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माहेश्वर सूत्र

माहेश्वर सूत्र और उनसे बने पाणिनि के अष्टाध्यायी के सूत्र आजकल के Object Oriented Programming के सूत्रधार है। कौन सोच सकता था आज से हज़ारो वर्ष पूर्व बने संस्कृत के एहि सूत्र, संस्कृत को artificial intelligence और computing के लिए सबसे उपयुक्त भाषा बना देगी।

जैसे किसी computer program में पहले variable बनाये जाते है, फिर समय समय पर उन variable पर अनेक method लगा कर output बनाते है। उसी प्रकार पाणिनि व्याकरण में सबसे पहले इन्ही variable को माहेश्वर सूत्र के रूप में बताया गया। यह variable ही बाद में अच् हल आदि बन कर सूत्रों की व्याख्या करते है।

OOP की तरह ही यहाँ पर अधिकार सूत्र आदि बताते है कि किसी method या सूत्र का अधिकार कहाँ तक है। यह एक तरह से class definition की तरह ही है। तो पूर्ण पाणिनि अष्टाध्यायी एक OOP ही है।

पाणिनि को इस विषय में मैं दुनिया का प्रथम computer programmer है। उनकी सोच से एक बृहद विषय इतनी आसानी से बिना किसी ambiguity के साथ कुछ ही सूत्रों में आ गया। माहेश्वर सूत्र ही इनकी नीव थे, और इसिकिये उनकी उत्पत्ति नहीं होती तो यह सूत्रीय भाषा कभी इतनी सुसज्जित और सुन्दर नहीं बन पाती।


माहेश्वर सूत्र  की उत्पत्ति 

पाणिनि मुनि ने , संस्कृत व्याकरण की रचना करने के लिये , शिवजी की उपासना की।

शिवजी ने प्रसन्न होकर , पाणिनि मुनि से वर माँगने को कहा ।

पाणिनि जी ने, संस्कृत व्याकरण की रचना के लिए शिवजी से वर मॉंगा । तब शिवजी ने संक्षेप में व्याकरण समझा ने के लिये, अपने डमरू को १४ बार बजा कर , डमरू की ध्वनि से ही १४ सूत्रों में , सारा व्याकरण संक्षेप ( सूत्र = अत्यंत संक्षेप) , में समझा दिया।

ऐसा भी मानना है कि, ध्वनि रूप से व्याकरण प्रकट करने के लिये, शिवजी ने , नटराज के रूप में , नृत्य करते हुए, डमरू बजा कर सूत्रों में व्याकरण प्रकट किया।

नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।

उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ।।

अर्थात:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों  की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार , वर्ण माला रूप में १४, सूत्रों की सामने आई।

इसे माहेश्वर सूत्रों के नाम से जाना जाता है ।

इन १४ सूत्रों में संस्कृत भाषा के समस्त वर्णों को समावेश किया गया है। प्रथम ४ सूत्रों (अइउण् – ऐऔच्) में स्वर वर्णों तथा शेष १० सूत्र व्यंजन वर्णों की गणना की गयी है। संक्षेप में स्वर वर्णों को अच् एवं व्यंजन वर्णों को हल् कहा जाता है। अच् एवं हल् भी प्रत्याहार हैं।

पाणिनि मुनि ने, आठ अध्यायों में , संस्कृत व्याकरण की रचना की थी । इसी से इसे अष्टाध्यायी कहा जाने लगा । बाद को इसे ही पाणिनि व्याकरण कहा जाने लगा ।

माहेश्वर १४ सूत्र

अ इ उ ण् ।१।

ऋ लृ क् ।२।

ए ओ ङ् ।३।

ऐ औ च् ।४।

ह य व र ट् ।५।

ल ण् ।६।

ञ म ङ ण न म् ।७।

झ भ ञ् ।८।

घ ढ ध ष् ।९।

ज ब ग ड द श् ।१०।

ख फ छ ठ थ च ट त व् ।११।

क प य् ।१२।

श ष स र् ।१३।

ह ल् ।१४।

उपरोक्त 14 महेश्वर सूत्रों के आधार पर ही महर्षि पाणिनि ने व्याकरण शास्त्र की रचना की थी।