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Ganesh Chaturthi

गणेश चतुर्थी, हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय देवता गणेश जी के जन्म का 10 दिनों का त्योहार है, गणेश जी को समृद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। यह हिंदू विक्रमी सम्वत पंचांग के छठे महीने भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) के महीने के चौथे दिन (चतुर्थी) से शुरू होता है। गणेश जी को विनायक भी कहा जाता है और यह पर्व विनायक चतुर्थी के रूप में भी मनाया जाता है। 

गणेश जी को जिन्हे माता पार्वती ने बनाया था, उनको भगवान शिव से चतुर्थी तिथि, शुक्ल पक्ष, भाद्रपद माह के दिन एक नया जीवन प्रदान किया था। इसलिए श्रद्धालु भक्त गणेश चतुर्थी को भगवान श्री गणेश जी की जयंती मनाते हैं।

त्योहार की शुरुआत में, गणेश जी की मूर्तियों को घरों में विशेष पूजन स्थान या विस्तृत रूप से सजाए गए बाहरी पंडालों में रखा जाता है। पूजा की शुरुआत गणेश जी की प्राणप्रतिष्ठा (मूर्तियों में प्राण आह्वान करने की रस्म) से होती है, उसके बाद षोडशोपचार (16 प्रकार से श्रद्धा सुमन अर्पित करना) किया जाता है। गणेश उपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथों से वैदिक भजनों के उच्चारण के साथ, मूर्तियों का लाल चंदन के पेस्ट और पीले तथा लाल फूलों से अभिषेक किया जाता है। गणेश जी को नारियल, गुड़ और 21 मोदक (मीठे गुलगुले) भी चढ़ाए जाते हैं, जिन्हें गणेश जी का पसंदीदा भोजन माना जाता है।

गणेश जी सर्वप्रथम पूजनीय है इसीलिए उन्हें किसी भी अन्य देवता से पहले पूजा जाता है। वह शादी के निमंत्रण से लेकर, किसी भी अन्य शुभ अवसर के लिए  सबसे पहले निमंत्रित किये जाते हैं। भक्तों द्वारा उन्हें विघ्नहर्ता (अर्थात बाधाओं को दूर करने वाला) और सुखकर्त्ता (आनंद प्रदान करने वाला) भी कहा जाता है। 

गणेश जी के जन्म की कहानी :
माता पार्वती, शिव जी के बैल, नंदी से अत्याधिक प्रभावित थी क्योंकि वे अपने गुरु की सेवा के लिए पूर्णतः समर्पित थे। वह जानती थी कि नंदी शिव के लिए कुछ भी कर सकता है, और वह चाहती है कि कोई ऐसा हो जो उनके लिए समर्पित हो। इसीलिए एक दिन, उन्होंने अपनी खुद की त्वचा से एक छोटे लड़के की मूर्ति बनाई और अपनी दिव्य शक्तियों के साथ उसमें जीवन का संचार कर दिया। पार्वती की मूर्तिकला से, एक युवा बालक उभरा, जिसने उन्हें अपनी माँ के रूप में संबोधित किया।

माता पार्वती बहुत खुश थी, और वह जानती थी कि उनका ये पुत्र हमेशा उनकी सेवा में समर्पित रहेंगा। इसके बाद में, माता पार्वती स्नान करने के लिए गयी, तथा उस छोटे लड़के को दरवाजे की रखवाली करने के लिए कहा, साथ ही किसी को भी बिना उनकी अनुमति के घर में प्रवेश नहीं करने देने के लिए कहा। माता की आज्ञा पाकर वह छोटा लड़का दरवाजे के ठीक सामने खड़ा हो गया और उसकी रखवाली करने लगा। 

थोड़ी देर बाद, छोटे लड़के ने भगवान शिव को आते देखा, हालाँकि, वह अपनी माँ को छोड़कर बाकी किसी को भी नहीं जानता था। इसीलिए, जब भगवान शिव घर के अंदर कदम रखने वाले थे, तो छोटे लड़के ने दरवाजे पर पहरा देते हुए उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया। 

भगवान शिव समझ नहीं पा रहे थे कि यह लड़का कौन है और वह उन्हें अपने निवास पर जाने की अनुमति क्यों नहीं दे रहा है। भगवान शिव ने उसे यह बताने के  कई प्रयास किए कि वह पार्वती के पति है, और इसलिए उसे उनको अंदर जाने देना चाहिए। लेकिन छोटे लड़के ने उनके किसी भी साक्ष्य को सुनने से इनकार कर दिया। इसके बाद दोनों के बीच बहस हो गयी और गुस्से में, भगवान शिव, जो नहीं जानते थे कि छोटा लड़का उनका बेटा है, का सिर अपने त्रिशूल से काट  दिया। 

माता पार्वती, अपने बेटे को इस हालत में देखकर उग्र हो गईं। माता पार्वती को इतना क्रोधित देखकर, सभी देवताओं ने भगवान शिव से उनको शांत करने की विनती की। आखिरकार, भगवान शिव ने अपने गणों को उस प्राणी के सिर को लाने के लिए कहा, जिसे वे पहले देखें और वह अपनी माँ से दूर हो। फिर वे एक ऐसे हाथी के पास पहुंचे जो अपना सिर देने के लिए स्वेच्छा से आया था।

इसके बाद, हाथी के सिर को छोटे लड़के के शरीर के लिए तय किया गया। भगवान शिव ने उसे नया जीवन प्रदान किया और माता पार्वती को शांत किया। इस प्रकार, भगवान श्री गणेश जी अस्तित्व में आए और उनकी भक्ति व अपनी माता के लिए समर्पण देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए। तब उन्होंने गणेश जी को यह भी वरदान दिया कि उनकी पूजा हमेशा सबसे पहले की जाएगी।

गणेश जी का आध्यात्मिक महत्व :
माता पार्वती ने अपनी त्वचा से जो छोटा बालक बनाया है वह मोह (लगाव), या अपनेपन की भावना को दर्शाता है। भगवान शिव आदि योगी हैं, वैरागी हैं। जीवन में  परम सत्य और शांति प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को दुखों और कष्टों के कारको को खत्म करना चाहिए। सिर असंख्य विचारों को उत्पन्न करने वाला है जो बदले में लगाव की भावना पैदा करता है। इसलिए सिर का धड़ से अलग किया जाना सभी परेशानियों के करक स्त्रोतों को खत्म करने का प्रतीक है। त्रिशूल का प्रयोग भी प्रतीकात्मक है, त्रिशूल के तीन नुकीले फलक हैं। जो कि मनुष्य में तीन निहित गुणों - सत्व, रजस और तमस को संदर्भित करता है। इसलिए, जो एक स्वस्थ अनुपात में तीनो गुणों  को रखता है वह मोह / दुःख पर काबू पाने में सफल होता है।

इसके बाद, एक हाथी का सिर जुड़ा हुआ है, जो ध्यान और बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। हाथियों के पास अत्यधिक विकसित मस्तिष्क और स्मृति शक्ति होती है। बुद्धिमत्ता ज्ञान चेतना देने वाली है। इस प्रकार, जो छोटा लड़का आसक्ति का प्रतीक था, वह नए सिर का दान लेने के बाद में आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है। फिर उसकी बुद्धि उसे सर्वोच्च बनाती है।