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Naimisharanya Tirtha

उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से सीतापुर 92 किमी की दुरी पर स्थित है , यही है वह ऋषि और पवित्र  भूमि जहा महा पुराण लिखे गये है , नाम है नैमिषारण्य | नैमिषारण्य सतयुग काल से प्रसिद्ध है।  इस पवित्र स्थान पर जाकर लोग अपने पाप से मुक्त हो जाते हैं ऐसा माना जाता है। नैमिषारण्य का भ्रमण करने पर, आदमी ‘मोक्ष’ (लिबरेशन) को प्राप्त हो जाता है और अपार शक्तियाँ उपलब्ध हो जाती है । पुराणों में इस स्थान को  नैमिषारण्य ,नैमिष या नीमषार के रूप में जाना जाता है।

 

इस तपोभूमि पर भारत के महान ऋषियों और गुरुओ ने आत्मतत्व ज्ञान की प्राप्ति के लिए 1000 वर्ष तक ज्ञान यज्ञ सम्पन्न किये जैसा कि श्रीमदभागवत में लिखा है।

 

उत्तर भारत के प्रमुख संत एवं हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने इस तीर्थ के विषय मे श्रीरामचरितमानस मे लिखा है सभी तीर्थो में नैमिषारण्य तीर्थ वर (दुल्हा) के सामान है और साधक को भगवत साधना करने पर तुरन्त सिद्धि को प्रदान करता है। नैमिषारण्य नाभि (पेट) गया है जहाँ पिण्ड़ दान करने से पितृ ( माता-पिता व पूर्वजों) का पेट भरता है। जिससे पितृ-दोष से मुक्त होकर व्यक्ति सुख सम्पन्नता को प्राप्त करता है।

 

नैमिषारण्य तीर्थ में दर्शनीय स्थल

चक्र तीर्थ

 

महापुराण, उपपुराण तथा औपपुराणों में वर्णित है कि ब्रह्मा जी के द्वारा छोड़े गये ब्रह्ममनोमय चक्र से चक्रतीर्थ की उत्पत्ति हुई है। इसके स्नान मार्जन के फल का वर्णन करते हुए पुराणो में लिखा है अर्थात् चक्रतीर्थ महान पुण्यदायी है और सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला है। पृथ्वी के मध्यभाग मे स्थित है और पृथ्वी का देवता है।

 

ललिता देवी

 

भिन्न पुराणों में वर्णित है कि सती ने दक्षयज्ञ मे शरीर त्याग के उपरान्त शिव जी सती जी के पर्थिव शव को स्कन्ध पर डालकर अन्मयस्कभाव से विचरण करने लगे, जिससे सृष्टि संहार कार्य बधित हो गया तब विष्णु ने लोक कल्याण की भावना से प्रेरित हो सती माता के शव के 108 टुकड़े किये जो शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध हुये । उसमे से नैमिष मे स्थित शक्तिपीठ लिंगधारणी ललिता नाम से प्रसिद्ध है ।

 

व्यास गद्दी

 

पुराणों के अनुसार यहाँ पर महर्षि वेदव्यास ने वेदों का विभाजन तथा पुराणों का निर्माण करके उनका ज्ञान अपने प्रमुख शिष्यों जैमिन, अंगिरा, वैश्म्पायन, पैल तथा शुकदेव जी को दिया और सनातन धर्म को आगे बढ़ाने के लिए उसे प्रसारित करने के निर्देश भी दिया |

 

सूत गद्दी

 

इस जगह पर , बाबा सूत शौनक को प्रवचन और 88,000 अन्य संतों दिया था ।

 

पांडव किला और हनुमान गढ़ी

 

भागवन श्री राम-रावण युद्ध के समय अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण का अपहरण किया तब हनुमान जी पातालपुरी मे जाकर अहिरावण का वध करके कंधों पर राम और लक्ष्मण को बैठाकर यही से दक्षिण दिशा (यानि लंका) की ओर प्रस्थान किया ।अतः यहाँ दक्षिणमुखी प्रकट हुए । यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के उपरान्त आकर 12 वर्ष तपस्या की है जिससे पांड़व किला कहते हैं ।