व्यास पूर्णिमा या व्यास जयंती पर्व महर्षि वेदव्यास के जन्म दिवस के रूप में भारतीय विक्रमी सम्वत पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है यह दिन गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। महर्षि वेद व्यास को सनातन धर्म का एक दिव्य आचार्य माना जाता है। श्री व्यास देव जी को वैदिक बुद्धिमत्ता के सभी आचार्यों या शिक्षाविदों के गुरु के रूप में देखा जाता है क्योंकि उन्होंने ही वेदों को पूरी दुनिया के लिए सरल, सुलभ बनाया।
महर्षि वेद व्यास जी को उनके भक्तों के द्वारा भगवान विष्णु जी का अवतार भी माना जाता हैं। महर्षि वेद व्यास जी ने चार वेदों, पुराणों, महाभारत और भगवद पुराण (श्रीमद्भागवतम्) की दिव्य रचनाएं की हैं। इनके द्वारा की गयी वेद, पुराण, ग्रंथ, शास्त्रों की रचना आज भी मानव मार्गदर्शन करती है।
वेद व्यास जी के विषय में कहा जाता है कि अपने पिछले जन्म में वो ऋषि अपान्तरतमस के रूप में भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उपनिषदों, वेदों और धर्मशास्त्रों का ज्ञान ऋषि अपान्तरतमस में पूर्व निहित था, यही ऋषि भगवान विष्णु की इच्छानुसार भगवान् वेद व्यास के रूप में पैदा हुए थे।
प्रत्येक वर्ष महर्षि व्यास जी के जन्मदिवस पर ही गुरु पूर्णिमा पर्व भी मनाया जाता है। इस दिन महर्षि व्यास जी की पूजा से भगवान विष्णु और महर्षि व्यास की दिव्य कृपा और आशीर्वाद श्रद्धालु प्राप्त करते है। साथ ही ज्ञान, बुद्धि, और आध्यात्मिक उत्थान भी इस दिन व्यास जी के पूजन से प्राप्त होता है।
पराशर मुनि एक बार भारत यात्रा पर आये हुए थे और यमुना नदी के तट पर एक रात विश्राम के लिए रुक गए। वह दशराज नामक व्यक्ति का स्थान था। अगले दिन पराशर मुनि ने उसने विनती करते हुए कहा कि आपकी छोटी लड़की यदि मुझे नाव से ये नदी पार करा दे तो मई आपका आभारी रहूँगा।
दशराज की उस छोटी लड़की का नाम मत्स्यगंधा था। मत्स्यगंधा के साहस, नाव चलाने में उसकी उत्कृष्टता से ऋषि पराशर काफी प्रभावित हुए। अपनी दिव्य शक्तियों का प्रयोग करके, ऋषि पराशर ने जलमार्ग के बीच एक द्वीप का निर्माण किया और मत्स्यगंधा से वहां रुकने की विनती की। फिर ऋषि पराशर ने जलमार्ग में अभेद्य कोहरा उत्पन्न कर दिया और मत्स्यगंधा को एक दिव्य पुत्र प्रदान किया।
यह बालक श्याम(कृष्ण) रंग, एक द्वीप (द्वैपायन) पर जन्म, और वैदिक लेखन को चार खंडों (व्यास) में अलग कर देने वाला होने के कारण 'कृष्ण द्वैपायन व्यास' से जाना गया। उन्होंने एक वेद को कुछ शाखाओं और उप-शाखाओं में विभक्त कर दिया, जिससे की वेदों का अध्ययन, अध्यापन सरल हो सके। "
प्रारंभ में, वेद एक ही है। जिसे आवश्यकतानुरूप व्यास देव जी ने पहले वेद को चार भागों में विभक्त किया, विशेष रूप से साम, यजुर, ऋग, अथर्व। वैदिक भाषा और विषय अध्यन्न कर्ताओं के लिए के अति कठिन हैं, इसीलिए व्यास देव जी ने उन्हें अलग कर दिया और पुराणों और उपनिषदों जैसी ज्ञानवर्धक रचनायें की, ताकि सामान्य मानस तक उनकी पहुँच हो और सभी की जिज्ञासा और उद्देश्यों की पूर्ति हो सकें। सामान्य जनमानस के व्यास देव जी ने लिए, धर्म - अधर्म को समझने के लिए महाभारत की रचना की, जिसको पांचवें वेद के रूप में भी देखा जाता है।
व्यास देव जी का जन्म ऋषि पराशर के यहाँ यमुना नदी के कालपी नामक द्वीप पर हुआ था। इन्ही ऋषि पराशर ने विष्णु पुराण और सत्यवती जैसे दिव्य ग्रंथो की रचना की थी। मान्यता है कि भगवान विष्णु वेदों के ज्ञान को लिपि रूप में परिवर्तित करना चाहते थे, क्योंकि उस समय यह दिव्य ज्ञान मौखिक रूप में ही उपलब्ध था। इस महान कार्य के लिए व्यास देव जी का जन्म हुआ, इसीलिए महिर्षि वेद व्यास को भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है। जिन्होंने न केवल वेदों का निर्माण और उनका वर्गीकरण किया बल्कि कई अन्य महान धार्मिक ग्रंथों की भी रचना की।
वेद व्यास जी के पिता ऋषि पराशर महिर्षि वशिष्ठ के पौत्र थे। ऋषि पाराशर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको वरदान दिया था कि आपका पुत्र श्रद्धा और अपने दिव्य ज्ञान के लिए खूब ख्याति और प्रसिद्धि प्राप्त करेगा। तथा उनका यह पुत्र महिर्षि वशिष्ठ की भाँति ही एक ब्रह्मऋषि होगा।
ऐसा माना जाता है कि वेद व्यास का जन्म उनकी माँ सत्यवती द्वारा पुत्र की कल्पना करते ही तुरंत हो गया था। इसीलिए वेद व्यास जी को द्वीपायन भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है 'द्वीप पर जन्मा व्यक्ति' और उनके काले रंग के कारण व्यास जी को कृष्णा नाम भी दिया गया था। युवा होने पर, व्यास जी ने भगवान ब्रह्मा, नारद मुनि और चतुश कुमारों से ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपना घर त्याग दिया था। कहा जाता है कि महिर्षि वेद व्यास जी ने उत्तराखंड में गंगा के किनारे अपना जीवन बिताया हैं, जहाँ पर ऋषि वशिष्ठ भी पांडवो के साथ में रहे थे।
महाभारत :
महिर्षि वेद व्यास जी के जन्म की कथा का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। जिसके अनुसार व्यास जी की माँ सत्यवती, को एक मछुआरे के यहाँ पर यज्ञ करने के लिए पहुंचना था। इसी मछवारे ने एक बार ऋषि पराशर को नदी के दूसरी ओर नौका से पहुंचाने में मदद की थी। कृतज्ञ स्वरुप ऋषि पराशर ने उस मछवारे को एक मंत्र दिया जिस से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी जो एक बुद्धिमान ऋषि होगा और सदगुणों को धारण करेगा। सत्यवती ने इस मंत्र का तुरंत उच्चारण किया और परिणामस्वरूप उसे वेद व्यास के रूप में एक पुत्र की प्राप्ति हुई। यध्यपि सत्यवती ने अपने पति शांतनु से भी यह बात गुप्त रखी थी।
फिर कई वर्षों के बाद में जब सत्यवती और शांतनु को दो पुत्रों, चित्रांगद और विचित्रवीर्य की प्राप्ति हुई। जिनमे से चित्रांगद एक युद्ध के दौरान मृत्यु को प्राप्त हो गए और विचित्रवीर्य लगातार बीमार रहा करते थे। सत्यवती ने पितृभक्त, भीष्म से अपने पुत्र विचित्रवीर्य के लिए, एक उनकी रानी खोजने के लिए कहा। भीष्म ने काशी के राजा द्वारा आयोजित स्वयंवर में भाग लिया, स्वयंवर जीतकर राजकुमारियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण कर लिया। बाद में, यह जानने पर कि राजकुमारी अम्बा सलवा के राजकुमार से प्यार करती है, भीष्म ने उसको मुक्त कर दिया, लेकिन अम्बा को जब उस राजकुमार ने स्वीकार करने से मना कर दिया तो वह वापस भीष्म के पास आयी और भीष्म से उसने विवाह करने के लिए कहा। आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा के कारण भीष्म ने उसे मना कर दिया। जिससे निराश तथा आहत होकर अम्बा ने भीष्म को मारने की कसम खाई।
बीमार रहने वाले विचित्रवीर्य की राजकुमारी अम्बिका और अम्बालिका से विवाह के दौरान अचानक मृत्यु हो गई। वंश को मिटता देख सत्यवती ने अब भीष्म से उन राजकुमारियों से विवाह करने के लिए कहा, जिससे उन्होंने अपने पिता को दी गयी प्रतिज्ञा के कारणवश मना कर दिया।
तब सत्यवती ने भीष्म से अपने पुत्र व्यास का रहस्य साझा किया और भीष्म से व्यास को हस्तिनापुर लाने के लिए कहा। भीष्म के द्वारा व्यास जी को हस्तिनापुर लाया गया। व्यास जी के दिव्य आध्यात्मिक तेज को राजकुमारी अंबिका से देखा नहीं गया और उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, जिसके परिणामस्वरूप उसने एक अंधे पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम धृतराष्ट्र था। दूसरी राजकुमारी अंबालिका व्यास जी के तेज को देखकर भय से पीली हो गई और उसने एक छोटे बच्चे पांडु को जन्म दिया, जिसके नाम का अर्थ पीला होता है। फिर सत्यवती ने वेद व्यास जी से अंबालिका को एक और स्वस्थ पुत्र प्रदान करने का अनुरोध किया। हालांकि, यह कहा जाता है कि अम्बालिका ने भय से वेद व्यास के सम्मुख स्वयं न जाकर अपनी नौकरानी को भेज दिया जिसने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया जिसका नाम विदुर था। इन पुत्रों के अलावा, वेद व्यास जी का अपनी पत्नी पिंजला से भी एक पुत्र था जिसका नाम सुक्का था। महाभारत में, सुक्का का उल्लेख पुरु राजकुमारों के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में किया गया है, जो समय-समय पर उनका मार्गदर्शन करते हैं।
महान ऋषि वेद व्यास जी को वेदों सहित महान दिव्य ग्रंथों के रचनाकार होने का भी श्रेय दिया जाता है, जो मानव कल्याण भारतीय सभ्यता संस्कृति के लिए बहुत अधिक महत्व रखते हैं।
महान ग्रंथ महाभारत एक प्रसिद्ध भारतीय महाकाव्य है और महिर्षि वेद व्यास जी महाभारत के कालविज्ञानी थे इसमें एक महत्वपूर्ण पात्र भी हैं। वेद व्यास जी ने भगवान श्री गणेश से महाभारत महाकाव्य को लिखने का अनुरोध किया था। भगवान श्री गणेश इस शर्त के साथ ऐसा करने के लिए सहमत हुए कि वेद व्यास के कथनों को बिना किसी विराम के होना होगा। व्यास जी ने उनकी यह शर्त को स्वीकार कर ली और अपनी शर्त रखी कि भगवान गणेश को उनके द्वारा सुनाये जाने वाले श्लोकों को लिखने से पहले समझना होगा। ब्यास नदी के किनारे पर बैठकर, वेद व्यास जी ने ध्यान करते हुए महाभारत की कथा कही और गणेश जी ने इसको लिखना शुरू किया। भगवान गणेश, लेखन और वेद व्यास मुनि के कथा वाचन की इस साझेदारी ने महाभारत, 18 पुराणों और उपनिषदों की दिव्य रचनायें की।
महाभारत का मूल सार धर्म की 'जय' (विजय) के माध्यम से कहा जाता है, जो धृतराष्ट्र (अंधे कुरु राजा और कौरवों के पिता) तथा उनके सारथी और सलाहकार, संजय के बीच एक वार्तालाप है। संजय ने कौरवों और पांडवों द्वारा अपनाई गई युद्ध रणनीतियों, सैन्य गठन और बाकी सभी विषयों के बारे में विस्तार से सब कुछ बताते हुए कुरुक्षेत्र के युद्ध क्षेत्र में होने वाली प्रत्येक घटना धृतराष्ट्र से कही है। यह एक महान कथा है जिसमे धृतराष्ट्र, संजय से रुक-रुक कर सवाल पूछते है, युद्ध की स्थितियों पर चर्चा करते है और परिजनों के विनाश और नुकसान के बारे में सुनकर भावुक भी हो रहे है।
इसी में पवित्र भगवद् गीता के रूप में वेद व्यास की रचना के 18 अध्याय भी शामिल हैं, जो युद्ध, धर्म, इतिहास, भूगोल और नैतिकता की एक शानदार प्रस्तुति है।
पुराण: वेदों को आध्यात्मिकता का सार कहा गया है। व्यास जी का जन्म विष्णु भगवान् की इच्छानुसार इसी महान कार्य को करने के लिए हुआ था। वेदों को हिंदू ग्रंथ और प्राचीन इतिहास और किंवदंतियों के लिए एक वृहद कोश रचना माना जाता है।
ब्रह्म सूत्र: वेद व्यास मुनि द्वारा लिखित ये अमर ग्रंथ हिंदू दर्शन, वेदांत के बारे में हैं, जिसको भद्रायण द्वारा कहा गया है। हालाँकि, वैष्णव आचार्यों का मानना है कि भद्रायण कोई और नहीं, बल्कि वेद व्यास जी स्वयं ही थे। महिर्षि वेद व्यास जी को प्राचीन हिंदू ग्रंथों के कालानुक्रमिक, लेखक, वर्गीकरणकर्ता होने का श्रेय दिया जाता है, जिनका दार्शनिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में अद्भुत योगदान है।..
चमुथ्रम, वह स्थान है जहाँ पर आध्यात्मिक गुरु और उनके शिष्य वेद गुरु से शिक्षा लेने और अध्ययन करने के लिए आया करते थे तथा ब्रह्म सूत्र पर प्रवचन किया करते थे।