मकर संक्रांति भारत का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। हिन्दू विक्रमी सम्वत पंचांग के अनुसार पौष मास में जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है वह दिन मकर संक्रांति पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति में ‘मकर‘ शब्द मकर राशि को प्रदर्शित करता है जबकि ‘संक्रांति‘ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते है। एक राशि को छोड़कर दूसरे राशि में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। इस समय यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है।
भारत में मकर संक्रांति का पर्व हर क्षेत्र में अलग अलग तरह से मनाया जाता है, जैसे कि तमिलनाडु में यह पोंगल उत्सव के रूप में मनाया जाता हैं और कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में यह केवल संक्रांति के नाम से ही सम्बोधित किया जाता हैं। भारत के कुछ भागों में लोग मकर संक्रान्ति पर्व को उत्तरायणी भी कहते हैं, जिस कारण कई बार लोगो को यह भ्रान्ति हो जाती है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति पर्व उत्तरायण से भिन्न है।
इस दिन जमकर खुशियां मनाई जाती है और गरीबों में कंबल व अन्न दान दिया जाता है। देश भर में अलग अलग तरीके से लोग अपने अपने जीवन को खुशहाल बनाने के प्रयत्न करते हैं और दान पुण्य करते हैं।
कैसे मनाएं मकर संक्रांति :
मकर संक्रांति का पर्व सूर्य देव भगवान को समर्पित है। इस दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है। इस दिन सभी को नीचे दिए गए कार्यों का पालन करना चाहिए।
मकर संक्रांति के दिन प्रातः सुबह पवित्र जल से स्नान करें। नए या स्वच्छ वस्त्र पहनकर सूर्य देवता की पूजा-अर्चना की करें। पूर्व की दिशा की ओर मुख करके सूर्य देव की आराधना करें। तांबे के एक पात्र में जल के साथ लाल चन्दन, काले तिल, अक्षत डाल कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। सूर्य देव को लाल रंग का फूल भी अर्पित करना शुभ माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण दिया जाता है। श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ या गीता का पाठ करें।
महिलाए सुहाग की सामग्री अपनी बेटी, ब्राह्मण या मंदिर को दान देती हैं। मकर संक्रान्ति के दिन ब्राह्मणों, गरीबों को दान करना विशेष फलदायी माना जाता है। इस दिन दान में अन्न, आटा, दाल, चावल, खिचड़ी और तिल के लड्डू विशेष रूप से लोगों को दिए जाते हैं। मकर संक्रांति को अन्न, कम्बल, लाल वस्त्र, ताम्बे के बर्तन तथा गेंहू का दान करना भी अच्छा माना जाता है। घर में प्रसाद वितरण करने से पहले आग में थोडा सा गुड़ और तिल डालें और अग्नि देवता को प्रणाम करें।
मकर संक्रांति पर्व का महत्व :
देवताओं के 6 महीने का एक दिन और 6 महीने की एक रात मानी जाती है। छह माह सूर्य उत्तरायण और छह माह दक्षिणायन होता है। मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं इसलिए उसे शुभ माना जाता है। मकर संक्रांति को देवताओं की रात्रि के बाद की सुबह भी कहा जा सकता है। इसलिए इस दिन सुबह स्नान किया जाता हैं स्नान, पूजा, ध्यान आदि के लिए भी मकर संक्रांति का दिन बहुत शुभ माना जाता है।
मकर संक्रांति के समय सर्दियों होती है, इन दिनों तिल और नए अनाजों की नई उपज भी आने लगती है। किसानों में इन दिनों में विशेष खुशी देखने को मिलती हैं, जिसे वो पूजा, दान इत्यादि करके उल्लास के साथ मनाते हैं। तिल की तासीर क्योंकि गर्म होती है और सर्दियों में शरीर बहुत ठंडा हो जाता है। इसलिए सर्दियों के दिनों में तिल और गुड़ खाने का बहुत महत्व है, इससे शरीर में गर्माहट बनी रहती है।
सूर्य जोकि एक शक्ति पुंज व दीप पुंज है जिससे प्रतिदिन ऊर्जा प्राप्त होती है। सर्दियों के दिनों में सूर्य की ऊर्जा कमजोर हो जाती है इसीलिए जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण आते हैं तो वह पूजनीय हो जाते हैं। मकर संक्रांति के बाद से सूर्य देव की शक्ति बढ़ने लगती है, साथ ही उनकी ऊर्जा का उत्सर्जन भी बढ़ जाता है। सभी को उनसे ऊर्जा प्राप्त होती है और धरती पर प्राण संचार चलता रहता है। सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने की खुशी को पर्व के रूप में मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता हैं।