एक दिन सुबह के वक्त, समुद्र के किनारे एक तरफ कौए का झुंड हवा में मस्ती कर रहा था, तो दूसरी तरफ हंसों का झुंड धूप का आनंद ले रहा था।
कौए मिलकर हंसों को चिढ़ाने लगे। एक कौआ बोला- देखो, हम लोग हवा में कितनी अच्छी कलाबाजियां कर सकते हैं। तुम लोग तो बस देखने भर के हो, तुम तो ऊंचाई में उड़ भी नहीं सकते।
एक वृद्ध हंस ने कहा- किसी का उपहास नहीं करना चाहिए। हर किसी में कोई न कोई खास योग्यता होती है। इसलिए इस तरह तुलना मत करो।
एक युवा कौआ बोला- हम तो सच्चाई कह रहे हैं, नहीं मानते तो प्रतियोगिता कर लो। हर मामले में हम तुमसे श्रेष्ठ हैं।
एक युवा हंस ने एक युवा कौए से कहा- ठीक है, जो तुम करोगे, वही मैं करूंगा, फिर जो मैं करूंगा, वह तुम्हें करना पड़ेगा।
प्रतियोगिता शुरू हुई।
कौए ने हवा में खूब कलाबाजियां खाईं, हंस यह काम नहीं कर पाया।
अब बारी हंस की थी।
हंस समुद्र की ऊपरी सतह के बराबर-बराबर उड़ने लगा। पीछे-पीछे कौआ। कुछ देर उड़ने के बाद हंस काफी दूर पहुंच गया। तट दिखाई देना बंद हो गया, लेकिन हंस उड़ान भरता रहा। कौआ थकने लगा। लेकिन चारों तरफ अपार जलराशि। कहीं विश्राम नहीं। कौआ समुद्र के पानी को छूने लगा, उसके पंख भीगने लगे। उसने हंस से कहा - मैं हारा।
तुम जीते। मैं थक चुका हूं, और उड़ा तो मेरी जल- समाधि बन जाएगी।
हंस को जब महसूस हुआ कि कौए को सबक मिल गया है, तो उसने कौए को अपनी पीठ पर विश्राम करने को कहा और उसे लेकर वापस तट पर आ गया।
हर व्यक्ति में कोई न कोई खास गुण होता है, इसलिए अपने गुण पर घमंड नहीं करना चाहिए।