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देवशयनी व देवउठनी एकादशी से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य

प्राचीन काल के हमारे ऋषियों व् मुनियों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक व तार्किक होता था। उनको ऋतुओ व दिन रात के बारे में पूरी जानकारी थी। इसलिए उन विषयों को समझकर हमारे पूर्वज ऋषयो व् मुनियों ने कुछ नियम बनाये जो समय के अनुकूल हो। 

वैज्ञानिक ऋषियों को पता था कि देवशयनी एकादशी तक मानसून सक्रिय हो जाता है व् देवउठनी एकादशी तक मानसून रुक जाता है। उस काल में शुभ कार्य रोक देते थे क्योंकि उस समय यातायात के साधन हाथी, घोड़े, रथ, व् बैलगाड़ी आदि थे जिनके साथ वर्षाकालीन समय में चलने में कठिनाई होती थी। आबादी भी उस समय दूर दूर होती थी। 

दूसरे हमारे ऋषि गण जो घने जंगलो व् पर्वतों की गुफाओ में रहते थे, साधना करते थे। तो वर्षा आने पर वहाँ पशु, पक्षी, जानवर, प्राकृतिक आपदा की सम्भावना  बढ़ जाती थी अतः वे लोग किसी गाँव के पास आकर रहते थे व मानसून जाते ही वापस चले जाते थे। 

तब गांव की जनता द्वारा इन ऋषियों का निश्यत दिन आदर, सत्कार, के साथ इनसे ज्ञान, प्रवचन और सत्संग लिया जाता था। ऋषियों के आगमन व विदाई का कार्यक्रम होता था, जो कालांतर में देवशयनी व् देवउठनी एकादशी के रूप में मानाया जाने लगा।