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Kaal Bhairav Mandir

काल भैरव मंदिर, उज्जैन स्थित एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है जो कि भगवान काल भैरव को समर्पित है। यहाँ हर रोज़ भक्तों का ताँता लगा होता है। काल भैरव देवता को समर्पित, जिन्हें शहर का संरक्षक देवता कहते हैं, यह मंदिर शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है। यह उज्जैन के सबसे जीवन्त मंदिरों में से एक है।

भैरव बाबा मंदिर की रचना

कहा जाता है कि मंदिर की मूल रचना का निर्माण अप्रसिद्ध राजा भद्रसेन द्वारा करवाया गया था। ऐसा अवंति खंड और स्कन्द पुराण में उल्लेखित है। आज वर्तमान काल में मंदिर का निर्माण मंदिर की पुरानी रचना पर ही किया गया है और इस मंदिर में मराठा वास्तुकला की झलक दिखाई देती है। यहाँ के कुछ निशान इस बात के साक्षी हैं कि मंदिर की दीवारों को मालवा चित्रों से सजाया गया था। परमार काल के (9वीं-13वीं सदी)भगवान शिव जी, पार्वती जी, विष्णु जी और गणेश जी से सम्बंधित कई तस्वीरों को यहाँ बरामद किया गया है।

भैरव बाबा को विशेष प्रसाद का चढ़ावा

काल भैरव मंदिर की सबसे दिलचस्प बात है यहाँ का चढ़ावा। यहाँ के चढ़ावे में प्रसाद के रूप में देवता को शराब(मदिरा) चढ़ाई जाती है। देवता को मदिरा पान कराना तांत्रिक अनुष्ठान के 5 चढ़ावों में से एक है जिन्हें पंचमकार कहते हैं; मद्य(शराब), मांस,मीन या मत्स्य(मछली) और मुद्रा और मैथुन(संभोग)। पुराने ज़माने में, देवता को इन पांचों अनुष्ठानों का चढ़ावा चढ़ता था पर अब इनमें से सिर्फ मदिरा का चढ़ावा चढ़ता है, अन्य चार अब सिर्फ प्रसाद प्रतीकात्मक अनुष्ठान के रूप में रह गए हैं।

मंदिर का पंडित शराब को एक बर्तन में डाल देवता के मुख के सामने, जहाँ एक संकरी दरार है, चढ़ावे के रूप में रख देता हैजैसे-जैसे पंडित बर्तन को उनके मुख में डालने के लिए टेढ़ा करता जाता है, शराब भी धीरे-धीरे गायब होने लगती है, यानि कि बर्तन में से ख़त्म होने लगती है। उस शराब की बोतल का एक तिहाई हिस्सा भक्त को ही दोबारा प्रसाद के रूप में लौट दिया जाता है। मंदिर के पुजारी और साथ ही साथ वहां आने वाले भक्तों का कहना है कि देवता की मूर्ति के मुँह में जो संकरी दरार है उसमें किसी भी तरह का गुहा या छेद नहीं है, भैरव देवता खुद ही चमत्कारिक ढंग से मदिरा का प्रसाद के रूप में पान करते हैं।


तांत्रिक मंदिर 

काल भैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों में मांस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्राचीन समय में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहां तांत्रिक क्रियाएं करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का भोग भी चढ़ाया जाता था। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूं ही जारी रखा।

अब यहां जितने भी दर्शनार्थी आते हैं, बाबा को भोग जरूर लगाते हैं। यहां विशिष्ट मंत्रों के द्वारा बाबा को अभिमंत्रित कर उन्हें मदिरा का पान कराया जाता है, जिसे वे बहुत खुशी के साथ स्वीकार भी करते हैं और अपने भक्तों की मुराद पूरी करते हैं।

काल भैरव के मदिरापान के पीछे क्या राज है। पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करने वाले बताते हैं, उनके दादा के जमाने में एक अंग्रेज अधिकारी ने मंदिर की खासी जांच करवाई थी। उसने प्रतिमा के आसपास की जगह की खुदाई भी करवाई,  लेकिन कुछ भी उसके हाथ नहीं लगा ।उसके बाद वे भी काल भैरव के भक्त बन गए। उनके बाद से ही यहां देसी मदिरा को वाइन उच्चारित किया जाने लगा, जो आज तक जारी है।