भारत एक व्रत और त्योहारों का देश है यहाँ नित्य प्रतिदिन कोई न कोई सांस्कृतिक पर्व मनाया ही जाता है। ऐसा ही एक भारतीय पर्व है फुलेरा दूज जो कि एक शुभता और श्रेष्ठ्ता का त्यौहार माना जाता है। जिसको उत्तर भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
भारतीय हिंदू विक्रमी सम्वत पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन (द्वितीया तिथि) को फुलेरा दूज पर्व मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह दिन मार्च या फरवरी के महीने में आता है। प्रत्येक वर्ष फुलेरा दूज का त्योहार भारत के दो प्रमुख पर्वों वसंत पंचमी और होली के बीच में मनाया जाता है।
फुलेरा दूज पर्व भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित त्यौहार है। फुलेरा दूज के शाब्दिक के अर्थ को फुलेरा अर्थार्त 'फूल' जो पुष्पों को परिभाषित करता है और दूज अर्थार्त द्वित्या तिथि का योजन कहा जा सकता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को फूल अत्यधिक पसंद है और फुलेरा दूज के शुभ दिन वह फूलो से होली उत्सव मनाते हैं। यह पावन त्योहार लोगों के जीवन में फूलों की तरह खुशी और प्रसन्नता लेकर लाता है।
वृंदावन और मथुरा के कुछ मंदिरों में, श्रद्धालु भक्त इस दिन भगवान श्री कृष्ण के विशेष दर्शन करने के लिए आते है, कान्हा जी के श्रद्धालु भक्तजन इस दिन हर साल फुलेरा दूज के अवसर पर होली उत्सव में भाग लेकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। इस दिन लोगो द्वारा विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों का आयोजन भी किया जाता है तथा साथ ही भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्तियों को आने वाले होली उत्सव से पूर्व रंगों के रूप में फूलो से सजाया जाता है।
फुलेरा दूज के इस विशेष त्यौहार के दिन, भक्त भगवान श्री कृष्ण जी का पूजन करते हैं, उनकी मंगल आरती और भजन गाते है। भारत के उत्तरी भाग में कई क्षेत्रों में भव्य उत्सवों का आयोजन भी किया जाता हैं। श्रद्धालु श्री कृष्ण भक्तों के द्वारा ठाकुर जी की प्रतिमाओं और मूर्तियों को घरों और मंदिरों में फूलों से सजाया जाता हैं। फुलेरा दूज में सबसे अधिक महत्वपूर्ण अनुष्ठान जो किया जाता है वह है भगवान श्री कृष्ण के साथ में सूंदर रंगीन फूलों से होली खेलना। ब्रज क्षेत्र में तो, इस विशेष दिन पर, श्री कृष्ण जी के पूजन के लिए भव्य उत्सवों का आयोजन भी किया जाता हैं।
इस दिन मंदिर को फूलों और प्रकाश से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को फूलों से सजाये गए एक रंगीन मंडप में रखा जाता है। रंग बिरंगे कपड़े का एक छोटा टुकड़ा भगवान कृष्ण की मूर्ति की कमर पर लगाया जाता है, इसको श्री कृष्ण जी के होली खेलने के लिए तैयार हो जाने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। 'श्यान भोग' की रस्म पूरी हो जाने पर, कृष्ण जी की कमर पर लगे रंगीन कपड़े को हटा लिया जाता है।
फुलेरा दूज के दिन श्री कृष्ण जी को भोग लगाने के लिए एक विशेष प्रसाद बनाया जाता है। जिसमें पोहा और कई अन्य विशेष मिठाइयां भी शामिल की जाती हैं। इस दिव्य प्रसाद को सबसे पहले कान्हा जी को अर्पित करके भोग लगाया जाता है। फिर यह प्रसाद में सभी श्रद्धालु भक्तों में वितरित किया जाता है।
साथ ही इस दिन दो महत्वपूर्ण अनुष्ठान भी किये जाते है जो कि 'समाज में रसिया’और “संध्या आरती” हैं। मंदिरों में विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों और नाटकों का भी आयोजन किया जाता हैं, जो अधिकांशतः भक्तों द्वारा श्री कृष्ण बाल लीला और भगवान कृष्ण के जीवन प्रसंगों आधारित होते हैं। ठाकुर जी के पूजन में भजन-कीर्तन का भी आयोजन किया जाता है। आने वाले उत्सव होली के प्रतीक रूप में कृष्ण जी की मूर्ति पर एक थोड़ा गुलाल (रंग) भी लगाया जाता है।उत्सव समापन के लिए, पुजारी जी के द्वारा मंदिर में एकत्रित सभी लोगों पर गुलाल (रंग) की वर्षा भी की जाती हैं।
फुलेरा दूज को ज्योतिष शास्त्र में भी गृह गणना और भविष्यवाणियों के अनुसार, एक महत्वपूर्ण और शुभ दिन माना गया है। यह दिन बहुत ही पावन और भाग्यशाली कहा जाता है क्योंकि इस दिन में किसी भी तरह के दोष और दुष्प्रभाव नहीं होते है और इस प्रकार यह एक "अबूझ मुहूर्त" कहा जाता है।
इसीलिए कहा जाता है कि यह दिन विवाह, संपत्ति की खरीद आदि जैसे महत्वपूर्ण शुभ कार्यों को करने के लिए भी बहुत ही शुभ है, इस दिन शुभ मुहूर्त पर विचार करने या किसी विशेष शुभ मुहूर्त को जानने के लिए किसी से विशेष परामर्श या सलाह लेने की कोई अधिक आवश्यकता नहीं होती है। उत्तर भारत के कई राज्यों में, फुलेरा दूज के दिन उत्तरी भारत में शादी समारोह का आयोजन भी खूब किया जाता हैं। अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए भी लोग आमतौर पर इस दिन को बहुत अच्छा मानते हैं।