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पन्द्रह वर्ष का वीर राम सिंह

मुगल बादशाह शाहजहां के दरबार में राठौर वीर अमरसिंह एक ऊंचे पद पर थे। एक दिन शाहजहाँ के साले सलावतखान ने भरे दरबार में "अमर सिंह" को हिन्दू होने कि वजह से गालियाँ बकी और अपमान कर दिया...

अमर सिंह राठौर के अन्दर हिन्दूवीरों का खून था...

सैकड़ों सैनिकों और शाहजहाँ के सामने वहीं पर दरबार में अमर सिंह राठौर ने "सलावत खान" का सर काट फेंका।

शाहजहाँ कि सांस थम गयी। और इस शेर के इस कारनामे को देख कर मौजूद सैनिक वहाँ से भागने लगे। अफरा-तफरी मच गयी। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमर सिंह को रोके या उनसे कुछ कहे। मुगल दरबारी इधर-उधर भागने लगे। अमर सिंह अपने घर लौट आये।

अमर सिंह के साले का नाम था अर्जुनगौड़। वह बहुत लोभी और नीच स्वभाव का था। बादशाह ने उसे लालच दिया। उसने अमर सिंह को बहुत समझाया-बुझाया और धोखा देकर बादशाह के महल में ले गया। वहां जब अमर सिंह एक छोटे दरवाजे से होकर भीतर जा रहे थे, अर्जुन गौड़ ने पीछे से वार करके उन्हें मार दिया। ऐसे कायरों जैसी बहादुरी से मार कर शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुआ ..उसने अमर सिंह की लाश को किले की बुर्ज पर डलवा दिया। एक विख्यात वीर की लाश इस प्रकार चील-कौवों को खाने के लिए डाल दी गयी।

अमर सिंह की रानी ने समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की लाश के बिना वह सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए थोड़े राजपूतों को और फिर बाद में सरदारों से अपने पति कि लाश लाने को प्रार्थना की पर किसी ने हिम्मत नहीं कि और तब अन्त में रानी ने तलवार मंगायी और स्वयं अपने पति का शव लाने को तैयार हो गयी।

इसी समय अमर सिंह का भतीजा रामसिंह नंगी तलवार लिये वहां आया। उसने कहा- 'चाची! तुम अभी रुको। मैं जाता हूं या तो चाचा की लाश लेकर आऊंगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'

मात्र पन्द्रहवर्ष का वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुंच गया। महल का फाटक खुला था द्वारपाल राम सिंह को पहचान भी नहीं पाये कि वह भीतर चला गया, लेकिन बुर्ज के नीचे पहुंचते-पहुंचते सैकड़ों मुगल सैनिकों ने उसे घेर लिया। राम सिंह को अपने मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी। उसने मुख में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी। दोनों हाथों से तलवार चला रहा था। उसका पूरा शरीर खून से लथपथ हो रहा था। सैकड़ों नहीं, हजारों मुगल सैनिक थे। उनकी लाशें गिरती थीं और उन लाशों पर से राम सिंह आगे बढ़ता जा रहा था। वह मुर्दों की छाती पर होता बुर्ज पर चढ़ गया। अमर सिंह की लाश उठाकर उसने कंधे पर रखी और एक हाथ से तलवार चलाता नीचे उतर आया। घोड़े पर लाश को रखकर वह बैठ गया। बुर्ज के नीचे मुगलों की और सेना आने के पहले ही राम सिंह का घोड़ा किले के फाटक के बाहर पहुंच चुका था।

रानी अपने भतीजे का रास्ता देखती खड़ी थीं। पति की लाश पाकर उन्होंने चिता बनायी। चिता पर बैठीं, सती ने राम सिंह को आशीर्वाद दिया- 'बेटा! गौमाता, ब्राह्मण, धर्म और सती स्त्री की रक्षा के लिए जो संकट उठाता है, भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं। तूने आज मेरी प्रतिष्ठा रखी है। तेरा यश संसार में सदा अमर रहेगा।'

क्यों भारतीय इतिहास से ये कथाएं गायब की गईं..??