब्द का अर्थ नेपाली, मैथिली और भोजपुरी भाषाओं में छठा है। यह हिन्दू विक्रमी सम्वत पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि को मनाया जाता है। छठे दिन मनाये जाने के कारण ही इसको छठ पूजा के नाम से जाना जाता है। नौ दिन तक चलने वाले नवरात्रि पर्व के बाद सबसे लंबा और महत्वपूर्ण त्योहार छठ पूजा ही है क्योंकि यह भी लगभग चार दिनों तक मनाया जाता है।छठ पूजा को सूर्य षष्ठी के रूप में भी जाना जाता है। 

पृथ्वी पर सदैव जीवन उत्सर्जन का अद्भुत  आशीर्वाद पाने के लिए लोग भगवान सूर्य नारायण के प्रति अपना धन्यवाद प्रकट करने हेतु यह त्यौहार मनाते हैं। बहुत उत्साह के साथ लोग सूर्य देव का पूजन करते हैं और अपने परिवारिक सदस्यों, दोस्तों और बुजुर्गों की सफलता, मंगल और प्रगति के लिए प्रार्थना करते हैं। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार सूर्य देव की पूजा से कुछ विशेष श्रेणी रोगों का इलाज भी संभव है जिनमें त्वचा से जुड़े रोग प्रमुख है।
 
चार दिनों तक चलने वाले छठ पर्व के अनुष्ठान काफी कठिन होते हैं। जैसे कि पवित्र स्नान, व्रत, लंबे समय तक पानी में खड़े रहना और अस्त और उगते सूरज को प्रार्थना प्रसाद और अर्घ्य अर्पण करना। छठ पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र गंगा में नहाकर पूरे दिन व्रत रखने का प्रचलन है, यहाँ तक कि श्रद्धालु पानी भी नहीं पीते और एक लम्बे समय तक पानी में ही खड़े रहते हैं। 

छठ पर्व के माध्यम से एक अच्छा जीवन प्रदान करने के लिए सूर्यदेव को धन्यवाद देने के धार्मिक महत्व के साथ ही, सभी भारतीय इस त्यौहार के अनुष्ठानों से कुछ विज्ञान भी जुड़ा हुआ है। छठ पूजा के अनुष्ठान में नदी के तट पर लंबे समय तक खड़े होकर प्रार्थना करना होता हैं। सूर्य की पराबैंगनी किरणें सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अपने सबसे निचले स्तर पर होती हैं और इसीलिए इन दोनो समय में सूर्य की किरणें सबसे अधिक फायदेमंद होती हैं। ये सूरज की किरणें फिर सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को हटाकर मन, शरीर और आत्मा को शुद्धता और सात्विकता प्रदान करते हैं।

छठ पूजा के दिन छठी मैया (भगवान सूर्य देव की पत्नी) की भी पूजा की जाती है, छठी मैया को वेदों में ऊषा के नाम से भी जाना जाता है। मिथिलांचल क्षेत्र में उनको "राणा माई" के नाम से भी पूजा जाता है। ऊषा का अर्थ होता है सुबह (दिन की पहली किरण)। जिन्हे यह पर्व पृथ्वी पर जीवन संचरण के लिए एक स्वीकृति के रूप में समर्पित है। लोग अपनी समस्याओं को दूर करने के साथ - साथ मोक्ष या मुक्ति प्राप्त करने के लिए भी इस दिन छठी मैया से प्रार्थना करते हैं।

यह एकमात्र हिंदू पर्व है जो दुनिया भर में उगते और डूबते सूर्य की पूजा को दर्शाता है। कुछ लोग यह मानते हैं कि सूर्य पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी के जीवन के लिए आवश्यक है और यह त्यौहार जाति, पंथ, लिंग, नस्ल और सामाजिक विषमता से परे सभी के द्वारा हर्षोल्लास से मनाया जाता है। 

यह पर्व भारत के बिहार, यूपी, झारखण्ड जैसे राज्यों में विशेष रूप से मनाया जाता है, और साथ ही नेपाल के भी कुछ भागों में सामान्यतः इस त्योहार को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा देहरी-ओन-सोने, पटना, देव और गया में बहुत प्रसिद्ध है। धीरे धीरे यह पर्व बहुत प्रसिद्ध हो चुका है और अब ये पूरे भारत में काफी प्रचलित हो चुका है। 

छठ पूजा का त्यौहार क्रमशः भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के मधेश क्षेत्र के लोगों द्वारा प्रमुखता से मनाया जाता है। जो लोग इन क्षेत्रों से निकलकर कहीं और जाकर रहने लगे है, उन्होंने भी छठ उत्सव को मनाना बंद नहीं किया है। इसलिए, भारत में उत्तरी, दक्षिणी और मध्य शहरी क्षेत्रों में भी छठ का उत्सव देखने को मिलता है। मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बेंगलुरु आदि भी कुछ लोग छठ पर्व मनाते हैं। इसी प्रकार, अब तो विदेशों जैसे कि मॉरीशस, संयुक्त राज्य अमेरिका, फिजी, यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका, आयरलैंड गणराज्य, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, जमैका, गुयाना, कैरेबियन के अन्य भागों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, में रहने वाले भारतीय या नेपाली मूल के लोग भी छठ पूजा श्रद्धा, समर्पण और उल्लास के साथ में मनाते हैं। 

कुछ स्थानों पर छठ पूजा का एक रूप चैत्री छठ के नाम से चैत्र के महीने (मार्च और अप्रैल) में होली उत्सव के कुछ दिन बाद मनाया जाता है।
 
छठ पूजा पर्व इतिहास :
 
छठ पर्व का वैज्ञानिक या योगिक इतिहास वैदिक काल से भी है, क्योंकि उस समय विद्वानों तथा ऋषियों ने इस तकनीक का उपयोग भोजन के बिना जीवित रहने के लिए किया था क्योंकि वे सूर्य की किरणों से ऊर्जा को अवशोषित करते थे। 

छठ पूजा पर्व हिन्दू धर्म में अपना एक विशेष महत्व रखती है और ऐसी मान्यता है कि एक बार राजा द्वारा पुराने पुरोहितों से उनके महल में आने और भगवान सूर्य देव की परंपरागत विधिपूर्वक पूजा करने के लिये अनुरोध किया गया था। जिसे स्वीकार करते हुए उन्होनें प्राचीन ऋगवेद से मंत्रों और स्त्रोतों का पाठ करके सूर्यदेव भगवान की पूजा की। 

छठ पूजा हस्तिनापुर के पांडवों और द्रौपदी के द्वारा अपने जीवन की समस्याओं को हल करने और अपने राज्य को पुनः वापस प्राप्त करने के लिये भी की गयी थी। चतुर धौम्य के सुझाव से, पांडवों और द्रौपदी द्वारा छठ का अनुष्ठान किया गया था। सूर्य देव की इस पूजा ने द्रौपदी की कई समस्याओं को हल कर दिया और बाद में पांडवों को अपना राज्य वापस पाने में मदद की। कुछ लोगो का ये भी मानना है कि छठ पूजा सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा शुरु की गयी थी। जो कि महाभारत के युद्ध का एक  महान योद्धा था और अंगदेश (बिहार का मुंगेर जिला) का शासक था।
 
छठ पूजा उत्सव की एक दूसरी ऐतिहासिक कथा भगवान श्री राम जी से जुडी है। ऐसा कहा जाता है कि चौदह वर्षों के वनवास के बाद में जब भगवान राम और माता सीता अयोध्या वापस लौट आये थे तो राज्यभिषेक के समय उन्होंने कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में उपवास रखकर भगवान सूर्य देव की पूजा की थी। तभी से, छठ पूजा हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण और परंपरागत त्यौहार बन गया और लोगों ने उसी तिथि को प्रत्येक वर्ष छठ पूजा मनाना शुरु कर दिया। 

छठ पूजा व्रत की कथा :


बहुत समय पहले, प्रियव्रत नाम का एक राजा था और उसकी पत्नी का नाम मालिनी था। प्रियव्रत अपने राज्य में सुख पूर्वक राज करते थे मगर कोई संतान न होने के कारण वह कुछ परेशान रहते थे। जिसके लिए उन्होंने महर्षि कश्यप से सहायता मांगी। सन्तान प्राप्ति के लिए महिर्षि कश्यप ने उन्हें बहुत बडा यज्ञ करने के लिए कहा। राजा प्रियव्रत ने यज्ञ का आयोजन किया जिस के प्रभाव रानी गर्भवती हो गयी मगर नौ महीने के बाद में जब उन्होंने बच्चे को जन्म दिया तो वह मृत था। इस घटना से राजा बहुत दुःखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निर्णय लिया। 

लेकिन जैसे ही वो आत्महत्या करने के लिए गए उनके सामने एक देवी प्रकट हो गयी। देवी ने कहा, मैं देवी छठी मैया हूँ और जो कोई भी मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है उसे गुणवती सन्तान की प्राप्ति होती है। राजा प्रियव्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी छठ माई के आशीर्वाद से सुन्दर और प्यारी संतान की प्राप्ति हुई। तभी से लोगों ने छठ पूजा का व्रत उत्सव मनाना शुरु कर दिया।
 
छठ उत्सव की पूजा चार दिनों तक चलने वाली एक महत्वपूर्ण पूजा है जिसमें एक - एक विधि-विधान को महत्व दिया जाता है। छठ पूजा की इन विधियों में पूजन सामग्री भी मुख्य है क्योंकि इस पूजन सामग्री के बिना छठ की पूजा को अधूरा माना जाता है। 

छठ पूजा में प्रयोग की जाने वाली पूजन सामग्री निम्नलिखित है - 
- बाँस या पीतल की सूप, 
- बाँस के फट्टे से बने दौरा, 
- डलिया और डगरा, 
- पानी वाला नारियल, 
- गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, 
- सुथनी, 
- शकरकंदी, 
- हल्दी और अदरक का पौधा (हरा हो तो अच्छा), 
- नाशपाती, 
- नींबू बड़ा, 
- शहद की डिब्बी, 
- पान और साबूत सुपारी, 
- कैराव, 
- सिंदूर, 
- कपूर, 
- कुमकुम, 
- चावल (अक्षत), 
- चन्दन, 
- मिठाई। 
इसके अतिरिक्त घर में बने हुए पकवान जैसे ठेकुवा, खस्ता, पुवा, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, इत्यादि छठ पूजन की सामग्री में प्रसाद के रूप में शामिल किये जाते हैं।
 
छठ पर्व से जुड़ी परम्पराएं - 
 
ऐसी भी मान्यता है कि छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेने के बाद व्रत, नियम और संयम के चार दिनों में अपने मुख्य परिवार से अलग हो जाता है। इन चार दिनों की समायावधि के दौरान वह शुद्ध भावना के साथ में एक कंबल लेकर फर्श पर सोता है। छठ पर्व से जुडी एक सामान्य अवधारणा है कि यदि एक बार किसी परिवार नें छठ पूजा करनी शुरु कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढी को भी इस पूजा को प्रतिवर्ष करना पडेगा और इसे केवल उसी वर्ष छोड़ा जा सकता है जब परिवार में किसी की मृत्यु हो गयी हो।

छठ उत्सव के समय श्रद्धालु भक्त मिठाई, खीर, थेकुआ और फल सहित एक छोटी बाँस की टोकरी में सूर्य देव को प्रसाद अर्पण करते है। प्रसाद की शुद्धता और सात्विकता को बनाये रखने के लिये इसमें नमक, प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता है। 

चार दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में, पहले दिन भक्त सुबह सवेरे जल्दी उठकर गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं और प्रसाद बनाने के लिये भी कुछ जल घर लेकर आते हैं। इस दिन घर में तथा आसपास साफ-सफाई होनी चाहिये। व्रत के चार दिनों में श्रद्धालु केवल एक वक्त का खाना खाते हैं, जिसे कद्दू-भात के नाम से जाना जाता है जो केवल मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकडियों का प्रयोग करके ताँबे या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है।

दूसरे दिन यानि छठ से एक दिन पहले पंचमी तिथि को, श्रद्धालु भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम के समय पृथ्वी की पूजा के बाद सूर्य अस्त होने पर  व्रत खोलते हैं। इस दिन पूजा में खीर, पूरी, और फल अर्पित किये जाते हैं। इसके बाद शाम को खाना खाकर, बिना पानी पीये 36 घण्टे का उपवास रखा जाता हैं।

तीसरे दिन जो कि छठ पूजा का प्रमुख दिन होता है श्रद्धालु भक्त नदी के किनारे घाट पर संध्या के समय सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के बाद महिलाएं पीले रंग की साडी पहनती हैं। परिवार के अन्य सभी सदस्य पूजा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इंतजार करते हैं। छठ पूजा की रात को पाँच गन्नों को खड़ा करके उनके नीचे मिट्टी के दिये जलाकर पारम्परिक कार्यक्रम मनाया जाता है। ये पाँच गन्ने पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का प्रतीक माना जाता हैं, जिनसे मनुष्य के शरीर का निर्माण होता हैं।

चौथे दिन की सुबह (पारुन), भक्त अपने परिवार और मित्रों के साथ गंगा नदी के किनारे बिहानिया अर्घ्य अर्पित करते है। इसके बाद में श्रद्धालु भक्त छठ प्रसाद खाकर व्रत खोल लेते है।

छठ पूजा का महत्व :
 
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की जाने वाली छठ पूजा का  एक विशेष महत्व है। सूर्योदय और सूर्यास्त का समय दिन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है, क्योंकि इस समय मानव शरीर सुरक्षित रूप से बिना किसी हानि के सौर ऊर्जा ग्रहण कर सकता हैं। यही कारण है कि छठ महोत्सव में सूर्य को संध्या अर्घ्य और विहानिया अर्घ्य देना व्रत की सबसे महत्वपूर्ण क्रिया है। इस समय अवधि के दौरान सूर्य देव की किरणों में सौर ऊर्जा, पराबैंगनी विकिरण के न्यूनतम स्तर पर होती है इसलिए व्यक्ति के शरीर लिए बिलकुल सुरक्षित होती है। लोग पृथ्वी पर जीवन को बनाये रखने में भगवान् सूर्यदेव के योगदान का आभार प्रकट करने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए छठ पूजा व्रत का पालन करते हैं।
 
छठ पूजा का अनुष्ठान, (शरीर और मन का शुद्धिकरण करके) मानसिक शांति प्रदान करता है, व्यक्ति के शरीर में ऊर्जा के स्तर और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, क्रोध और ईर्ष्या की आवृत्ति के साथ ही नकारात्मक भावनाओं को भी बहुत कम कर देता है। ऐसी भी मान्यता है कि छठ पूजा उत्सव के अनुष्ठान व्यक्ति की उम्र के बढ़ने की प्रक्रिया को कम कर देता है। इस तरह की धार्मिक मान्यताएँ और वैज्ञानिकता पर आधारित रीति-रिवाज छठ महोत्सव को हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार बनाते हैं।