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Guru Purnima

गुरु पूर्णिमा पर्व भारतीय विक्रमी सम्वत पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास (जून-जुलाई) की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु के सम्मान का प्रतीक माना जाता है। गुरु पूर्णिमा पर्व वह दिन है जब लोग अपने गुरुओं, शिक्षको और आध्यात्मिक गुरुओं, बड़ों और बुजुर्गों का सम्मान करते हैं तथा अपनी कृतग्नता अर्पित करते है। इस दिन, शिष्य अपने गुरु की पूजा भी करते हैं। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर लोग अपने गुरुओं से दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करते है जो उनके जीवन की अज्ञानता के अंधकार को दूर कर देते हैं और जीवन यात्रा के अन्धकारमय मार्ग को प्रकाशित कर देते हैं। शिष्यों द्वारा अपने पूज्य गुरु को कृतघ्नता अर्पित करके नमन किया जाता है जिससे आत्मविश्वास का संचार बढ़ाता है। व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता बढ़ती, स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है और बुद्धि कुशाग्र हो जाती है।

गुरु पूर्णिमा पर, साधक अपनी दैवीय शक्तियों का सम्मान करने के लिए व्यास जी की पूजा करते हैं। गुरु पूर्णिमा पर्व का भारतीय संस्कृति में प्राकृतिक महत्व है। माना जाता है कि यह पावन त्यौहार वर्षा ऋतू के आगमन का भी प्रतीक है। यह दिन आध्यात्मिक क्षेत्र में जीवन यात्रा को शुरू करने के लिए भी एक शुभ अवसर है। आध्यात्मिक लोग इस दिन से अपनी 'साधना' शुरू करते हैं। चातुर्मास, के पावन चार महीनों की अवधि का शुभारंभ भी इसी दिन से होता है। गुरु पूर्णिमा पर्व का ये पावन दिन योग साधना और ध्यान करने के लिए भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

इस दिन, अधिकांश लोग अपने सभी शिक्षकों और गुरुओं के पास जाते है और उनके सम्मान में अपने भाव अर्पित करते है। अक्सर लोग गुरु पूर्णिमा के दिन भोजन और कपड़े भी दान करते हैं। इससे उन्हें गुरुओं की दिवंगत आत्माओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गुरु पूर्णिमा पर्व ऐसे उन्नत या प्रबुद्ध कर्मयोगियों को नमन और कृतघ्नता अर्पित करने के लिए मनाया जाता है जो बिना किसी लालच या लालसा, के अपने ज्ञान को बांटने के लिए सदैव तैयार रहते है। मुख्यतः यह उत्सव हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों द्वारा अपने प्रशिक्षकों, मार्गदर्शकों की वंदना करने के लिए मनाया जाता है और उनको धन्यवाद दिया जाता है।

गुरु पूर्णिमा का यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है और महिर्षि वेद व्यास जी की जयंती के रूप में जाना जाता है। व्यास जी एक दिव्य विद्वान थे जिन्होंने वेदों, शास्त्रों, धार्मिक ग्रंथों की रचना की साथ ही वे महाभारत में एक चरित्र भी  है। सनातन धर्म में गुरु श्री माधवाचार्य, आदि शंकराचार्य, श्री रामानुज आचार्य आदि अनेक महान गुरु हुए हैं। बौद्ध धर्मानुयाइयों के द्वारा भी गुरु पूर्णिमा को गौतम बुद्ध के सम्मान में मनाया जाता हैं। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने इसी दिन उत्तर प्रदेश के सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था।

भारतीय सभ्यता और संस्कृति में व्यक्ति अपने गुरुओं के लिए प्रेम और सम्मान रखते हैं। गुरु शब्द अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ है। भारतीय सभ्यता में एक गुरु परम पूजनीय हैं जिसकी शिक्षा और मार्गदर्शन व्यक्ति को जीवन की यात्रा करने में सहायक होता है। इस उत्सव की महत्ता हिंदुओं और बौद्धों में सबसे अधिक है। गुरु पूर्णिमा के इस पुण्य दिवस  की श्रेष्ठता यह है कि क्योंकि एक गुरु किसी व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक महत्व रखता है और उसी गुरु को सम्मान देने और धन्यवाद करने के लिए लोग गुरु पूर्णिमा पर्व मनाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि गुरु व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण अवयव है। संस्कृत में 'गुरु' शब्द का अर्थ अज्ञान रुपी अन्धकार को समाप्त करने वाले के रूप में किया जाता है और आध्यात्मिक मार्गदर्शक को भी संदर्भित करता है जो अपने शिष्यों को अपने ज्ञान और शिक्षाओं के माध्यम से प्रबुद्ध करता है। 'माता पिता गुरु देवम' के अनुसार माता, पिता और शिक्षक भगवान की तरह ही पूजनीय माने गए हैं। गुरु ही व्यक्ति में सही मूल्यों को विकसित करते हैं और हमारे जीवन में ज्ञान का दीपक जलाते हैं।

एक अच्छा गुरु या शिक्षक व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ बनाता है और जीवन का सामना करने के लिए आवश्यक आत्म विश्वास और साहस प्रदान करता है। इसलिए, समाज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरुओं और शिक्षकों को पोषित और सम्मानित करने का माधयम भी है, जो व्यक्ति के जीवन में बड़े बदलाव लेकर आते है।

व्यक्ति का असली गुरु वास्तव में उसमे निहित परम तत्व ही है। जिसका ज्ञान हो जाने पर सभी भय और अज्ञानता दूर हो जाती है। जैसा कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी कहते हैं, कि एक सच्चा गुरु वही हैं जो सत्य ज्ञान का बोध कराकर शिष्य को दिव्य ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित कर देता हैं। एक सच्चा गुरु अपने शिष्य को परम तत्व रूप आत्म ज्ञान का बोध कराके आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। जीव के विशुद्धि चक्र में निहित रहने वाले परम तत्व को गुरु के द्वारा शिष्य के आत्म समर्पण करने पर बोध करा दिया जाता है।

गुरु तत्व को एक पारलौकिक दिव्यता भी कहा जाता है क्योंकि एक गुरु वास्तविक अर्थों में एक व्यक्ति नहीं है, बल्कि एक तत्व, एक सिद्धांत है। गुरु एक अन्तर्निहित तत्व की उपस्थिति है, जिसके प्रकट या बोध हो जाने पर व्यक्ति के जीवन में एक परिपूर्णता आ जाती है।

'गुरु' शब्द में दो शब्दांश हैं, गु और रु। गु शब्द का तातपर्य है गुणातीत - वह जो गुणों से परे है ऊपर है और रू शब्द का तातपर्य है रूपवर्जिता - वह जो किसी रूप या कल्पना से परे है।

तीन गुणों में, सत्व - उत्पत्ति, रजस - गतिविधि और तमस - जड़ता शामिल हैं, जो इस सृष्टि के मूल गुण हैं। गुरुता का  सिद्धांत इन तीनों गुणों से पार करा देता है, निराकार दिव्यता के परम तत्व का बोध करा देता है। ईश्वर, गुरु और शिष्य में कोई भेद नहीं है इस बात का बोद एक गुरु ही कराता।

गुरू - दिव्यता की भौतिक अभिव्यक्ति एक गुरु के माध्यम से ही होती है। जिसने अपने दिव्य तत्व का बोध किया किया है, वह वही तत्व रूप गुरुता के रूप में एक भौतिक अभिव्यक्ति है। इस सांसारिक जीवन में सभी को एक भौतिक गुरु की आवश्यकता होती है, जिनके नाम और रूप होते है, जो आध्यात्मिक पथ पर मार्गदर्शन कर सके, और जो व्यक्ति को उसके  आध्यात्मिक लक्ष्य तक ले जाए, जो कि आत्म-साक्षात्कार है। गुरु वह है जो व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। वह व्यक्तिगत दिव्यता, इन्फिनिटी के लिए एक खिड़की है। गुरु के बिना आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना असंभव है, जो ईश्वरीय ज्ञान बोध कराता है। राम और कृष्ण जैसे दिव्य अवतार भी एक गुरु के चरणों में बैठे। राम अपने गुरु ऋषि वशिष्ठ द्वारा दिव्यता के सच्चे सिद्धांत में प्रबुद्ध हुए थे।

गुरु - व्यक्ति के जीवन में आँख की एक पलक की तरह है यह न सिर्फ आध्यात्मिक पथ पर, अपितु भौतिक जीवन में भी गुरू सदैव बचाव के लिए आ जाते है। व्यक्ति अनेक बार सांसारिक जीवन में कई बाधाओं और खतरों का सामना करते हैं। एक गुरु पलक की तरह होता है, जो हमेशा शिष्य की आँख के जैसे रक्षा करता है। गुरु की कृपा व्यक्ति के जीवन के अपरिहार्य कर्मों को कम करती है।

भौतिकता में प्रकृति का हर अवयव एक गुरु है। आध्यात्मिक गुरु के अलावा, गुरु तत्व सृष्टि के प्रत्येक अवयव में स्वयं का बोध करा देने वाले करक के रूप में विध्यमान रहते हैं। प्रकृति की प्रत्येक उत्पति किसी के लिए गुरु है तो किसी के लिए शिष्य।

ज्योतिष विज्ञान में भी गुरु पूर्णिमा पर्व को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है इस दिन किया गया गुरु(बृहस्पति) ग्रह का पूजन  अत्यधिक शुभ और पुण्य फलदायक होता है। ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति ग्रह को आत्मविश्वास, संवाद, ज्ञान, प्रसिद्धि और जिज्ञासा जैसे व्यक्तिक गुणों का स्वामी माना जाता है। उच्च बृहस्पति वाले जातक को ज्योतिष शास्त्र में उच्च शिक्षित और कार्य कुशल माना जाता हैं। उच्च बृहस्पति वाले जातक अधिकांशतः विचारक, मंदिर के पुजारी, शिक्षक, वैज्ञानिक और न्यायाधीश होते हैं। जिनमें नैतिकता, आत्मविश्वास, सम्मान और न्याय जैसे उच्च मानवीय गन विध्यमान होते हैं। बृहस्पति ग्रह उच्च उद्देश्य, व्यापकता और संभावनाओं का ग्रह माना जाता है।
 
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु यानि बृहस्पति गृह के पूजन से शिक्षा, करियर और पारिवारिक जीवन में सफलता प्राप्त होती है। यह पूजन बृहस्पति ग्रह का आशीर्वाद प्रदान करता है और बृहस्पति ग्रह के दुषप्रभावों को दूर करता है। गुरु दोष से जूझ रहा कोई भी व्यक्ति, जो आत्मविश्वास की कमी, हानि, अधिक खर्च, झगड़े, स्वार्थ, शैक्षिक बाधा, समृद्धि में रूकावट और अपने आसपास के लोगों में सद्भाव की कमी जैसी विपत्तियों का सामना कर रहा हो, इस पूजा को करके इन समस्याओं का समाधान  प्राप्त कर सकता है।

महर्षि कपिल उनके श्रद्धालु भक्त भगवान विष्णु का ही एक अवतार मानते हैं जिन्होंने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से दुनिया में आध्यात्मिक संतुलन स्थापित किया। महर्षि कपिल, सांख्य दर्शन के संस्थापक हैं, जो वैदिक दर्शन के छह मूलभूत अवयवों   में से ही एक है। उन्होंने आत्मोथान के लिए मुक्ति की कला के रूप में भक्ति योग के विषय में सबको बताया, साथ ही भक्ति और प्रेम की दिव्यता से दुनिया को प्रबुद्ध किया। इनहीं महर्षि कपिल की वजह से देवी माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ।  महर्षि कपिल ने ही राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया था। फिर राजा सगर के पौत्र अंशुमान ने जब महर्षि कपिल से अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति का उपाय जानने की विनती की, तो महर्षि कपिल ने कहा कि अगर देवी गंगा स्वर्ग से उतर कर उनकी राख को छू लेंगी, तो उनको मुक्ति मिल जाएगी।

गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और महर्षि कपिल की पूजा करने से उनकी दिव्य कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही व्यक्ति के ज्ञान, बुद्धि में वृद्धि होती है और उसका आध्यात्मिक उत्थान भी होता है।

गुरू को जागरण का विषय कहा जाता है। गुरु का अर्थ होता है वृहद या बड़ा, बृहस्पति ग्रह को भारतीय खगोल विज्ञान में गुरु कहा जाता है। गुरु या बृहस्पति एक बड़े आकार का ग्रह है जिसका गुरुत्वाकर्षण बल भी बहुत अधिक होता है। कई भाषाओं से गुरु के शाब्दिक अर्थ का सार होता है किसी का बहुत बड़ा अनुभव, ज्ञान या शक्ति। एक पर्वत बड़ा होता है, ग्रह और भी बड़ा होता है, ब्रह्मांड उससे भी और बड़ा होता है मगर क्या कुछ ब्रह्मांड से भी बड़ा हो सकता है? जी हाँ बिल्कु्ल और वो है गुरु।

पूर्णिमा पूरक या पूर्णता का प्रतिनिधित्व करती है। पूर्ण का अर्थ होता है पूरा। जब व्यक्ति को किसी चीज की कमी महसूस होती है तो वह कुछ चाहता हैं। मगर पूर्णता सर्वस्व है जिसमे कुछ कमी नहीं है। पूर्णास्य, पुर्नमदय, पूर्णमेव अवसिष्यते! जो ज्ञान से भरा हुआ है कोई उससे ज्ञान ले भी लेता है, तो भी वह कम नहीं होगा। वह अभी भी पूर्ण ही रहेगा, 'पूर्ण ज्ञान'। गुरुपूर्णिमा इसी जागरण, इसी जागरूकता का उत्सव है।

गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में उस दिन को भी याद किया जाता है जब भगवान शिव ने आदि गुरु रूप धारण किया था, उन्ही को सबसे पहले गुरु के रूप में भी जाना जाता है।

भगवान धातचिनमूर्ति (गुरु भगवान्) नवग्रह के देवताओं में से एक हैं, जो मुख्य रूप से गुरुवार को पूजे जाते हैं।

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान दक्षिणमूर्ति आराध्य भगवान शिव का ही रूप हैं, जिनके द्वारा निर्वात में ब्रह्मा जी के चारों पुत्रों को शिक्षा दी गयी थी।

हिंदू पुराणों में उनको एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठता हुआ दर्शाया गया है। साथ ही वीरासन में उनके बाएं पैर को दाहिने घुटने के ऊपर रखा हुआ दिखाया गया है (वीरासन दिन के अंत में थके हुए पैरों के लिए एक आसन क्रिया है, साथ ही इसको बैठकर ध्यान के लिए, कमल का विकल्प भी माना जाता है), उनका निचला दाहिना हाथ चिन्मुद्र (ज्ञान मुद्रा का एक रूप) में दर्शाया गया है, जो कि एक ऐसी योगिक क्रिया के रूप में वर्णित किया जा सकता है जिससे  मानव चेतना के एकीकृत रूप का पता चलता है। योगी कहते है कि यह चिन मुद्रा ज्ञान का प्रतीक है जो "पूर्णता" को दर्शाता है, और उनके निचले बाएं हाथ में नारियल की पत्तियां है जो यह बताती है कि "वह सभी शिक्षाओं के स्वामी है"।

अपने ऊपरी दाहिने हाथ में, भगवान दक्षिणामूर्ति ने डमरू (उदुकई) धारण कर रखा हैं जो दर्शाता है कि वह समय और निर्माण के साथ साम्यता में है, क्योंकि यह एक कंपन है जो एक रूप में परिवर्तित होता है। उनके ऊपरी बाएँ हाथ में ज्वाला (अग्नि), जिसे ज्ञान की अग्नि माना गया है जो "अज्ञान" को नष्ट कर देती है।

सभी को अपने जीवन में कुछ कठिनाइयाँ और हानियाँ होती हैं। जिनका साहस के साथ सामना करना चाहिए और खुद को भगवान के सामने आत्मसमर्पण करके, अपनी समस्या के लिए क्षमा मांगनी चाहिए। क्योंकि वही जीव के लिए निर्माता, संरक्षक और पालक है और वही परम तत्व रूप में जीव में एक गुरु की तरह विध्यमान रहते हैं।