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कलश स्थापना

सर्व प्रथम कलश में रोली-सिन्दुर आदि से स्वास्तिक बनाकर, कलश कंठ में लाल कपड़ा या मौली बांध कर पूजा स्थान की बांयी ओर (स्वयं से बांयी ओर) अबीर-गुलाल-हल्दिचूर्ण-कुंकुम-आटा आदि से अष्टदल कमल बनायें। पवित्रीकरण-आसनशुद्धि-दिग्बंधन-स्वस्तिवाचन-गणेशाम्बिका पूजन-संकल्प-ब्राह्मण वरण करने के बाद कलश स्थापन किया जाता है। आप YouTube Video में भी online karmkand की सामग्री देख सकते हैं ये यूट्यूब चैनल पर देखने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक करें।
कुंकुम आदि से भूमि पर अष्टदल बनाएं, भूमि का स्पर्श करें :
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ गूँ ह पृथिवीं माहि गूँ सीः ॥
भूमि को लीपने के लिए गोबर का प्रयोग होता है, किन्तु प्रयोग विधि यह है की थोड़ा सा गाय का गोबर अष्टदल के बगल में कलश के आगे रखें और उसका स्पर्श कर यह मन्त्र पढ़ें :
ॐ मानस्तोके तनयेमानऽआयुषिमानो गोषुमानोऽअश्वेषुरीरिष: ।
मानो विरान्रुद्रभामिनो वधीर्हष्मन्तः सदमित्वा हवामहे ॥
अष्टदल के मध्य में सपधान्य या धान-गेंहूँ-चावल जो भी शुद्ध उपलब्ध हो उसका पुंज बना दें :
ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा।
दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धान्देवो वः सविता हिरण्यपाणिः
प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि॥
धान्यपुंज पर सुवासित कलश स्थापित करे :
ॐ आजिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः पुनरुर्जा निवर्तस्व सा नः।
सहस्रं धुक्ष्वोरु धारा पयस्वतिः पुनर्म्मा विशताद्रयिः॥
कलश में गंगाजल या गंगाजल मिश्रित सामान्य जल दें :-
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्त्थो
वरुण्स्य ऽऋतसदन्न्यसि वरुणस्य ऽऋतसदनमसि वरुणस्य ऽऋतसदनमासीद् ॥
गन्धप्रक्षेप (चन्दन-हल्दी इत्यादि) :-
ॐ त्वां गन्धर्वा ऽअखनँस्त्वामिन्न्द्रस्त्वाँ बृहस्पति: ।
त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान्न्यक्ष्मादमुच्च्यत ॥
सर्वौषधि प्रक्षेप :-
ॐ या ओषधी: पूर्वा जाता देवेब्भ्यस्त्रियुगं पुरा ।
मनैनु बब्भ्रूणावह गूँ शतं धामानि सप्त च ॥
दूर्वाप्रक्षेप :-
ॐ काण्डात काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि।
एवा नो दूर्वे प्रतनु सहस्त्रेण शतेन च॥
पञ्चपल्लव प्रक्षेप :-
ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्ण्णे वो वसतिष्कृता।
गोभाजऽइत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ॥
सप्तमृदा प्रक्षेप :-
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी ।
यच्छा नः शर्म सप्रथाः ॥
(अश्वस्थानाद गजस्थानाद वल्मिकात्संगमात्हृदात् । राजग्द्वाराच्च गोगोष्ठान मृदमानीय निक्षिपेत्)
कुश प्रक्षेप :-
ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम्॥
फलप्रक्षेप (बड़ा और अच्छा सुपाड़ी दें) :-
ॐ याफलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी।
बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व गूँ हस:॥
पञ्चरत्न प्रक्षेप :-
ॐ परि वाजपति: कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत् । दधद्रत्नानि दाशुषे ॥
(पंचरत्न शुद्ध उपलब्ध हो तो दें अन्यथा बाजारू निकृष्ट वस्तु न दें, यदि शुद्ध पंचरत्न उपलब्ध न हों तो उसके स्थान पर पुराने ५ सिक्के ही दे दें। १-२-५ रूपये का पुराना सिक्का लौहमय नहीं होता है, किन्तु नया सिक्का देना हो तो १० या ५० का ही दें )
हिरण्य प्रक्षेप (अथवा द्रव्य-सिक्का दें किन्तु लौहद्रव्य न हो) :-
ॐ हिरण्यगर्ब्भ: समवर्त्तताग्ग्रे भूतस्य जात: पतिरेक ऽआसीत ।
स दाधार पृथ्वीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
रक्तसूत्रेण वस्त्रेण वा कलशं वेष्टयेत् (कलश में लाल वस्त्र या मौली लपेटें) :-
ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्मवरूथमासदत्स्वः ।
वासोअग्ने विश्वरूप गूँ संव्ययस्व विभावसो ॥
कलशस्योपरि पूर्णपात्रं न्यसेत् (कलश पर पूर्णपात्र दें) :-
ॐ पूर्णादर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत ।
वस्न्नेव विकृणावहा इषमूर्ज गूँ शतक्रतो ॥
(पिधानं सर्ववस्तूनां सर्वकार्यार्थसाधनम्।
संपूर्ण: कलशो येन पात्रं तत्कलशोपरि)
कलश पर पूर्णपात्र रखें ।
पूर्णपात्रोपरि श्रीफलं नारिकेलं वा न्यसेत् :-
ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे
पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् ।
इष्णन्निषाणामुम्मऽइषाण सर्वलोकम्मऽइषाण ।
पूर्णपात्र पर नारियल रखें।
एक दीप जलाकर नारियल के ऊपर इस मन्त्र से रखें :
ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्योज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा।
अग्निवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्योवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा।
ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ॥
नारियल पर दीप रखकर हाथ धो लें।
अक्षत पुष्प लेकर कलश में वरुण का आवाहन करें :-
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश गूँ समा न आयुः प्र मोषीः॥
भगवन्वरुणागच्छ त्वमस्मिन कलशे प्रभो ।
कुर्वेऽत्रैव प्रतिष्ठाम् ते जलानां शुद्धिहेतवे ॥
अस्मिन् कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावायामि स्थापयामि ।
ॐ अपांपतये वरुणाय नम​: ॥
कलशस्थितदेवानां नदीनाम् तीर्थानाम् च आवाहनम् :-
(अक्षत पुष्प लेकर कलश में अन्य देवताओं का भी आवाहन करें)
कलाकला हि देवानां दानवानां कलाकला: ।
संगृह्य निर्मितो यस्मात् क्लशस्तेन कथ्यते ॥
कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठे रुद्र समाश्रित​:।
मूलेत्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता: ॥
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा च मेदिनी ।
अर्जुनी गोमती चैव चन्द्रभागा सरस्वती ॥
कावेरी कृष्णवेणा च गंगा चैव महानदी ।
तापी गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥
नदाश्च विविधा जाता नद्य​: सर्वास्तथापरा: ।
पृथिव्यां यानि तीर्थानि कलशस्थानि तानि वै ॥
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा: ।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारका: ॥
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद​: सामवेदो ह्यथर्वण​: ।
अंगैश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता: ॥
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति पुष्टिकरी तथा ।
आयान्तु मम शान्त्यर्थम् दुरितक्षयकारकाः ॥
इन मन्त्रों का उच्चारण कर अक्षत छोड़ते जायें ।
अक्षतान् गृहीत्वा प्राणप्रतिष्ठां कुर्यात् :-
अक्षत पुष्प से प्राण-प्रतिष्ठा करें :
ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञ गूँ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों ३ प्रतिष्ठ ॥
कलशे वरुणाद्यावाहितदेवता: सुप्रतिष्ठिता: वरदा: भवन्तु ॥
ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नम​: ॥
कलश पर चावल छोड़कर स्पर्श करें ।
कलश के चारों दिशाओं में चारों वेदों के लिए अक्षत-पुष्प छोड़े
कलशस्य चतुर्दिक्षु चतुर्वेदान्पूजयेत् :-
पूर्व - ऋग्वेदाय नम​: ।
दक्षिण - यजुर्वेदाय नम​: ।
पश्चिम - सामवेदाय नम​: ।
उत्तर - अथर्वेदाय नम​: ।
कलश के ऊपर - ॐ अपाम्पतये वरुणाय नम​: ।
कलश के चारों तरफ तथा मध्य में चावल छोड़े ।
षोडशोपचारै: पूजनम् कुर्यात् :-
मिथिला में ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: के स्थान पर
"ॐ वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः" का प्रयोग होता है। और गणेशाम्बिका पूजन को भी इसी में समाहित माना जाता है।
ध्यान (अक्षत-पुष्प लेकर अंजलिबद्ध होकर ध्यान करें) :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।
(ध्यान के लिये फ़ूल कलश पर छोडें)
आसन (अक्षत-पुष्प कलश के नीचे दें) :-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: आसनार्थे पुष्पाक्षतं समर्पयामि।
पाद्य (जल) :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: पादयो: पाद्यं समर्पयामि।
अर्ध्य (अर्घपात्र में जल-अक्षत-पुष्प-दूर्वा-सुपारी-फल-द्रव्य आदि लेकर दे) :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम:, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि।
स्नानीय जल :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: स्नानीयं जलं समर्पयामि।
स्नानांग आचमन :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: स्नानते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
पंचामृत स्नान :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: पंचामृतस्नानं समर्पयामि।
(पंचामृत से स्नान करवायें,पंचामृत के लिये दूध,दही,घी,शहद,शक्कर का प्रयोग करें)
गन्धोदक स्नान :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: गन्धोदकस्नानं समर्पयामि।
(पानी में चन्दन को घिस कर पानी में मिलाकर या गुलाबजल से स्नान करवायें)
शुद्धोदक स्नान :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
आचमन (जल) :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: वस्त्रं समर्पयामि।
आचमन (जल) :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
यज्ञोपवीत :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
आचमन (जल) :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
उपवस्त्र :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: उपवस्त्रं समर्पयामि।
आचमन (जल) :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
चन्दन :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: चन्दनं समर्पयामि।
अक्षत :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: अक्षतं समर्पयामि।
पुष्पमाला :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: पुष्पमाल्यं समर्पयामि।
दूर्वा :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: दुर्वाङ्कुरान् समर्पयामि।
बेलपत्र :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: बिल्वपत्रं समर्पयामि।
नानापरिमल द्रव्य :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: नानापरिमल द्रव्यं समर्पयामि।
(नाना परिमल द्रव्य -अबीर-गुलाल-हल्दी चूर्ण आदि चढायें)
सुगन्धित द्रव्य (इत्र) :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि।
धूप :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: धूपमाघ्रापयामि।
दीप :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: दीपं दर्शयामि।
हस्तप्रक्षालन :- दीपक दिखाकर हाथ धो लें।
नैवैद्य :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: नैवैद्यं निवेदयामि।
आचमनादि :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: - आचमनीयं जलं - मध्ये पानीयं - उत्तरापोऽशने - मुखप्रक्षालनार्थे - हस्तप्रक्षालनार्थे च जलं समर्पयामि। (आचमनीय जल एवं पानीय तथा मुख और हस्तप्रक्षालन के लिये जल चढायें)
करोद्वर्तन :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: करोद्वर्तनं समर्पयामि।
(करोद्वर्तन के लिये गन्ध समर्पित करें)
ताम्बूल :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: ताम्बूलं समर्पयामि।
(सुपारी इलायची लौंग सहित पान का ताम्बूल समर्पित करें)
दक्षिणा :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: कृताया: पूजाया: साद्गुण्यार्थे द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि।
आरती :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: आरार्तिकं समर्पयामि।
(आरती करें)
प्रदक्षिणा :
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: प्रदक्षिणां समर्पयामि।
(प्रदक्षिणा करें)
प्रार्थना :
हाथ में पुष्प लेकर इस प्रकार से प्रार्थना करें-
देवदानव संवादे मथ्यमाने महोदधौ ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयं।।
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवा: सर्वे त्वयि स्थिता:।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणा: प्रतिष्ठता:।।
शिव: स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापति।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा: सपैतृका:।।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यत: कामफ़लप्रदा:।
त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव।।
सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा।।
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते।।
ॐ अपांपतये वरुणाय नम:।।
नमस्कार:
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम:
प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।
(इस मन्त्र से नमस्कार पूर्वक पुष्प समर्पित करें)
अब हाथ में जल लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण कर जल कलश के पास छोडते हुये समस्त पूजन कर्म भगवान वरुणदेव को निवेदित करें-
समर्पण :
अनेन कृतेन पूजनेन कलशे वरुनाद्यावाहितदेवता: प्रीयन्तां न मम।