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Naraka Chaturdashi

दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली मनाई जाती है, इस दिन भी लोग अपने घरों में दीपक जलाते हैं। छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है; कहा जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति मृत्यु के देवता यमराज और माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर लेता है उसको मरने के बाद नरक नहीं मिलता और अनजाने में हुए सभी पापों से मुक्ति भी मिल जाती है। 

नरक चतुर्दशी का महत्व…

नरक चतुर्दशी के दिन विशेषतः लोग यम देवता की पूजा कर घर के मुख्य द्वार के बाहर तेल का दीपक जलाते हैं, ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु कभी नहीं आती। इस दिन सुबह सूर्योदय से शरीर पर सरसों का तेल लगाकर स्नान करने का विशेष महत्व है, स्नान के बाद भगवान श्री हरि विष्णु मंदिर या कृष्ण मंदिर जाकर दर्शन करने चाहिए। ऐसा करने से पाप से मुक्ति मिलती है और सौन्दर्य बढ़ता है। 

नरक चतुर्दशी को यम चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध के महीने में आए हुए पितर इसी दिन चंद्रलोक वापस जाते हैं। इस दिन अमावस्या तिथि होने के कारण चांद नहीं निकलता जिससे पितर भटक सकते हैं इसलिए उनकी सुविधा के लिए नरक चतुर्दशी के दिन एक बड़ा दीपक जलाया जाता है, यमराज और पितर देवता अमावस्या तिथि के स्वामी माने जाते हैं। 

नरक चतुर्दशी की कथा :

नरक चतुर्दशी के महत्व को बताने वाली यूँ तो कई कथाएं प्रसिद्ध हैं जिसमें से एक कथा भगवान् श्री कृष्ण से जुड़ी हुई है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। नरकासुर राक्षस ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मनुष्यों को परेशान कर रखा था। नरकासुर ने संतों के साथ सौलह हजार स्त्रियों को भी बंदी बना रखा था, उसके बढ़ते अत्याचार को देखते हुए देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भगवान श्री कृष्ण जी की शरण ली। सभी ने श्री कृष्ण से विनय करते हुए कहा कि इस नरकासुर का संहार करके पृथ्वी से पाप का भार कम करें। 

भगवान श्रीकृष्ण ने उनको आश्वस्त किया, लेकिन नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का शाप मिला हुआ था। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का अंत किया। जिस दिन नरकासुर का संहार हुआ, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी। 

नरकासुर संहार के बाद श्रीकृष्ण ने कन्याओं को बंधन से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद कन्याओं ने भगवान श्री कृष्ण से विनती करी कि समाज अब उनको  कभी भी स्वीकार नहीं करेगा, अतः आप कोई उपाय निकालें हमारा सम्मान वापस दिलवाएं। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने सत्यभामा सहमति से सौलह हजार कन्याओं से विवाह कर लिया। 

सौलह हजार कन्याओं को मुक्ति और नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में घर-घर दीपदान की परम्परा शुरू हुई। तब से यह दिन नरक चतुर्दशी पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।