एक बार एक व्यक्ति किसी सुनसान टापू पर रहता था। वही निवास करता, वही गुजर बसर करता। लोग टापू पर घूमने आते, अपने रहन सहन बताते, खान पान बताते, धर्म कर्म बताते। वह व्यक्ति बड़ा दुखी होता कि न तो वह शिक्षित है, न ज्ञानी है, न पूजा पाठ जानता है, तो आगे उसका उद्धार कैसे होगा।
संयोग से एक दिन बहुत बड़े साधु वहां आये। उस व्यक्ति ने अपनी इच्छा जाहिर की की वह भी इस टापू पर से निकलना चाहता है, लोगो के जैसे ईश्वर सेवा करना चाहता है। तो क्या गुरुजी मुझे कुछ ज्ञान इस बारे में दे सकते है।
तो उन्होंने हाँ कर दी और कुछ उल्टा सीधा सीखा दिया। पर वह बंदा था बड़ा सरल सहज। उसने बिना ना नुकुर के सब सच मान कर उनकी खूब सेवा की। एक दिन जाने से पहले उसके गुरु ने यह भी कहा कि वह चाहे तो इस मंत्र का जाप कर पानी पर भी चल सकेगा।
अब उसके गुरु के जाने का दिन भी आ गया। और उसने उन्हें उदास मन से विदा किया। पर संयोग से उनका कुछ सामान छूट गया । अब व्यक्ति ने सोचा कि यह तो गुरु का सामान है इसे तो लौटाना पड़ेगा। फिर उसने बिना कुछ सोचे पूरी श्रद्धा से उस मंत्र का जप किया और पानी पर दौड़ लगा दी। और पहुच गया जहाज के पास। उसका गुरु बहुत प्रसन्न हुआ ।पर फिर उससे पूछा कि तुम आये कैसे पानी मे? तो व्यक्ति ने जवाब दिया कि "आप ने जो मंत्र जपने को दिया था वह जपकर"।
उसके गुरु ने अपनी भूल स्वीकार की और उसे कहा कि तुम्हारे जैसे सच्चे सरल और भोले व्यक्ति के साथ तो ईश्वर साक्षात रहता है। आज से आप ही मेरे गुरु।