धार्मिक नियमों क्रियाओं में कुछ ऐसी परम्पराएं होती हैं जो समय के साथ लोगो को अव्यवहारिक लगने लगती ही किन्तु हमारे महापुरुषों ऋषि मुनियों ने इनका निर्माण बहुत सोच समझ कर किया था। ऐसी ही एक धार्मिक परंपरा है कि किसी भी मंदिर में भगवान के दर्शन के बाद में बाहर आ करके मंदिर की पैड़ी या ऑटले पर कुछ देर के लिए अवश्य बैठना चाहिए। इस परंपरा को बनाने का...Read More
शक्ति के बिना कुछ भी संभव नहीं … शक्ति ही उर्जा, ताकत, एनर्जी, पॉवर के नाम से जानी जाती है| दुनिया में मौजूद हर पिंड में शक्ति है| सच तो ये है कि उर्जा के अतिरिक कुछ और है ही नहीं| पत्थर भी उर्जा का ही संघनित रूप है| पत्थर जड़(inanimate,निर्जीव,निष्प्राण,प्राणहीन,बेजान,मृत,अचेतन) दिखाई देता है, ऐसा लगता है कि पत्थर में उर्जा नहीं है लेकिन पत्थर का मूल (परमाणु)...Read More
1. दुर्योधन2. दुःशासन3. दुःसह4. दुःशल 5. जलसंघ6. सम7. सह 8. विंद 9. अनुविंद10. दुर्धर्ष 11. सुबाहु। 12. दुषप्रधर्षण13. दुर्मर्षण। 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान19. सुलोचन 20. चित्र 21. उपचित्र22. चित्राक्ष23. चारुचित्र 24. शरासन25. दुर्मद। 26. दुर्विगाह 27. विवित्सु28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ31. नन्द32. उपनन्द33. चित्रबाण34....Read More
सर्वप्रथम यम नियम से अपने आंतरिक और बाहरी शरीर की शुद्धि करें विचारों को शुद्ध करें गलत विचारों को ना आने दे उसके बाद, एक आसन का चयन करें इसमें आप आधे घंटे से एक घंटा स्थिरता पूर्वक, सुख पूर्वक बैठ सकें, अगर ऐसा नहीं है तो कुछ आसनों का अभ्यास कर शरीर में स्थिरता और हल्कापन लाएं। सिद्धासन, पद्मासन ध्यान के लिए सर्वश्रेष्ठ आसन है। इसके अतिरिक्त...Read More
1398 ई. में धर्म की नगरी काशी में 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' को कहने वाले संत रविदास का जन्म हुआ था। रविदास जी को रैदास जी के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने अपनी आजीविका के लिए पैतृक कार्य को अपनाया लेकिन इनके मन में भगवान की भक्ति पूर्व जन्म के पुण्य से ऐसी रची बसी थी कि, आजीविका को धन कमाने का साधन बनाने की बजाय संत सेवा का माध्यम बना लिया। संत और...Read More
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई । वास्तव में मंदिर की...Read More
1) ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्2) ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धिमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्3) ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीश: प्रचोदयात्4) ॐ अनसुयासुताय विद्महे अत्रिपुत्राय धीमहि तन्नो दत्त: प्रचोदयात्5) ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात्6) ॐ एकदंताय...Read More
शिवपुराण में ओमकार का महत्व :नौ करोड़ जप करने से मनुष्य शुद्ध हो जाता है।फिर नौ करोड़ जप करने से मनुष्य पृथ्वी तत्व पर विजय पा लेता है।फिर नौ करोड़ जप करने से जल तत्व पर अपनी विजय प्राप्त कर लेता है।फिर नौ करोड़ जप करने से अग्नि तत्व पर विजय पा लेता है।फिर नौ करोड़ जप करने से वो वायु तत्व पर अपना वर्चस्व पा लेता है।फिर नौ करोड़ जप करने से वो आकाश तत्व...Read More
महाभारत के युद्ध के पश्चात् काल की एक घटना है । भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं- हे युधिष्ठिर ! अब तुम विजेता हुए हो तो अब राजतिलक का दिन निश्चित कर तुम राज्य भोगो।”तब युधिष्ठिर कहते हैं – “मुझसे अब राज्य नहीं भोगा जाएगा । मैं अब तप करना चाहता हूँ । मुझे राज्यसुख की आकांक्षा नहीं है । तप करके फिर आकर राज्य सँभालूँगा ।तब भगवान श्री कृष्ण...Read More
एक राजा को राज भोगते काफी समय हो गया था । बाल भी सफ़ेद होने लगे थे । एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया । उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया ।राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत...Read More
योग साधना में 14 प्रकार के विघ्न पतंजलि ने योगसूत्र में बताये हैं और साथ ही इनसे छूटने का उपाय भी बताया है । राम के 14 वर्ष का वनवास इन्हीं 14 विघ्न व इनको दूर करने का सूचक हैं । 14 विघ्न इस प्रकार हैं ।1- व्याधि - शरीर एवं इन्द्रियों में किसी प्रकार का रोग उत्पन्न होना ।2- स्त्यान - सत्कर्म/साधना के प्रति होने वाली ढिलाई, अप्रीति, जी चुराना ।3- संशय - अपनी...Read More
एक समय की बात हैं कि एक गाँव में एक गरीब किसान सहदेव का परिवार रहता था । छोटे घर में कम जरूरते होने के कारण यह परिवार बहुत ही आनंद का जीवन व्यतीत कर रहा था । लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था । एक दिन अकस्मात अकाल मृत्यु के कारण सहदेव की मौत हो गई जिससे सम्पूर्ण परिवार के पालन – पोषण का सारा का सारा भार पत्नी सोहा पर आ गया ।दिनरात घोर कठोर परिश्रम...Read More
महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था, जिसमें दोनों तरफ से करोड़ों योद्धा मारे गए थे। ये संसार का सबसे भीषण युद्ध था। उससे पहले न तो कभी ऐसा युद्ध हुआ था और न ही भविष्य में कभी ऐसा युद्ध होने की संभावना है।कुरुक्षेत्र की धरती को महाभारत के युद्ध के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने ही चुना था, लेकिन उन्होंने कुरुक्षेत्र को ही महाभारत युद्ध के...Read More
प्राचीन सतयुग काल में जब जात पात नहीं थी तो सामान्य रूप से प्राचीन भारतीय लोग रहा करते थे कुछ निश्चित उद्देश्य नहीं होता था। तब ऋषि मुनि जो ब्रम्हज्ञानी थे उन्होंने देखा कि इस उद्देश्य हीन मानव के लिए एक व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि वह देखते थे कि कैसे जीव जन्म लेता है, कैसे मरता है, कहाँ जाता है, कब दोबारा जन्म मिलता है, पृथ्वी पर आने के बाद वह...Read More
होलाष्टक होली से आठ दिन पहले की समय अवधि को कहा जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्ठमी तिथि से फाल्गुन मास की पूर्णिमा तक के इन आठ दिनों में शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। यहां कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण कार्य बताये गये है जिन्हे होलाष्टक के समय करने से बचाना चाहिए। - हिन्दू धर्म के सभी सोलह संस्कार होलाष्टक के समय में करने वर्जित माने जाते...Read More
सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परंपरा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए। अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां 30 ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो...Read More
1- युधिष्ठिरद्रोपदी के अलावा युधिष्ठिर ने देविका से विवाह किया था. देविका उनकी दूसरी पत्नी थीं और उनके पुत्र का नाम धौधेय था.2-अर्जुनद्रौपदी के अलावा अर्जुन ने तीन और विवाह किए थे. द्रौपदी के अलावा अर्जुन की सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक तीन और पत्नियां थीं. सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म...Read More
महाभारत युद्ध के पश्चात्य श्री कृष्ण 35 वर्षों तक जिंदा रहे और द्वारिका में अपनी आठ पत्नियों के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत किया। यहां प्रस्तुत है उनकी प्रत्येक पत्नी से उत्पन्न हुए 80 संतानों के नाम। 1.रुक्मिणी : प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू।2.सत्यभामा : भानु, सुभानु,...Read More
भगवान को चढ़ाने के लिए नारियल जैसा शुद्ध कुछ भी नहीं हो सकता है, क्योंकि नारियल के अंदर का पानी और सफ़ेद नरम कर्नेल साफ और बिना मिलावट के होते हैं और कठोर बाहरी नारियल के खोल से सुरक्षित और ढके रहते हैं। कई सामाजिक आयोजनों के दौरान उपहार के रूप में नारियल देने की भी परंपरा है। शादी के दौरान तिलक समारोह के समय नारियल गिफ्ट किया जाता है।हिंदू...Read More
पितरों को प्रसन्न करते हुए उनकी अनुकम्पा का पात्र बनने के लिए, हमारे ऋषियों ने वर्ष के पन्द्रह दिन निश्चित किए हैं, जो पितृपक्ष के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन पन्द्रह दिनों में, देवी- देवताओं के निमित्त किये गए किसी भी प्रकार के हवन, यज्ञादि कर्मों का सम्पूर्ण फल भी, हमारे पितरों को ही मिला करता है।ऐसा प्रकृति के नियमों के कारण स्वत:स्फूर्त होता है;...Read More
गोत्र 108 हैं , 7 शाखाओं सहित । उन ऋषियों के नाम, जो कि हमारा गोत्र भी है.......१.अत्रि गोत्र,२.भृगुगोत्र,३.आंगिरस गोत्र,४.मुद्गल गोत्र,५.पातंजलि गोत्र,६.कौशिक गोत्र,७.मरीच गोत्र,८.च्यवन गोत्र,९.पुलह गोत्र,१०.आष्टिषेण गोत्र,११.उत्पत्ति शाखा,१२.गौतम गोत्र,१३.वशिष्ठ और संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5)...Read More
वास्तुशास्त्र के अनुसार पूजा घर में सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने के लिए कुछ उपाय करने बेहद जरुरी है, जैसे मंदिर में भगवान की मूर्ति किस तरह से रखी है, इस बात का भी खास ख्याल रखा जाना चाहिए। आइए, जानते हैं-पूजा घर में कभी भी गणेश जी की दो से अधिक मूर्तियां या तस्वीर नहीं रखनी चाहिए। अन्यथा यह शुभ फलदायी नहीं होता।-मंदिर में भगवान की मूर्तियों को...Read More
द्रुपद ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किया तो उसे पुत्र धृष्टद्युम्न की प्राप्ति हुई। यह यज्ञ महाराज द्रुपद ने द्रोणाचार्य से अपने अपमान का बदला लेने के लिये संतान-प्राप्ति के उद्देश्य से किया था। धृष्टद्युम्न का जन्म देवताओ ने द्रुपद की श्रद्धा देख उसे फलस्वरूप एक पुत्री देने का निश्चयः किया। पर द्रुपद पहले पुत्र को प्राप्त कर...Read More
श्रीमद्भगवद्गीता की प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार हैं—गुस्से पर काबू करना- क्रोध से भ्रम पैदा होता है। भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।देखने का नजरिया - जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है।मन पर नियंत्रण...Read More
गरुड़ पुराण के अनुसार दुर्भाग्य के संकेत - किसी बहुत धनवान शख्स की संतान बुद्धिमान ना हो।जिसकी पत्नी बिना बात के घरेलू कलह करती हो।परिवार का कोई सदस्य हमेशा अस्वस्थ रहे।घर में साफ-सफाई के बावजूद गंदगी रहती हो।परिवार और समाज में बिना कारण बार-बार अपमान...Read More
सबको अपने प्रकाश से प्रकाशमय करने वाले तेज के पुंज सूर्य देव को जल चढ़ाने से तेज की प्राप्ति होती है। सूर्य देवता को जल चढ़ाने से यश, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो भी व्यक्ति नित्य प्रति सूर्य देव को केवल मात्र एक लोटा जल ही अर्पित करते हैं सूर्यदेव उन से प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।परंतु सूर्य देव को जल अर्पण करने से...Read More
प्राचीन काल मे भगवान की पूजा कराते समय आचार्य द्वारा यजमान से सवाया चढ़ाने का निर्देश दिया जाता दक्षिणा स्वरूप सवा रुपए का ही विशेष महत्व बताया जाता था।पच्चीस पैसे के बंद होने से अधिकतर स्थानों पर यजमान एक रुपए का नोट बढ़ा कर निकालते हैं जैसे 11, 21, 51 ,101 रुपए देते हैं क्योंकि विषम संख्या में सवाया शगुन न होने से पूजा कराने वालों के मन में कुछ आशंका...Read More
भगवान कृष्ण के पहले "इंद्रोत्सव" नामक उत्तर भारत में एक बहुत बड़ा त्योहार होता था। भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवाकर गोपोत्सव, रंगपंचमी और होली का आयोजन करना शुरू किया। भगवान श्रीकृष्ण का मानना था कि ऐसे किसी व्यक्ति की पूजा नहीं करना चाहिए जो न ईश्वर हो और न ईश्वरतुल्य हो। गाय की पूजा इस लिए क्योंकि इसी के माध्यम से हमारा जीवन चलता है।...Read More
1989 में जगत गुरु शंकराचार्य कांची कामकोटि जी से प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम चल रहा था। एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि हम भगवान को भोग क्यों लगाते हैं ? हम जो कुछ भी भगवान को चढ़ाते हैं उसमें से भगवान क्या खाते हैं। क्या पीते हैं। क्या हमारे चढ़ाए हुए पदार्थ के रुप रंग स्वाद या मात्रा में कोई परिवर्तन होता है। यदि नहीं तो हम यह कर्म क्यों करते हैं। क्या...Read More
ओम अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है, लेकिन हमें कभी भी ॐ अकेला नहीं जपना चाहिये, यह प्रतिकूल प्रभाव डालता है, हमें ॐ नमः शिवाय या हरिओम या ॐ गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। इनमें से कोई भी जप आपके लिए उत्तम कल्याणकारी सिद्ध होगा।जप के लिए प्रातःकाल एवं ब्राह्म मुहूर्त काल सर्वोत्तम है। दो घण्टे रात रहे से सूर्योदय तक ब्राह्म मुहूर्त कहलाता है।...Read More
भगवान शंकर- नंदीभगवान विष्णु - गरुड़भगवान गणेश - मूषकभगवान कार्तिकेय - मयूर / मोरभगवान शनिदेव- कौआभगवान ब्रह्मा - हंसदेवी सरस्वती - हंसयम - भैंसदेवी लक्ष्मी- उल्लूभगवान सूर्यदेव- घोड़ों का रथभगवान इंद्र -...Read More
राजा पृथु एक दिन सुबह-सुबह घोड़ों के तबेले में जा पहुँचे। तभी वहाँ एक साधु भिक्षा मांगने आ पहँचा। सुबह-सुबह साधु को भिक्षा मांगते देख पृथु क्रोध से भर उठे। उन्होंने साधु की निंदा करते हुये, बिना विचारे तबेले से घोड़े की लीद उठाई और उसके पात्र में डाल दी। साधु भी शांत स्वभाव का था, सो भिक्षा ले वहाँ से चला गया और वह लीद कुटिया के बाहर एक कोने में डाल...Read More
होली की कहानी की व्याख्या किसी विचारक ने साधना के मार्ग पर चलने वाले एक योग्य एक साधक के सामने आने वाली कठिनाइयों के रूप में दर्शाते हुए की है जिसके अनुसार -होली की कथा से जुड़े दो भाइयों के नाम है - हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप जो कि काफी अधिक रोचक है।हिरण्य शब्द का अर्थ होता है सोना जिसे माया का प्रतीक माना जाता है, तथा अक्ष शब्द का अर्थ होता है...Read More
1-अष्टाध्यायी पाणिनी2-रामायण वाल्मीकि3-महाभारत वेदव्यास4-अर्थशास्त्र चाणक्य5-महाभाष्य पतंजलि6-सत्सहसारिका सूत्र नागार्जुन7-बुद्धचरित अश्वघोष8-सौंदरानन्द अश्वघोष9-महाविभाषाशास्त्र वसुमित्र10- स्वप्नवासवदत्ता भास11-कामसूत्र वात्स्यायन12-कुमारसंभवम् कालिदास13-अभिज्ञानशकुंतलम्...Read More
साधु संतो का दर्शन प्रत्येक मनुष्य को नहीं मिलता। कुछ पुण्य कर्म होते है जिनके कारण साधु संतों का दर्शन होता है। संतों के दर्शन करते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:बिना आज्ञा लिए किसी भी संत के पैर न छुएं उन्हें दूर से ही पंचांग प्रणाम करेंकिसी भी संत के दर्शन करने जाएं तो कुछ फल, किसी मंदिर का प्रसाद या प्रसादी माला लेकर जाएं । मिठाई के...Read More
पुराने उपलब्ध प्रमाणों और राम अवतार जी के शोध और अनुशंधानों के अनुसार कुल १९५ स्थानों पर राम और सीता जी के पुख्ता प्रमाण मिले हैं जिन्हें ५ भागों में वर्णित कर रहा हूँ सिंगरौरयह वनवास का पहला पड़ाव था। यह गंगा घाटी के तल पर प्रयागराज से 35 किमी की दुरी पर है। इसी स्थान पर केवट प्रसंग हुआ था। कुरईकेवट ने गंगा पार करवाकर श्री राम , सीता और...Read More
हिंदी कैलेंडर में किसी मास के अंतर्गत आने वाली तिथियों की संख्या सोलह होती है। पहली तिथि प्रतिपदा से लेकर अंतिम तिथि पूर्णिमा व अमावस्या सभी तिथियों के स्वामी होते हैं। इन सभी तिथियों का स्वाभाव भी अलग अलग होता है। तिथि के अनुसार उनके स्वामी की उस दिन इष्ट पूजा, प्राणप्रतिष्ठा आदि करना अच्छा माना जाता है। मासिक तिथियां, उनका स्वाभाव तथा...Read More
भगवान कृष्ण ही विट्ठल नाम से जाने जाते है। महाराष्ट्र में एक बहुत ही मातृ पितृ भक्त, पुण्डलिक हुए है। वे प्राण पण से अपने माता पिता की सेवा में लगे रहते थे। उनकी मातृ पितृ भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होकर एक बार स्वयं भगवान श्री कृष्ण उनके सम्मुख प्रकट हो गए। उस समय पुण्डलिक हमेशा की तरह अपने माता पिता की सेवा लगे हुए थे।भगवान को आया देखकर...Read More
करवा चौथ व्रत का महिलाओ को कई दिन पहले से उत्साहित हो जाती है और पूजन की तैयारी में लग जाती है | करवा चौथ पर छलनी से चांद के दर्शन कर अपना व्रत तोडती है | यह व्रत उनके वैवाहिक जीवन में मंगलता लाने वाला बताया गया है | इस दिन कुछ ऐसे कार्य है जो महिलाओ को नही करने चाहिए | आइये जानते है उनके बारे मेंसफ़ेद - काले कपडो से बचे हर सुहागिन को करवा चौथ के दिन...Read More
शास्त्रों में वर्णित है की कार्तिक मास सबसे धार्मिक और पूण्य प्राप्ति का महिना है। स्कन्द पुराण में बताया गया है कि सभी मासों में कार्तिक मास, देवताओं में विष्णु भगवान, तीर्थों में बद्रीनारायण तीर्थ शुभ है वही पदम पुराण के अनुसार कार्तिक मास धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने वाला है। कार्तिक मास की महिमा स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक...Read More
हिन्दू धर्म में माघ मास में आने वाली पूर्णिमा का अत्यंत महत्व है। कहते है इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर दान, तप करने से व्यक्ति के कई जन्मो के पाप का शमन हो जाता है। बताया जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु गंगा स्नान करने धरती पर आते है अत: भक्तो द्वारा इस दिन गंगा स्नान करने का बहुत महात्मन है। इस मास में सबसे ज्यादा पूण्य देने वाला दान तिल, कम्बल...Read More
हिन्दू पंचांग का अंतिम मास फाल्गुन का है। इस महीने की पूनम को फाल्गुनी नक्षत्र होने के कारण इस महीने का नामकरण फाल्गुन रखा गया है। यह मौज मस्ती और उमंग का महिना है जिसमे शिवरात्रि, होली और खाटू श्याम जी का फाल्गुन मेला भरता है। इस महीने से सर्दी कम होती जाती है और गर्मी शुरू होने लगती है। फाल्गुन मास का महत्व इस कारण है क्योकि - इस मास में आने...Read More