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Dhanteras

हिंदू विक्रमी सम्वत पंचांग कैलेंडर के कार्तिक महीने की तेरस (तेरहवें दिन) को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। धनतेरस को धन त्रयोदशी व धन्‍वंतरि त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस के दिन धन धान्य का उत्सव मनाया जाता है, क्योंकि धन शब्द  संपत्ति के लिए प्रयोग किया जाता है और 'तेरस' कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के लिए प्रयोग किया जाता है। पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। धनतेरस पर्व पर, देवी लक्ष्मी - धन की देवी - स्वास्थ्य, समृद्धि और कल्याण प्रदान करने के लिए पूजा की जाती है। 

ऐसी मान्‍यता है कि समुद्र मंथन के दौरान धनतेरस के दिन ही आयुर्वेद के देवता भगवान धन्‍वंतरि और धन की देवी माता लक्ष्मी अन्य खजानो के साथ समुद्र से निकली थीं। इसलिए, यह दिन देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर को समर्पित है। इस दिन माता लक्ष्‍मी के साथ भगवान धन्‍वंतरि और धन के देवता भगवान कुबेर की पूजा का भी विधान है। 
 
धनतेरस के दिन धन प्राप्ति के उपाय करने से धन के योग बनते हैं। यह धन का त्योहार है, देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर की, जो कि दुनिया के खजांची हैं, भक्तों द्वारा पूजा की जाती है। धन प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ देवी-देवता माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर को माना जाता है। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं, कुबेर यदि कृपा दृष्टि बनाएं तो कोई भी व्यक्ति धन की प्राप्ति कर सकता है। घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहे इसलिए इस दिन इनकी पूजा की जाती है। लक्ष्मी माता की पूजा करना और धनतेरस या धनत्रयोदशी के दिन नई चीजें घर लाना सौभाग्य की बात होती है। इसीलिए धनतेरस के दिन सोने-चांदी और बरतन खरीदना शुभ माना जाता है। 
 
इसके अलावा धनतेरस के दिन मृत्‍यु के देवता भगवान यम की भी पूजा की जाती हैं। धनतरेस के दिन शाम को पूजा के बाद घर के द्वार पर दक्षिण दिशा में एक बड़ा दीपक जलाकर रखा जाता है, उस दीपक का नाता यम देवता से होता है। इससे जीवन से अकाल मृत्यु का योग टल जाता हैं।  
 
व्यापारी वर्ग के लोगो के लिए यह दिन बहुत ही खास होता है। वह लोग इस दिन सोने चांदी के सिक्के घर लाते है इनको घर लाना बहुत शुभ माना जाता है।  धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन का बहुत महत्व माना जाता है। इस दिन घरो में नए बर्तन खरीदने का भी चलन है। इस दिन चाँदी को या चांदी के बर्तनों को खरीदना शुभ माना जाता है। धन देने से पहले मनुष्य को बुद्धिमत्ता का विकास करना चाहिए। इसके साथ ही अपने तन, मन को भी शीतल करना चाहिए। 
 
इस दिन चंद्रमा जो कि शीतलता का प्रतीक माना जाता है उसकी बनी धातु चांदी ख़रीदी जाती है। इस लिए धनतेरस के दिन बर्तन और चांदी को खरीदना शुभ माना जाता है। इस प्रकार धनतेरस के दिन बर्तन ख़रीदने की प्रथा प्रचलित है। इस दिन लोग नए वस्त्र खरीदते है, इस दिन नए वस्त्र, सिक्का, गहनों, उपहार, बर्तनों की खरीदारी करना भी बहुत शुभ माना जाता है। 
 
धनतेरस पूजा करते समय सात अनाज की भी पूजा की जाती है। सात अनाज में गेहू, उडद, मुंग, चना, चावल, जो, मसूर आदि सम्मिलित किये जाते है। इनकी पूजा के साथ-साथ पूजन समग्री में विशेष रूप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना शुभ माना जाता है। इस दिन पूजा में भी भोग लगाने के लिए नेवेद्य के रूप में श्वेत मिष्ठान का उपयोग किया जाता है। 
 
इस दिन का धार्मिक और समाजिक दृष्टि से भी बहुत महत्व माना जाता है। धनतेरस के लिए शास्त्रों में भी कहा गया है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज को निमित मानकर दीपदान किया जाता है वहां पर अकाल मृत्यु नहीं होती है। यहाँ तक कि दिवाली की सजावट भी इसी दिन से ही शुरू हो जाती है। इसी दिन से लोग अपने घरो को अच्छे से सजाते है रंगोली आदि बनाते है। शाम के समय लक्ष्मी जी का आवाहन भी धनतेरस से ही शुरू हो जाता है। 

धनतेरस के दिन मिटटी को दूध में भिगो कर उसमे सेमर की शाखा डालकर लगातार तीन बार अपने शरीर में फेरना और फिर कुमकुम लगाना भी बहुत शुभ माना जाता है। इसके बाद कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआँ, मन्दिर आदि स्थानों पर जा कर दीपक जलाना चाहिए। सूर्य में चतुर्दशी और अमावस्या की संध्या को जलती लकड़ी की मसाल से पितरो का मार्ग प्रेषित करना चाहिए। इस दिन घर में सफाई जरूर करनी चाहिए। रूप और सौंदर्य की प्राप्ति के लिए स्नान करने से पहले उबटन लगाए और फिर स्नान करे।

कुछ लोगो का मानना है कि हनुमान जी का जन्म भी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में ही हुआ था इस लिए धनतेरस को कुछ जगह हनुमान जयंती भी मनाई जाती है।


धनतेरस पर्व से जुडी कुछ कहानियाँ :
 
भगवान धनवंतरी की कहानी- भगवान धनवंतरी, जिन्हें देवताओं का चिकित्सक भी माना जाता है तथा जो श्री हरि विष्णु जी के अवतार हैं। उनकी उत्पत्ति धनतेरस के दिन देवताओं और राक्षसों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकले थे। भगवान धन्वंतरी मानव कल्याण लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा के ज्ञान के साथ प्रकट हुए।
 
राजा हेमा की कहानी- राजा हेमा के लिए यह भविष्यवाणी की गई थी कि उसकी मृत्यु अपनी शादी के चौथे दिन साँप के काटने से हो जाएगी। जब हेमा की बुद्धिमान पत्नी को इस तरह की भविष्यवाणी का पता चला, तो राजा की पत्नी ने अपने पति को मरने नहीं देने का संकल्प किया और उसने एक योजना बनाई। अपनी शादी के चौथे दिन उसने शयन कक्ष के प्रवेश द्वार पर सभी धन और आभूषण एकत्र किए और आसपास के हर नुक्कड़ पर दीपक जलाए। उसने फिर गीत गाने शुरू कर दिए और अपने पति को सोने से रोकने के लिए एक के बाद एक कहानियाँ सुनाना शुरू कर दिया।
 
मध्य रात्रि के समय, मृत्यु के देवता, भगवान यम, एक साँप का रूप धरके राजा के महल में पहुंचे। दीयों की तेज रोशनी और चमक ने उसकी आंखों को अंधा कर दिया और वह उनके कक्ष में प्रवेश नहीं कर सका। इस प्रकार, भगवान यम राजा के बेटे को काटने का मौका पाने के इंतजार में पूरी रात बैठे रहे। क्योंकि राजा के बेटे की पत्नी पूरी रात गाने गाती रही और कहानियाँ सुनाती रही, इसलिए उसे कोई मौका नहीं मिल सका और सुबह भगवान यम वहाँ से चले गए।
 
पत्नी ने अपने संकल्प से पति की ज़िंदगी को बचाया। तभी से धनतेरस को 'यमदीपदान' के दिन के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता भगवान यम के सम्मान में एक दीपक रात भर जलाया जाता है।
 
मां पार्वती की कहानी - किंवदंती के अनुसार भगवान शिव की पत्नी माँ पार्वती ने इसी दिन उनके साथ पासा खेला था और जीत हासिल की थी।

लक्ष्मी केवल धन की देवी ही नहीं होती है

दीपावली के दिन होने वाली पूजा को लक्ष्मी पूजा कहा जाता है। सामान्यतः लोग लक्ष्मी को केवल धन की देवी तक सीमित कर लेते है। आज के समय में  लक्ष्मी शब्द का बहुत संकुचित हो गया है। जबकि लक्ष्मी शब्द का अर्थ बहुत वृहद है। लक्ष्मी शब्द के विषय में बात की जाये तो इसकी उत्पत्ति लक्ष धातु से मानी जाती है। लक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है ध्यान लगाना, ध्येय...Read More