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कहानी अहंकार और कृतघ्नता से भरे लोगों के भेद की

कॉलबेल की आवाज़ को सुनकर जैसे ही सुबह सुबह राघव ने दरवाजा खोला तो पाया कि सामने एक पुराना से ब्रीफकेस लिए गांव के मास्टर जी और उनकी बीमार पत्नी खड़ी थीं। मास्टर जी ने राघव के चेहरे के हाव भाव देखकर पता लगा लिया कि उनको सामने देख करके राघव को बिलकुल भी खुशी नहीं हुई है। अपने चेहरे पर वह मुस्कराहट लाने की नाकाम सी कोशिश करते हुए बोला "अरे सर आप दोनों बिना बताए यूँ अचानक से चले आये! अंदर आइये।"
 
मास्टर जी ब्रीफकेस उठाये अंदर आते हुए बोले "हाँ बेटा राघव, अचानक से ही आना पड़ा मास्टरनी जी बीमार हैं पिछले कुछ दिनों से इनका तेज बुखार है कि उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है, अब तो बहुत कमजोर भी हो गई है। गाँव के डॉक्टर ने बिना विलंब किये एम्स दिल्ली में दिखाने के लिए कहा है। अगर तुम आज आफिस से छुट्टी लेकर जरा वहाँ पर नंबर लगाने में थोड़ी सहायता कर सको तो..."
 
"नहीं नहीं, छुट्टी तो आफिस से मिलना असंभव बात है" बात काटते हुए राघव ने कहा। कुछ  ही देर में प्रिया ने भी अनमने ढंग से दो कप चाय और कुछ बिस्किट लेकर उन दोनों बुजुर्गों के सामने टेबल पर रख दिये। टिया सोकर उठी तो मास्टर जी और उनकी पत्नी को देखते ही खूब खुशी से चहकते हुए "दादू दादी" बोलकर उनसे लिपट गयी। दरअसल कुछ महीने पहले जब राघव एक सप्ताह के लिए गाँव गया था तो टिया ज्यादातर मास्टर जी के घर पर ही खेला करती थी। मास्टर जी निःसंतान थे और उनका छोटा सा घर राघव के गाँव वाले घर के बिल्कुल पास में था। 
 
बूढ़े मास्टर जी खूब टिया के साथ में खेलते और मास्टरनी जी की तो बात ही मत पूछो, बेचारी बूढ़ी होने के बाबजूद दिन भर कुछ न कुछ बनाकर टिया को खिलातीं रहतीं थीं। बच्चे के साथ में वो दोनों भी अब बच्चे बन गए थे। फिर गाँव से दिल्ली वापस लौटते समय टिया खूब रोई वैसे उसके अपने दादा दादी तो थे नहीं सो मास्टर जी और मास्टरनी जी में ही टिया हमेशा अपने दादा जी - दादी जी को देखती थी। जाते वक्त राघव ने अपने घर का पता देते हुए कहा कि मास्टर जी से कहा था कि"कभी भी दिल्ली आएं तो हमारे यहां घर जरूर आईयेगा बहुत अच्छा लगेगा।" तब दोनों बुजुर्गों की आँखों से टिया को दूर जाते देखकर आँसू गिर रहे थे और वो जी भरके सच्चे मन से उसे आशीर्वाद दे रहे थे।
 
कुल्ला करने जैसे ही मास्टर जी बेसिन के पास पहुंचे तो उनको प्रिया की आवाज़ सुनाई दी "क्या जरूरत थी तुमको इन्हे अपना पता देने की, दोपहर को मेरी सहेलियाँ आती हैं उनको क्या जबाब दूँगी मैं और प्लीज टिया को अंदर ले आओ, कहीं बीमार बुढ़िया मास्टरनी की गोद मे बीमार न पड़ जाए"

राघव ने कहा "अरे मुझको क्या पता था कि ये लोग सच में आ जाएँगे रुको अभी इन्हें किसी तरह यहाँ से टरकाता हूँ"
 
दोनों बुजर्ग यात्रा से थके, हारे और भूखे आये थे। सोच रहे थे बड़े इत्मीनान से राघव के घर पर चलकर सबके साथ में आराम से नाश्ता करेंगे। इसी कारण उन्होंने कुछ खाया पिया भी नही था। आखिर बचपन में कितनी बार राघव ने भी तो हमारे घर पर खाना खाया है। उन्होंने जैसे अधिकार से उसे उसकी पसंद के घी के आलू पराठे खिलाये थे। इतना बड़ा आदमी बनकर अब राघव भी उनको वैसे ही पराठे खिलायेगा।
 
"टिया!!" मम्मी की तेज आवाज सुनकर डरते हुए टिया अंदर कमरे में चली गयी। थोड़ी देर बाद जैसे ही राघव हॉल में उनसे मिलने के लिए आया तो देखा कि चाय बिस्कुट वैसे ही रखे हुए हैं और वो दोनों जा चुके हैं। जीवन में पहली बार दिल्ली आए दोनों बुजुर्ग किसी तरह टैक्सी से एम्स पहुँचे तो भारी भीड़ में थोड़ा सुस्ताने के लिए एक जगह जमीन पर बैठ गए। तभी उनके पास में एक काला सा आदमी आया और उनके गाँव का नाम लेकर पूछा" आप मास्टर जी और मास्टरनी जी हैं ना। मुझे नहीं पहचाना मैं कल्लूमास्टरजी आपने मुझे पढ़ाया है।"
 
मास्टर जी को याद आया "ये बटेसर हरिजन का लड़का कल्लू है बटेसर नाली और मैला साफ करने का काम करता था। कल्लू को हरिजन जाति से होने के कारण स्कूल में आने पर गांव वालो को आपत्ति रहती थी। इसलिए मास्टर जी शाम में एक घंटे कल्लू को चुपचाप उसके घर पर ही पढ़ा आया करते थे।"

"मैं इस अस्पताल में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी हूँ। साफ सफाई से लेकर पोस्टमार्टम रूम की सारी जिम्मेदारी मेरी ही है।"
 
फिर तुरंत उनका ब्रीफकेस सर पर उठाकर अपने एक रूम वाले छोटे से क्वार्टर में ले गया। रास्ते में मिलने वाले अपने साथ में काम करने वाले लोगों को वह खुशी खुशी बता रहा था, मेरे रिश्तेदार आये हैं मैं इन्हें घर पहुँचाकर अभी आता हूँ। घर पहुँचते ही कल्लू ने अपनी पत्नी को सारी बात बताई पत्नी ने भी खुशी खुशी तुरंत दोनों के पैर छुए फिर सभी ने मिलकर एक साथ गर्मा गर्म नाश्ता किया। फिर कल्लू की छोटी सी बेटी उन बुजुर्गों के साथ खेलने लगी।
 
कल्लू बोला "आप लोग आराम करें आज मैं जो कुछ भी हूँ, आप लोगो की बदौलत ही हूँ, फिर कल्लू अस्पताल में उनका नंबर लगा आया।"  बचपन से ही कल्लू की माँ नहीं थी। मास्टरनी जी का नंबर आते ही कल्लू हाथ जोड़कर डॉक्टर से बोला "जरा अच्छे से इनका इलाज़ करना डॉक्टर साहब ये मेरी बूढ़ी माई है" यह सुनकर बूढ़ी माँ ने आशीर्वाद की झड़ियां लगाते हुए अपने काँपते हाथ कल्लू के सर पर रख दिए। वो बांझ औरत आज सचमुच में एक माँ बन गयी थी, उसे आज बेटा मिल गया था और उस बिन माँ के कल्लू को भी माँ मिल गयी थी...