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जिसको जान लेने से सब जान लिया जाता है

उपनिषद में कथा है कि एक ब्राह्मण पुत्र श्वेतकेतु गुरु से सम्पूर्ण ज्ञान लेके वापिस लोटा। तो उसके पिता ने देखा कि श्वेतकेतु वापस लौट रहा है, आश्रम से अध्ययन करके। स्वभावतः, अकड़ उसमें रही होगी। जो भी थोड़ा-बहुत ज्ञान सीख ले, अकड़ पैदा होती है। श्वेतकेतु अकड़ता हुआ चला आ रहा है, सवेरे सूर्योदय के समय उसके पिता श्वेतकेतु को आता हुआ देखते है।


सब कुछ जानकर लौट रहा है। छः शास्त्र अठारह पुराण, चारो वेद, जो उन दिनों प्रचलित थे, उन सबका ज्ञान लेकर आया है। और साथ मे उस इक्कठा किये हुए ज्ञान का अहंकार भी लेके आया। अब उसके पिता भी उसके सामने कुछ नहीं जानते।


जैसा कि सभी बच्चों को लगता है, जब वे थोड़ा-सा जान लेते हैं। उस दिन के भी बच्चे ऐसे ही थे, जैसे आज के बच्चे हैं। श्वेतकेतु अकड़ से घर में प्रवेश किया। पिता ने उससे पूछा, तू सब जानकर आ गया, ऐसा लग रहा है। उसने कहा कि निश्चित ही। आप पूछ कर देखें। सब परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुआ। सब शास्त्र कंठस्थ हैं। गुरु ने जब प्रमाणपत्र दे दिया, तब मैं आया हूं। पर उसके पिता ने पूछा कि तूने अपने गुरु से वह भी जाना या नहीं, जिसको जान लेने से सब जान लिया जाता है?

उसने कहा, वह क्या वस्तु है, जिसको जान लेने से सब जान लिया जाता है? ऐसी तो कोई वस्तु गुरु ने मुझे नहीं बताई, जिसको जान लेने से सब जान लिया जाता है। मैं तो वे ही वस्तुएं जानकर आ रहा हूं, जिनको जान लेने से उन्हीं को जाना जाता है।


सब का कोई प्रश्न नहीं है। तो पिता ने कहा, तू वापस जा। तू बेकार ही श्रम करके घर लौट आया। तेरी अकड़ ने ही मुझे कह दिया कि तू अज्ञानी का अज्ञानी ही वापस आ रहा है। क्योंकि अकड़ अज्ञान का संकेत है। तू वापस जा। तू शास्त्रों के बोझ से तो दब गया, परन्तु ज्ञान की किरण अभी तेरे जीवन में नहीं फूटी। उसे जानकर आ, जिसे जान लेने के बाद कुछ जानने को शेष नहीं रह जाता।

वह बेचारा वापस लौटा, उदास सब व्यर्थ हो गया, बरसों का श्रम।
गुरु से जाकर उसने कहा कि आपने भी क्या सिखाया? पिता ने कहा कि यह तो कुछ भी नहीं है।और मैं तो यह मानकर लौटा कि सब जान लिया गया। और उन्होंने कहा है कि उसे जानकर आ, जिसे जान लेने से सब जान लिया जाता है। वह क्या है जिसे जान लेने से सब जान लिया जाता है?


उसके गुरु ने कहा, वह तू स्वयं है। परन्तु तूने कभी मुझसे पूछा ही नहीं कि मैं कौन हूं? तूने जो पूछा, वह मैंने तुझे बताया। तूने पूछा, आकाश में बादल कैसे बनते हैं, तो मैंने बताया होगा। तूने पूछा, नदियां कैसे बहती हैं, तो मैंने बताया होगा। तूने पूछा कि अन्न कैसे पचता है, तो मैंने बताया होगा। तूने जो पूछा, वह मैंने तुझे बताया। तूने कभी यह पूछा ही नहीं कि मैं कौन हूं?


और जब तक कोई स्वयं को न जान ले, तब तक वह ज्ञान नहीं मिलता, जिसे जानने से सब जान लिया जाता है। या जिसे जान लेने पर फिर जानने को कुछ शेष नहीं रह जाता है।