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Sharad Purnima

हिन्दू विक्रमी सम्वत के आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्री कृष्ण ने बंसी बजाकर अपने पास बुलाया और भगवत कृपा का अमृत पान कराया था। भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के संग वृंदावन के निधिवन में इसी दिन ही महारास भी रचाया था। 

शरद पूर्णिमा पर्व का हिंदू धर्म में बहुत महत्‍व बताया गया है। माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा से अमृत बरसता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा, कोजागर पूर्णिमा, कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन ही वाल्‍मीकि जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन रास-उत्सव और कोजागर व्रत किया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन इन्द्रदेव, चंद्रमा, श्रीहरि और महालक्ष्मी जी की पूजा का विधान है।

ऐसी मान्‍यता है कि शरद पूर्णिमा ही वो दिन है जब चंद्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं से युक्‍त होकर धरती पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करते है। मान्‍यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में अमृत भरा होता है और ये किरणें मनुष्य के लिए बहुत लाभकारी होती हैं।   

दशहरे बाद से शरद पूर्णिमा तक चन्द्रमा की किरणों में विशेष तेज होता हैं। इन दिनों में चन्द्रमा की चाँदनी का भरपूर लाभ लेना चाहिए, माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति साल भर स्वस्थ और प्रसन्न रहता है। दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात को 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा को देखकर किया गया त्राटक आंखों की रौशनी बढ़ाने के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात को सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से भी नेत्रज्योति बढ़ती है।

शरद पूर्णिमा पर्व पर बनने वाला प्रसाद खीर भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है खीर को रसराज भी कहते हैं। अश्विनी कुमार को देवताओं का वैद्य कहा जाता है। चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करनी चाहिए  कि ‘हमारी इन्द्रियों को ओज-बल प्रदान करें।’ इसके बाद प्रसाद रूप में वह खीर खा लेनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति की जिन इन्द्रियाँ में शिथिलता आ जाती है उनको पुष्टता प्राप्त होती है। 

शरद पूर्णिमा पर्व का दिन, दमे की बीमारी वाले लोगो के लिए बहुत अच्छा होता है। छोटी इलाईची को, चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर में मिलाकर खाकर  रात को जागरण करने से दमे की बीमारी दूर हो जाती है।

इस दिन चन्द्रमा की चाँदनी यदि गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ को पुष्टता मिलती है। वैसे तो बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है किन्तु शरद पूर्णिमा की चाँदनी का अपना विशेष महत्व है।

अमावस्या और पूर्णिमा तिथि को होने वाले चन्द्रमा के विशेष प्रभावों से समुद्र में ज्वार-भाटा आ जाता है। यदि चन्द्रमा इतने बड़े समुद्र में उथल-पुथल करके  तरंगें उत्पन्न कर देता है तो हमारे शरीर में विध्यमान जलीय अंश, सप्तधातुों, सप्त रंगों, पर भी चन्द्रमा का विशेष प्रभाव पड़ता है। इन दोनों तिथियों को भोग,  काम और व्यभिचार में लिप्त रहने वाले लोगो को विकलांग संतान या जानलेवा बीमारी जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड जाता है। वहीं यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया जाए तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में नयापन व तीव्रता आ जाती है।