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Tirupati Balaji Temple

भारत के सबसे चमत्‍कारिक और रहस्‍यमयी भगवान तिरुपति बालाजी मंदिर, आंध्र प्रदेश के तिरुमाला की पहाड़ियों पर स्थित है।  इस  मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर विराजमान हैं।  भारत के सभी मंदिरो की तुलना में तिरुपति बालाजी के मंदिर को सबसे अमीर मंदिर माना जाता है।

भगवान तिरुपति के दरबार में गरीब और अमीर दोनों सच्‍चे श्रद्धाभाव के साथ अपना सिर झुकाते हैं। तिरुपति बालाजी को भक्त अगल- अलग नामों से पुकारते हैं। कोई उन्हें वेंकटेश्वर कहता है तो कोई श्रीनिवास। श्रद्धा से महिलाएं उन्हें प्यार से गोविंदा कहती हैं।  हर साल हर वर्ग के लाखों श्रद्धालु  इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्‍वर का आशीर्वाद लेने के लिए एकत्र होते हैं। फिल्मी सितारों से लेकर राजनेता आदि सभी तिरुपति बालाजी के दर्शन करने यहां आते हैं। 


तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास

तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है। तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था। कहा जाता है कि 18 शताब्दी में मंदिर के मुख्य द्वार पर 12 लोगों को फांसी दी गई थी तब से लेकर आज तक वेंकटेश्वर स्वामी जी मंदिर में समय-समय पर प्रकट होते हैं। 


तिरुपति बालाजी मंदिर में होने वाले चमत्कार

गोविंदा के मंदिर तिरुपति बालाजी से जुड़ी कई मान्यताएं और विश्वास है। यहां कई ऐसी चीजें है जिन पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल होता है, वैज्ञानिक भी इन रहस्यों के पीछे की वजह तलाश रहे हैं। वैज्ञानिक कुछ भी कहें लेकिन वेंकटेश्वर के भक्त इसे भगवान का चमत्कार मानते हैं। 


मूर्ति अपना स्थान बदलती है
मंदिर में रखी बालाजी की मूर्ति अपना स्थान बदलती है। मंदिर में मूर्ति को देखकर तब आश्चर्य होता है जब बाला जी की मूर्ति को गर्भ-गृह से देखने पर वह मंदिर के मध्य में दिखाई देती है और जब मंदिर से बाहर आकर देखें तो वह अपना स्थान बदलकर दाई ओर दिखाई देने लगती है।


असली बाल 
कहा जाता है कि भगवान वेंकटेश्‍वर स्‍वामी की मूर्ति पर जो बाल हैं वो हम मनुष्यों की भांति असली बाल हैं। ये कभी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं। भक्तों की मान्यता है कि यहां भगवान स्वयं रहते हैं। 


पिचाई कपूर
तिरुपति बालाजी के मंदिर में भगवान को एक पिचाई कपूर चढ़ाया जाता है। ये वह कपूर है जिसको अगर किसी और पत्थर पर लगाया जाता है तो वह पत्थर कुछ समय बाद चटक जाता है लेकिन भगवान की मूर्ति पर इसका कोई असर नहीं होती।



मूर्ति को आता है पसीना 
वैसे तो भगवान बालाजी की प्रतिमा को एक विशेष प्रकार के चिकने पत्‍थर से बनी है, मगर यह पूरी तरह से जीवंत लगती है। यहां मंदिर के वातावरण को काफी ठंडा रखा जाता है। उसके बावजूद मान्‍यता है कि बालाजी को गर्मी लगती है कि उनके शरीर पर पसीने की बूंदें देखी जाती हैं और उनकी पीठ भी नम रहती है।


समुद्र की लहरों की ध्‍वनि
मंदिर में एक और अजीब घटना होती है जिसे लेकर लोग कहते हैं की सच में यहां भगवान रहते है। मंदिर में बालाजी की मूर्ति पर अगर कान लगाया जाए तो उसके अंदर से आवाज आती है। ये आवाज समुद्र की लहरों की होती है।  जैसे समुद्र के पास एक शांति सी महसूस होती है वैसा ही एहसास मंदिर में होता है।


मुख्य द्वार के पास अद्भुत छड़ी
मंदिर में मुख्य द्वार के दरवाजे के पास एक छड़ी रखी है। इस छड़ी के बारे में कहा जाता है कि बालाजी के बाल रूप में इस छड़ी से उनकी पिटाई की गई थी। पिटाई के दौरान उनकी ठोड़ी पर चोट लग गयी थी। मंदिर के सेवक उनकी चोट जल्दी ठीक हो जाए इसलिए चंदन का लेप लगाते हैं। 


चंदन का लेप के अंदर माता लक्ष्मी
प्रत्येक गुरुवार के दिन तिरुपति बालाजी पर चंदन का लेप लगाया जाता है  ताकि उनका घाव भर जाए। लेप को जब मूर्ति से हटाते है तो उनके अंदर माता लक्ष्मी की प्रतिमा उभर आती है। ऐसा क्यों होता है इसके बारे में कोई नहीं जानता। 


नीचे धोती और ऊपर साड़ी
भगवान की प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है। मान्‍यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्‍मी का रूप समाहित है। इस कारण ऐसा किया जाता है।


बिना तेल के जलने वाला दिया
मंदिर में सबसे हैरान करता है बिना तेल के जलने वाला दिया। मंदिर में एक दिया है जिसमें कभी भी तेल नहीं डाला जाता और न ही उसमें कोई ज्वलनशील पदार्थ डाला जाता है, लेकिन तब भी दिया हमेशा जलता रहता है। कोई नहीं जानता कि वर्षों से जल रहे इस दीपक को कब और किसने जलाया था?



तिरुपति बालाजी मंदिर से जुडी मान्यताएं

मान्‍यता है कि भगवान बालाजी अपनी पत्‍नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि जो भक्‍त सच्‍चे मन से भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं, बालाजी उनकी सभी मुरादें पूरी करते हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्‍त अपनी श्रद्धा के अनुसार यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैं।

तिरुपति बालाजी में जो कुछ चढ़ाया जाता है जैसे दूध, घी, माखन आदि को मंदिर से 23 किलोमीटर दूर स्थित गांव से लाया जाता है।   यहां बाहरी व्‍यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं। मान्‍यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब यहीं से आते हैं। इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं।इस गांव से लोग बाहरी लोगों को चढ़ाने का सामान देते हैं।

तिरुपति बालाजी को भगवान विष्णु का ही रूप है। यहां मान्यता प्रचलित है कि जो लोग सभी पाप और बुराइयां को छोड़ने का संकल्प लेते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। भक्त यहां अपनी सभी बुराइयों और पापों के रूप में बाल छोड़ जाते है।

मान्यता है कि ये मंदिर मेरूप र्वत के सप्त शिखरों पर बना हुआ है, जो की भगवान शेषनाग का प्रतीक है। इस पर्वत को शेषांचल भी कहते हैं। सात चोटियां शेषनाग के सात फनों का प्रतीक हैं। इन चोटियों को शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि, नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि कहा जाता है। इनमें से वेंकटाद्रि चोटी पर भगवान बालाजी विराजित हैं, इसी वजह से इन्हें वेंकटेश्वर कहा जाता है

मंदिर में स्थापित काली दिव्य मूर्ति किसी ने बनाई नहीं, बल्कि ये जमीन से प्रकट हुई थी। है। वेंकटाचल पर्वत को भी भगवान का रूप माना जाता है, यहां भक्त नंगे पैर ही आते हैं।



तिरुपति बालाजी मंदिर का प्रसाद

तिरुपति लड्डू या श्रीवारी लड्डू भारत के तिरुपति, चित्तूर जिले, आंध्र प्रदेश में तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर को नैवेद्य के रूप में चढ़ाया जाने वाला लड्डू है। तिरुपति बालाजी मंदिर लड्डू बनाने के लिए लड्डू के बर्तन में लगभग 200 रसोइए काम करते हैं। इन श्रमिकों को पोटू कर्मिकुलु (Potu karmikulu) के रूप में जाना जाता है। रोजाना 3 लाख लड्डुओं का निर्माण किया जाता है। इन लड्डुओं के बनाने के लिए यहां के कारीगर तीन सौ साल पुरानी पारंपरिक विधि का प्रयोग करते हैं। मंदिर में दर्शन के बाद भक्तों को लड्डू प्रसाद के रूप में दिया जाता है। लड्डू का प्रसाद मंदिर की गुप्त रसोई के भीतर तैयार किया जाता है। यह गुप्त रसोईघर पोटू के नाम से जाना जाता है। तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर को लड्डू चढ़ाने की प्रथा 2 अगस्त 1715 से शुरू हुई। तिरुपति लड्डू को जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिला है, जो बताता है कि केवल तिरुमाला तिरुपति देवस्थान ही इसे बना और बेच सकता है।  

भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते विशेष प्रिय हैं, इसलिए इनकी पूजा में तुलसी के पत्ते का बहुत महत्व है। सभी मंदिरों में भगवान को चढ़ाया गया तुलसी पत्र बाद में प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है, 
 लेकिन तिरूपति बालाजी में भगवान को रोज तुलसी पत्र चढ़ाया जाता है, उसे भक्तों को प्रसाद के रूप में नहीं दिया जाता। 

तिरुपति बालाजी के मंदिर की मान्यता के अनुसार भगवान को जो फूल, पत्ती, तुलसी चढ़ाई जाता है उसे भक्तों को नहीं दिया जाता बल्कि उसे बिना देखे मंदिर के पीछे के कुंड में विसर्जित कर दिया जाता है। मान्यता है की इन फूलों को देखना शुभ नहीं होता।




तिरुपति बालाजी मंदिर में दर्शन 

मंदिर में बालाजी के दिन में तीन बार दर्शन होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है, जो सुबह दिखाई देता है। दूसरे दर्शन दोपहर में और तीसरे दर्शन रात में होते हैं। बालाजी की पूरी मूर्ति के दर्शन केवल शुक्रवार को सुबह अभिषेक के समय ही किए जा सकते हैं।


तिरुपति बालाजी मंदिर के नियम 

तिरुपति बालाजी की यात्रा के कुछ नियम भी हैं। नियम के अनुसार तिरुपति के दर्शन करने से पहले कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर के दर्शन करना चाहिए। फिर वेंकटाचल पर्वत पर जाकर बालाजी के दर्शन करना चाहिए। इसके बाद पद्मावती देवी के दर्शन करने की पंरापरा है।