Home » Festivals » Sakat Chauth

Sakat Chauth

सकट चौथ पर्व का विशेष धार्मिक महत्व माना गया है। इस पर्व को सकट चौथ, तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, माघी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी के नामों से भी जाना जाता है। 

सकट चौथ पर्व पर भगवान गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन व्रत रखने की परंपरा का अनुकरण भी काफी लोग करते है। सकट चौथ पर्व से जुडी ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा करने और व्रत रखने से व्रती की संतान को लंबी आयु प्राप्त होती है। साथ ही संतान पर आने वाली सभी विपत्तियां भी दूर हो जाती हैं और यह व्रत व्यक्ति की संतान को बहुत ही शुभ फल प्रदान करता है। सकट चौथ व्रत संतान को सभी तरह की बाधाओं से दूर रखने वाला माना गया है। संतान की शिक्षा, स्वास्थ और करियर में आने वाली परेशानियां भी इस व्रत के करने से दूर हो जाती है। 

सकट चौथ के दिन पूजा के लाभ :
गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए सकट चौथ का पर्व बहुत शुभ माना जाता है। गणेश जी बुद्धि के दाता है, इसके साथ ही वें ग्रहों की अशुभता को भी दूर करते हैं। सकट चौथ पर्व बुध ग्रह की अशुभता को दूर करने के लिए भी श्रेष्ठ माना गया है। केतु के दुष प्रभाव को दूर करने के लिए भी सकट चौथ के दिन लोग विशेष पूजा करते है। 

कैसे बनाया जाता है सकट चौथ पर्व का प्रसाद :
सकट चौथ पर्व पर तिल और गुड से बने मिष्ठान का प्रयोग प्रसाद के रूप में किया जाता है।  इसीलिए सकट चौथ को कुछ स्थानों पर तिलकुटा चौथ भी कहते हैं। हिंदी भाषी भारत के उत्तरी राज्यों में सकट चौथ का त्यौहार बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। 

सकट चौथ व्रत कथा -
गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास में पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। किन्तु सबसे अधिक प्रचलित सकट चौथ व्रत पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। सकट चौथ व्रत के दिन माताएं अपनी संतान की खुशहाली के लिए व्रत का पालन करती हैं। इस दिन सुबह सवेरे विघ्न हर्ता गणपति महाराज की पूजा की जाती हैं और शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। 

सकट चौथ व्रत भगवान गणेश के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सकट चौथ के दिन व्रत करने से गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद से भक्तों के जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं। व्रती को सकट चौथ व्रत के शुभ फल की प्राप्ति के लिए सकट चौथ कथा को भी अवश्य सुनना चाहिए।

सकट चौथ व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह का निमंत्रण सभी देवी-देवताओं को दिया गया। इस विवाह का निमंत्रण भगवान विष्णु जी की ओर से दिया गया था। जब बारात की तैयारी होने लगी और सभी देवता बारात में जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तो उन्होंने देखा कि गणेश जी इस शुभ अवसर पर उपस्थित नहीं है। यह बात चर्चा का विषय बन गयी और वहां उपस्थित देवताओं ने भगवान विष्णु जी से इसका कारण पूछ लिया। 

भगवान विष्णु जी ने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेश जी अपने पिता के साथ में आना चाहते तो आ सकते थे, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि गणेश जी को सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू के भोजन की आवश्यकता होती है। यदि गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई विशेष बात नहीं, दूसरे के घर जाकर इतना अधिक खाना-पीना भी उचित नहीं लगता है। इसी दौरान किसी ने यह सुझाव भी दे डाला कि यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप यही घर पर रहकर ध्यान रखना। आपका वाहन भी चूहा है जिस पर बैठकर आप धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे।
 
यह सुझाव भी सभी को ठीक लगा, तो इसके लिए विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी। जब गणेश जी वहां पहुंचे तो उनको घर की रखवाली करने के लिए कह दिया गया। बारात चलने लगी, तो नारद जी ने देखा कि भगवान् गणेश दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो नारद जी ने गणेश जी से रुकने का कारण पूछा। विष्णु भगवान के द्वारा किये गए अपमान की सारी बात गणेश जी ने नारद जी से कही। नारद जी ने उनसे कहा कि आप अपनी मूषक सेना को बारात से आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे विष्णु भगवान् का रथ धरती में धंस जाएगा, तब  विष्णु जी को आपको सम्मान पूर्वक बुलाना पड़ेगा। 

यह सुनकर गणेश जी ने अपनी मूषक सेना को आगे भेज दिया और सेना ने रास्ते को खोद दिया। जब विष्णु जी बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। सभी देवताओं ने अपने सामर्थ्य अनुसार खूब उपाय किए, परंतु रथ के पहिए नहीं निकले। किसी को भी यह समझ आ रहा था कि अब क्या किया जाए। तब नारद जी बोले - आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके सही नहीं किया है। आपको यदि अपना कार्य सिद्ध करना है तो उनको बुलाकर लाना चाहिए, वही सबको इस संकट से बाहर निकाल सकते है। तब शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए। 

गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया, तब जाकर कहीं रथ के पहिए निकले। अब हालाँकि रथ के पहिए बाहर तो निकल तो गए थे, लेकिन वे टूट-फूट गए, तो वे ठीक कैसे होंगे? पास ही खेत में एक खाती काम कर रहा था, उसको बुलाया गया। खाती ने अपना कार्य शुरू करने के पहले श्री गणेशाय नम: कहकर गणेश जी की वंदना करना शुरू किया। और कुछ ही समय में देखते ही देखते खाती ने सभी रथों के पहियों को ठीक कर दिया। कार्य समाप्त करके खाती कहने लगा कि हे देवताओं! चूँकि आपने सर्वप्रथम गणेश जी को नहीं मनाया और न ही उनकी पूजा अर्चना की इसीलिए तो आपके साथ यह संकट उत्पन्न हुआ है। हम लोग तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी सबसे पहले गणेश जी को अवश्य पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। 

आप लोग तो सभी श्रेष्ठ देवतागण हैं, फिर भी आप गणेश जी को कैसे भूल सकते है? अब आप लोग भगवान श्री गणेश की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम निर्विघ्न पूर्ण हो जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। तब गणेश जी का जयगान करके बारात वहां से आगे चली और विष्णु भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह हर्षोल्लास से संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।