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Krishna Ji

कृष्ण, जो सभी भारतीय देवो में सबसे व्यापक रूप से प्रतिष्ठित और लोकप्रिय हैं, हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजे जाते हैं तथा स्वयमेव भी एक सर्वोच्च देव है। कृष्ण ने कई भक्ति विधाओं में अपने भक्तो को आकर्षित किया है धार्मिक कविता, संगीत, और चित्रकला की जितनी अधिक कृतियाँ   हैं। श्री कृष्ण का जन्म वासुदेव और देवकी के पुत्र रूप में यदुवंश में हुआ था। श्री कृष्ण की माता देवकी मथुरा के दुष्ट राजा कंस की बहन थी। कंस ने एक आकाशवाणी में यह सुनकर कि "देवकी का आठवां पुत्र तेरा वध करेगा", कृष्ण के अन्य भाइयों को जन्म लेते ही मार दिया था। किन्तु कृष्ण को जन्म के बाद वासुदेव ने यमुना नदी पार करके गोकुल (ब्रज) में अपने मित्र नन्द के यहाँ पंहुचा दिया। श्री कृष्ण का लालन पालन नन्द और उनकी पत्नी यशोदा ने किया।

श्री कृष्ण को बाल्यकाल में उनकी नटखट शरारतों के लिए सारा गोकुल बहुत प्यार करता था। बचपन से ही श्री कृष्ण ने कई बाल लीलाएं की राक्षसों को मौत के घाट उतार दिया। अपनी युवा अवस्था में, ग्वाला के रूप में कृष्ण, प्रेम का स्वरुप बन गए। जिसकी बांसुरी की आवाज़ इतनी सुमधुर होती थी कि गोपियां अपने घरों को छोड़कर के चाँदनी रात में श्री कृष्ण के साथ रास के लिए चली जाती थी। कृष्ण बचपन से ही राधा से प्रेम करते थे। एक समय के पश्चात, कृष्ण अपने भाई बलराम दुष्ट कंस का वध करने के लिए मथुरा वापस आए। बाद में, अपने राज्य की सुरक्षा के लिए, कृष्ण ने यादवों को काठियावाड़ के पश्चिमी तट पर ले जाकर द्वारका में अपना दरबार स्थापित किया। उन्होंने राजकुमारी रुक्मिणी से शादी की और वहीँ पर पत्नियों को भी लिया।

कृष्ण ने कौरवों और पांडवों के बीच हुए प्रसिद्ध महाभारत के युद्ध में हथियार न उठाने का प्राण लिया था। इस युद्ध में उन्होंने एक पक्ष को अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति तथा दूसरे पक्ष को अपनी सेना देने का निर्णय लिया।   पांडवों ने पहले भाग को चुना जिसके फलस्वरूप श्री कृष्ण ने पांडव भाइयों में से एक अर्जुन के सारथी के रूप में युद्ध में भाग लिया। द्वारका लौटने पर, एक दिन यादव प्रमुखों के बीच हुए एक विवाद में कृष्ण के भाई और पुत्रों की मृत्यु हो गयी। एक दिन वन में बैठे हुए श्री कृष्ण के पैर में, शिकारी द्वारा चलाये गए हिरण के शिकार के लिए तीर से श्री कृष्ण की मृत्यु हो गयी। वह तीर श्री कृष्ण के पैर की ऐडी में लगा था कहा जाता है कि वह शिकारी त्रेता युग के बाली का रूप था।

कृष्ण का व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से सर्व समावेशी है, हालांकि विभिन्न तत्व सरलता से पृथक नहीं होते हैं।  भगवान श्री विष्णु-नारायण का अवतार माना गया। श्री कृष्ण की पूजा ने विशेष लक्षणों को प्रस्तुत किया, उनमें से मुख्य है ईश्वर से दिव्य प्रेम और मानव प्रेम के बीच समानता की खोज। इस प्रकार, गोपियों के साथ कृष्ण के लगाव की व्याख्या भगवान और मानव आत्मा के बीच के प्रेम संबंधों के प्रतीक के रूप में की जाती है।

कृष्ण के जीवन से जुड़ी विभिन्न प्रकार की लीलाओ ने चित्रकला और मूर्तिकला में बहुत अधिक प्रधानता प्राप्त की। श्री कृष्ण के बाल्यकाल के स्वरूपों में उनको अपने हाथों और घुटनों पर चलते हुए, खुशी के साथ नृत्य करते हुए, हाथों में मक्खन लेकर खेलते हुए दिखाया गया है। एक दिव्य प्रेमी के रूप श्री कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए दर्शाया गया है, जो गोपियों को प्रेम करता है।


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