Home » Teerth Listings » Jyotirling » सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर भारत के गुजरात के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र में वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित है।  सोमनाथ मंदिर के वैभवशाली सुंदर शिवलिंग की गिनती भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम के रूप में होती है।।  ऋग्वेद में वर्णित सोमनाथ मंदिर  को "तीर्थ अनन्त" के रूप में जाना जाता है।  ऐसी भी मान्यता है इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने देह त्याग किया था।  श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तब ही शिकारी ने हिरण की आंख जानकर धोखे में उनके पैर में तीर मारा था. तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया. इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।

सोमनाथ का मंदिर भारत के पश्चिम समुद्र तट पर है और हजारों वर्षों के ज्ञात इतिहास में इस अरब सागर ने कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघी है! न जाने कितने आंधी, तूफ़ान आये, चक्रवात आये लेकिन किसी भी आंधी, तूफ़ान, चक्रवात से मंदिर की कोई हानि नहीं हुई है।

मदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में यह मान्यता है की यह पार्वती जी का मंदिर है. यह तीर्थ स्थान पितृगणों के श्राद्ध, नारयण बली आदि के लिए बहुत प्रसिद्ध है। सोमनाथ मंदिर में खासकर चैत्र, भाद्र, कार्तिक इन तीनो महीनों में बहुत अधिक मात्र में भीड़ लगी रहती है।

प्राचीन शास्त्रों के अनुसार मंदिर का निर्माण 


प्राचीन भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों पर आधारित शोध से पता चलता है कि पहला सोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्राण-प्रतिष्ठा वैवस्वत मन्वंतर के दसवें त्रेता युग के दौरान श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के शुभ दिन पर किया गया था। श्रीमद आद्या जगदगुरु शंकराचार्य वैदिक षोध संस्थान, वाराणसी के अध्यक्ष स्वामी श्री गजानंद सरस्वतीजी ने सुझाव दिया कि स्कंद पुराण के प्रभास खंड की परंपराओं के अनुसार 7,99,25,105 वर्ष पहले उक्त पहला मंदिर बनाया गया था।

कुछ प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि मंदिर का निर्माण पहली बार सोने में राजा सोमराज ने सतयुग के दौरान किया था। त्रेता युग में, रावण ने इसे चांदी से बनाया था जबकि द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने मंदिर का निर्माण चंदन के साथ किया था। बाद में राजा भीमदेव ने मंदिर का निर्माण पत्थर से करवाया था।

यहां तक कि महाभारत में भी सोमनाथ का उल्लेख है। जब अर्जुन अपने एकांत वनवास पर थे, तब उन्होंने अपने निर्वासन के अंत में सोमनाथ का दौरा किया और फिर द्वारिका गए और भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा से विवाह किया।

मंदिर की अद्भुत विशेषताएं 


मंदिर का शिवलिंग हवा में उड़ता था 

मंदिर के गर्भगृह में रखा गया शिवलिंग वास्तव में बिना किसी सहारे के स्वतंत्र रूप से हवा में तैरता था।  माना जाता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग में भगवान श्रीकृष्ण और सूर्य देव से सम्बंधित स्यामंतक मणि छुपी हुई थी। स्यमन्तक मणि एक जादुई पत्थर था, जो रोज 80 ग्राम सोने का उत्पादन करने में सक्षम था। ऐसा माना जाता है कि इस मणि में कीमिया और रेडियोधर्मी गुण थे। यह अपने चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण कर सकता था, जिसके कारण लिंग जमीन के ऊपर तैरता रहता था। लिंग को अपने रेडियोधर्मी गुणों के खतरनाक प्रभावों से बचाने के लिए बेलपत्रों से ढककर रखा जाता था।

मंदिर का ‘बाणस्तंभ’

इस मंदिर के प्रांगण में दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ (खंबा) स्थापित है। यह ‘बाणस्तंभ’ नाम से जाना जाता है। यह एक दिशादर्शक स्तंभ है जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है इस बाणस्तंभ पर लिखा है -

‘आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधित ज्योतिरमार्ग’

इसका अर्थ हुआ कि

इस बिंदु से दक्षिण धृव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा(पृथ्वी का कोई भू-भाग) स्थित नहीं है। यानि सोमनाथ मंदिर के इस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात अंटार्टिका तक) एक सीधी रेखा खिंची जाए, तो  इस समूची दूरी में एक भी भूखंड (द्वीप या टापू) नहीं आता है जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं है।

आज के इस तंत्र विज्ञान के युग में इसे प्रमाणित करना संभव है। गूगल मैप में ढूंढने के बाद इस समूची दूरी में भूखंड नहीं दिखता है, जो उस संस्कृत श्लोक में सत्यता को साबित करता है। 



सोमनाथ मंदिर की कहानी -

कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चन्द्र देव से किया था। सत्ताईस कन्याओं का पति बन कर चन्द्र देव बहुत खुश थे। सभी कन्याएं भी इस विवाह से प्रसन्न थी। इन सभी कन्याओं में चन्द्र देव सबसे अधिक रोहिणी नामक कन्या को चाहते थे। जब इस बात की शिकायत सब कन्यांओ ने राजा दक्ष से की तो राजा दक्ष ने चन्द्र देव को बहुत समझाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। 

उनके समझाने का प्रभाव यह हुआ कि उनका लगाव रोहिणी के प्रति और अधिक हो गया। यह जानने के बाद राजा दक्ष ने देव चन्द्र को श्राप दे दिया कि जाओ आज से तुम क्षय रोग से पीड़ित हो जाओगे। और तुम्हारा प्रभाव दिन प्रतिदिन कम होता जाएगा । श्रापवश  चन्द्र देव क्षय रोग से पीड़ित हो गए। उनके सम्मान और प्रभाव में भी कमी हो गई। इस श्राप से मुक्त होने के लिए वे भगवान ब्रह्मा की शरण में गए ।


इस शाप से मुक्ति का ब्रह्मा देव ने यह उपाय बताया कि सरस्वती के मुहाने पर स्थित अरब सागर में स्नान करके चन्द्र देव को भगवान शिव की उपासना करनी होगी । तभी इस श्राप से मुक्ति मिल सकती है। भगवान ब्रह्मा जी के कहे अनुसार चन्द्र देव ने  भगवान शिव की कठोर तपस्या की ।

चन्द्र देव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चन्द्र देव को दर्शन दिये और वरदान मांगने के लिए कहा। तब चन्द्र देव ने श्राप से मुक्त करने के लिए कहा।

इस श्राप को पूरी से समाप्त करना भगवान शिव के लिए भी सम्भव नहीं था। मध्य का मार्ग निकाला गया, कि एक माह में जो पक्ष होते है । एक शुक्ल पक्ष और कृ्ष्ण पक्ष जिसमें से किसी एक एक पक्ष में उनका यह श्राप नहीं रहेगा परन्तु दुसरे पक्ष में इस श्राप से ग्रस्त रहेगें।  शुक्ल पक्ष और कृ्ष्ण पक्ष में वे एक पक्ष में बढते है, और दूसरे में वो घटते जाते है। चन्द्र देव ने भगवान शिव की यह कृ्पा प्राप्त करने के लिए उन्हें धन्यवाद किया और उनकी स्तुति की।

उसी समय से इस स्थान पर भगवान शिव की उपासना करने का प्रचलन प्रचलन प्रारम्भ हुआ तथा भगवान शिव सोमनाथ मंदिर में आकर पूरे विश्व में विख्यात हो गए। देवता भी इस स्थान को नमन करते है। इस स्थान पर चन्द्र देव भी भगवान शिव के साथ स्थित है।

मंदिर पर आक्रमण और पुनर्निर्माण

पौराणिक सोमनाथ मंदिर इतना समृध्द कि उत्तर-पश्चिम से आने वाले प्रत्येक आक्रांता की पहली नजर सोमनाथ पर जाती थी। अनेकों बार सोमनाथ मंदिर पर हमले हुए उसे लूटा गया। सोना, चांदी, हिरा, माणिक, मोती आदि गाड़ियाँ भर-भर कर आक्रांता ले गए।

कई बार इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा मंदिर नष्ट किया गया और हिंदू राजाओं द्वारा पुनर्निर्माण किया गया। मुहम्मद गजनवी ने सन् 1026 में इस मंदिर पर आक्रमण कर इस मंदिर की पूरी सम्पति लूट ली और इसे नष्ट कर दिया।  ऐसा माना जाता है की आगरा के ताजमहल में रखे देवदार सोमनाथ मंदिर के है। महमूद गजनवी सन् 1026 में मंदिर लूटने के साथ ही इन्हे अपने साथ ले गया था।  

इसके बाद गुजरात के राजा भीम तथा मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया। परन्तु सन् 1300 में दिल्ली के सल्तनत अलाउद्दीन ने अपने सेना द्वारा इस मंदिर को पुनः नष्ट किया तथा इसके बाद भी मंदिर कई बार नष्ट हुआ और कई बार इसका पुनः निर्माण हुआ।

पुरातत्व जांच से पता चलता है कि वर्ष 1026 में मुहम्मद गजनवी की छापे से पहले सोमनाथ के मंदिर का लगभग तीन बार पुनर्निर्माण किया गया था। इसके अलावा, यह बताया जाता है कि बाद में मंदिर पर तीन गुना अधिक हमला किया गया था। इस प्रकार मंदिर पर हमला किया गया और वर्तमान 7 वें संस्करण के उभरने तक 6 बार नष्ट कर दिया गया।

सोमनाथ मंदिर का नवीनतम पुनर्निर्माण नवंबर 1947 में वल्लभभाई पटेल द्वारा करवाया गया, जब वल्लभभाई पटेल ने जूनागढ़ के एकीकरण के लिए क्षेत्र का दौरा किया और मंदिर बहाली की योजना बनाई। पटेल की मृत्यु के बाद, भारत सरकार के एक अन्य मंत्री कन्हैयालाल मानेकलाल मुंशी के अधीन पुनर्निर्माण जारी रहा। प्रभाशंकर सोमपुरा को वास्तुकार के रूप में चुना गया था और इस तरह सोमनाथ मंदिर अस्तित्व में आया। 11 मई 1950 को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर का उद्घाटन किया। 

धन्य है सनातन संस्कृति और ये भारत भूमि, जहाँ ऐसी उत्कृष्ट रचनाएँ निर्मित की गई।