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होली पर्व से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य

भारतीय व्रत, त्यौहार और परम्पराओं को कुछ लोग अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और गैरजरूरी मानते है। जबकि महान भारतीय ऋषि, मुनि और साधकों द्वारा गहन साधना, ज्ञान और दूरदर्शिता का प्रयोग करते हुए ठोस वैज्ञानिक नियमो के आधार पर ही इन व्रत, त्यौहार और परम्पराओं का निर्माण किया गया। जिसका लम्बे कालखंड तक भारतीय जनमानस ने मनुष्य जीवन में प्रधानता देते हुए पालन भी किया। हालाँकि आज बहुत से लोग इनका पालन श्रद्धा और विशवास के आधार पर करते है जबकि इनके पीछे गूढ़ वैज्ञानिक कारण भी छिपे है। 

ऐसा ही एक भारतीय त्यौहार है होली, जिसे भारतीय लोग बड़े उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मानते है। होली से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य निम्नलिखित है।    

होली का त्योहार साल में ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव होने की वजह से लोग नाउम्मीद और आलसी से हो जाते हैं। ठंडे मौसम के बाद थोड़ी गर्मी  बढ़ने लगती है जिसकी वजह से शरीर प्राकृतिक परिवर्तन स्वरूप कुछ थकान और सुस्ती महसूस करने लगता है। शरीर की इस सुस्ती को दूर करने के लिए ही लोग फाग के इस मौसम में न केवल जोरो से गाते हैं बल्कि बोलते भी हैं। 

होली से पहले के दिनों में बजाया जाने वाला संगीत भी बेहद तेज होता है। ये क्रियाएं मानवीय शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करती हैं। इसके अलावा रंग, गुलाल और अबीर जब शरीर पर डाला जाता है तो इसका भी उस पर बहुत अच्छा प्रभाव होता है।

होली पर शरीर पर ढाक के फूलों से तैयार किया गया रंगीन पानी, विशुद्ध रूप में अबीर और गुलाल डालने से शरीर पर पड़ने वाला इसका प्रभाव एक सुखद अनुभव प्रदान करता है और यह शरीर को ताजगी का एहसास कराता है। जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि गुलाल या अबीर शरीर की त्वचा को उत्तेजित करते हैं और पोरों में समा जाते हैं। साथ ही शरीर के आयन मंडल को मजबूती प्रदान करते हुए स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं और उसकी सुदंरता में भी निखार लेकर आते हैं।

होली के त्योहार को मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण है जोकि होलिका दहन की परंपरा से जुड़ा हुआ है। शरद ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतु के आगमन का यह काल पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की संख्या को भी बढ़ा देता है, किन्तु जब होलिका दहन किया जाता है तो उससे करीब 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान बढ़ता है। परंपरा के अनुसार जब लोग जलती हुई होलिका की परिक्रमा करते हैं, तो होलिका दहन से निकलता ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। इस प्रकार यह उच्च तापमान शरीर तथा पर्यावरण को स्वच्छ करता है।

दक्षिण भारत में जिस प्रकार से होली मनाई जाती है, उससे भी अच्छे स्वस्थ की प्राप्ति होती है। होलिका दहन के बाद इस क्षेत्र में लोग होलिका की बुझी आग की राख को माथे पर विभूति के तौर पर लगाते हैं और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वहां के लोग चंदन तथा हरी कोंपलों और आम के वृक्ष के बोर को मिलाकर उसका सेवन भी करते हैं।

कुछ वैज्ञानिकों का ऐसा भी मानना है कि रंगों से खेलने से स्वास्थ्य पर इनका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि रंग हमारे शरीर तथा मानसिक स्वास्थ्य पर कई प्रकार से प्रभाव डालते हैं। पश्चिमी फीजिशियन और डॉक्टरों का भी मानना है कि एक स्वस्थ शरीर के लिए रंगों का महत्वपूर्ण स्थान है।

हमारे शरीर में किसी रंग विशेष की कमी कई बीमारियों को जन्म देती है और जिनका इलाज केवल उस रंग विशेष की आपूर्ति करके ही किया जा सकता है।