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Sawan Shivaratri

भगवान शिव को आदि देव के रूप में भी जाना जाता है, वह कालों के काल, महाकाल भी है और दुष्टों का विनाश करने वाले रूद्र भी है। सावन या श्रावण का पवित्र महीना हिंदू विक्रमी सम्वत पंचांग का पांचवा महीना होता है। इसको वर्ष का सबसे शुभ और पवित्र महीना भी माना जाता है। सावन का यह पूरा महीना भगवान शिव जी को समर्पित है। सावन का महीना उत्सवों से भरा होता है। सावन शिवरात्रि महा पर्व के साथ ही इसमें, सावन सोमवर उत्सव भी आता है, जब भगवान शिव के भक्त व्रत रखते हैं। साथ ही हरियाली तीज, नाग पंचमी और रक्षाबंधन जैसे महत्वपूर्ण पर्व भी इसी माह के दौरान आते है। 

हिंदी पंचांग के अनुसार, प्रत्येक चंद्र महीने का चौदह्वां दिन या अमावस्या से पहले का दिन शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है। यही शिवरात्रि का दिन जब सावन के महीने में आता है, तो उसे श्रावण की शिवरात्रि या सावन शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है। सावन शिवरात्रि या मास शिवरात्रि को अत्यंत ही शुभ दिवस माना जाता है और अधिकांश श्रद्धालु इस पूरे दिन उपवास रखते हैं। अच्छे स्वास्थ्य, वैवाहिक आनंद, शांति और समृद्धि के लिए कई भक्त महा रुद्र-अभिषेक पूजा भी करते हैं। 

सावन शिवरात्रि, ब्रह्मांड के दो सर्वोच्च अवयवों शक्ति और शिव के मिलन का प्रतीक है। भगवान् शिव के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन पूजा और उपवास करते हैं। लाखों शिव भक्त इस दिन शिव मंदिरों में जाते हैं और रुद्राभिषेक, महा मृत्युंजय पूजा जैसी ही कुछ अन्य प्रकार की पूजा भी करते हैं। भगवान शिव से सभी विपत्तियों, बीमारियों से मुक्ति और अच्छे स्वास्थ्य तथा भाग्य की रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। 

ऐसा माना जाता है कि, भगवान शिव ने देवी माँ पार्वती की भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी विवाह करने की इच्छा पूर्ण की। माँ पार्वती, जिनको शक्ति का अवतार भी कहा जाता है, ने शादी के बाद भगवान शिव के अच्छे स्वास्थ्य के लिए गैर चन्द्रमा वाली रातों को उपवास शुरू कर दिया। उसी रिवाज को बाद में भारतीय महिलाओं ने लंबे जीवन और अपने पति की शुभता के लिए अपनाया। सावन शिवरात्रि पर्व की विशेष पूजाएँ काशी विश्वनाथ और बद्रीनाथ जैसे प्रसिद्ध शिव मंदिरों में भी देखी जाती हैं।

सावन शिवरात्रि मुख्य रूप से अधिकांशतः उत्तर भारतीय राज्यों जैसे पंजाब, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और हिमाचल प्रदेश में मनाई जाती है।

भगवान् शिव के भक्त सावन शिवरात्रि पर पूरे दिन उपवास रखने का संकल्प लेते है और अगले दिन व्रत पूर्ण करके प्रसाद रूप में भोजन ग्रहण करते है। श्रद्धालु उपवास की अवधि के दौरान भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उस दिन शिव का ध्यान, पूजा - आराधना भी करते हैं।

कई लोग, सावन के पवित्र महीने के दौरान, भगवान शिव की पूजा करने के लिए हरिद्धार से गंगा जल लेकर भगवान् शिव के शिवलिंग पर अर्पित करते है। यह उत्तर भारत में एक प्रचलित उत्सव है जिसे कांवर यात्रा के नाम से जाना जाता है। भगवा रंग के कपडे पहने भगवान् शिव के ये भक्त “कांवरिया” नामक सम्बोधन से पुकारे जाते हैं। शिव भक्त कावड़ियाँ हिंदू तीर्थ स्थानों से गंगा जल कांधे पर लेकर पैदल यात्रा करते हैं और फिर भगवान शिव के मंदिरों में जाकर जल अर्पित करते हैं।

हालांकि, सावन के महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि, महा शिवरात्रि पर्व से अलग है। साथ ही महा शिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व भी अधिक माना जाता है। यह वह दिन माना जाता है जब भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती से हुआ। महा शिवरात्रि के उत्सव से जुड़ी कई अन्य भी कई किंवदंतियां और कहानियां भी हैं।