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Navratri

नवरात्रि शब्द का संस्कृत में शाब्दिक अर्थ है नौ रातें, नव का अर्थ नौ और रत्रि का अर्थ है रातें। नवरात्री पर्व के इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
 
नवरात्रि पर्व के आठवें, नौवें और दसवें दिन को अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दिनों में माता के भक्तों द्वारा आंतरिक उपासना की जाती हैं, जिससे उनमे नव ऊर्जा और दिव्य शक्ति का अंकुरण होता हैं। ये दिन क्रमशः देवी दुर्गा अष्टमी, महानवमी और विजयदशमी की पूजा के लिए जाने जाते है। 
 
दसवें दिन जिसको  सामान्यतः विजयादशमी या "दशहरा" के रूप में जाना जाता है, भगवान श्री राम ने रावण और माँ आद्यशक्ति भवानी दुर्गा ने महिषासुर जैसे दुष्ट राक्षसों का वध करके विजय प्राप्त की थी। माँ दुर्गा ने मधु-कैटभ, चंड-मुंड और शुंभ-निशुंभ जैसे दुष्टों का संहार भी इन्ही दिनों में किया था। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। दसवें दिन की सुबह भगवान् शिव को एक अग्नि संस्कार समर्पित किया जाता है, जिससे नवरात्रि में पूजा आराधना करने वाले भक्तो को भगवान् शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
 
वसंत ऋतु की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत को जलवायु और सौर प्रभावों की महत्वपूर्ण संधियां माना जाता है। यही कारण है कि इन दो अवधियों को देवी माँ दुर्गा की पूजा एवं आराधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। नवरात्री पर्व की तिथियों का निर्धारण चंद्र कैलेंडर के अनुसार किया जाता हैं।
 
नवरात्रि पर्व भारत के पश्चिमी राज्यों: गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में एक अलग ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दौरान गुजरात के पारंपरिक नृत्य जिसे "गरबा" कहा जाता है, का व्यापक रूप में भव्य प्रदर्शन किया जाता है। माँ दुर्गा को समर्पित पावन नवरात्री का त्यौहार उत्तर भारत के साथ-साथ बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और पंजाब के उत्तरी राज्य में भी बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है।
 
माँ आद्यशक्ति दुर्गा, देवी और शक्ति का एक दिव्य रूप है, जिन्हें विभिन्न नौ रूपों में प्रकट किया गया है। पारम्परिक मान्यता के अनुसार, माना जाता है कि तीन प्रमुख रूप हैं जिनमें देवी माँ दुर्गा स्वयं प्रकट हुईं, महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली है जो क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र की सक्रिय ऊर्जा (शक्ति) हैं। सम्पूर्ण सृष्टि को इन्ही प्रमुख देवी देवताओं में निहित करके दर्शाया गया है। देवी दुर्गा के ये तीन मुख्य रूप आगे तीन और रूपों में प्रकट हुए, और इस प्रकार माँ दुर्गा के नौ रूपों का प्राकट्य हुआ। माता के इन्ही नौ रूपों को जिन्हें सामूहिक रूप से नवदुर्गा या नौ दुर्गा कहा जाता है। 

देवी माँ शैलपुत्री - नवरात्रि की पहली रात माँ "शैलपुत्री" की पूजा के लिए समर्पित है। "शैल" का अर्थ है पहाड़, पर्वतों के राजा हिमवान की पुत्री "पार्वती" को "शैलपुत्री" के नाम से जाना जाता है। उनके दो हाथों में त्रिशूल और कमल दर्शाये गए हैं। माँ शैलपुत्री का वाहन एक बैल है।

देवी माँ ब्रह्मचारिणी - माँ ने इस रूप में एक हाथ में "कुंभ" या पानी का कलश और दूसरे में माला धारण की है। उनका यह स्वरुप प्रेम और सत्यता का परिचायक  माना जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी के पास ज्ञान का दिव्य भंडार हैं। रुद्राक्ष उन पर सुशोभित एक सूंदर आभूषण है।

देवी माँ चंद्रघंटा - तीसरे नवरात्रे को पूजा की जाती देवी माँ चंद्रघंटा की। माँ चंद्रघंटा का वाहन एक बाघ हैं, उनके इस रूप का रंग चमकदार सुनहरा है। माता के इस रूप में उन्हें दस भुजाओ और तीन आँखों वाला दिखाया गया हैं। जिसमें से अपनी आठ भुजाओं में वे आठ शस्त्र लिए है तथा शेष दो क्रमशः वरदान देने और हानि से रक्षा करने की मुद्रा में हैं। चंद्र घण्टा, का अर्थ है परम आनंद और ज्ञान, शांति और प्रेम की बौछार, जैसे कि मानो चांदनी रात में ठंडी हवा।

देवी माँ कूष्माण्डा - चौथी रात को माँ "कूष्माण्डा" की पूजा होती है। माँ के इस रूप में उनकी आठ भुजाएँ दर्शायी जाती हैं, जिनमें वो दिव्य - अस्त्र और माला लिए  है। उनका वाहन एक बाघ है और वह सौर जैसी दिव्य आभा का उत्सर्जन करती है। माँ "कुष्मांडा" का वास भीमपर्वत में माना जाता है।

देवी मां स्कंदमाता - एक वाहन के रूप में एक शेर की सवारी करने वाली ये माता तीन आँखों और चार भुजाओ को धारण करने वाली है। अपने पुत्र "स्कंद" को गोद में लेकर बैठी स्कंदमाता ने दो हाथों में कमल धारण किये हैं तथा दूसरे दोनों हाथ क्रमशः सुरक्षा प्रदान करने और आशीर्वाद देने की मुद्रा में हैं। माँ दुर्गा के इस रूप के बारे में कहा जाता है कि "स्कंदमाता" की कृपा से, मूर्ख भी "कालिदास" जैसे ज्ञान के सागर बन जाते हैं।

देवी माँ कात्यायनी - माँ दुर्गा अपने "कात्यायनी" रूप में तपस्या के लिए ऋषि कात्यायन के आश्रम में रहीं, इसलिए उन्होंने "कात्यायनी" नाम दिया। यह माँ दुर्गा का छठवाँ रूप है जो तीन आँखों और चार भुजाओं वाला है तथा जिसका वाहन एक शेर है। अपने बाएं हाथों में ये क्रमशः एक शस्त्र और कमल धारण किये है। जबकि इनके दाएं हाथ क्रमशः बचाव और आशीर्वाद की मुद्रा दर्शाते हैं। माता के इस कात्यायनी रूप का वर्ण सुनहरा है।

देवी माँ कालरात्रि - बालों वाली काली त्वचा और चार हाथों वाले इस रूप में माँ दुर्गा अपने एक हाथ में खड़ग और एक में मशाल लिए है, तथा बाकी दोनों हाथ  "देने" और "रक्षा" करने की मुद्रा में हैं। माँ कालरात्रि का वाहन एक गधा है। अंधकार और अज्ञान का नाश करने वाली, माँ "कालरात्रि" नव-दुर्गा का सातवाँ रूप है।  कालरात्रि का अर्थ है अंधकार का परिमार्जन; अंधेरे का विनाश करने वाली। माँ कालरात्रि का प्रसिद्ध मंदिर कलकत्ता में स्थित है।

देवी माँ महागौरी - माता के सभी नौ रूपों में उनका ये महागौरी रूप सर्वाधिक पवित्र वर्ण वाला है जिसमें उनकी चार भुजाएँ दर्शायी गयी हैं। शांति और करुणा का प्रतीक माता का ये रूप प्रकाश पुंज की भांति विकिरणित होने जैसा है और वह अक्सर एक सफेद या हरे रंग की साड़ी पहनती है। वह एक डमरू और एक त्रिशूल धारण किये हुए है और बैल को उनके वाहन के रूप में दर्शाया जाता है। माँ "महागौरी" का एक मंदिर हरिद्वार के पास कनखल में उनके मुख्य तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है।

देवी माँ सिद्धिदात्री - कमल पर आसीन, चार भुजाओं वाली, और भक्तों को प्रदान करने के लिए छब्बीस विभिन्न कामनाओं की अधिष्ठात्री देवी माँ सिद्धिदात्री नवदुर्गा का नौंवा रूप हैं। माँ सिद्धिदात्री का प्रसिद्ध तीर्थस्थल, हिमालय में नंद पर्वत पर स्थित है।

ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के पावन पर्व में माँ दुर्गा के जिन नौ स्वरूपों की पूजा होती है। वो जीवन की बाधाओं को दूर करने और पवित्रता व दिव्यता के लिए आवश्यक गुणों को प्रदान करने की क्षमता रखती है। नवरात्रि के समय पूजा आराधना करने से साधक के जीवन में सकारात्मक भावना जागृत होती है।

देवी के इन सभी नौ स्वरूपों का चण्डीपाठ के "देवी कवच" में वर्णन किया गया है। जिसे देवी महात्म्यम या देवी महात्म्य ("देवी की महिमा") कहा जाता है, यह एक हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जिसमें राक्षस महिषासुर पर देवी माँ दुर्गा की विजय का वर्णन किया गया है। मार्कंडेय पुराण के भाग के रूप में, यह पौराणिक भारतीय धर्मग्रंथों में से एक है। इसकी रचना ऋषि मार्कंडेय के द्वारा संस्कृत भाषा में की गयी थी। देवी महात्म्यम को दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ के रूप में भी जाना जाता है।

आद्यशक्ति माँ जगदम्बा की दिव्य कथाओं का वर्णन, देवी भागवत पुराण में भी किया गया है, जिसे श्रीमद देवी भगवतम या देवी भागवतम के नाम से भी जाना जाता है।